इतिहास में एक समय ऐसा आया जब जन
सामान्य में बौद्ध व जैन धर्म के प्रति रूचि अधिक पैदा हो गयी थी । लोग पवित्र
वैदिक धर्म को घृणा क्षुद्रता की दृष्टि को देखने लगे थे । एक नारी भारती देवी
रो-रोकर लोगों से पूछती थी वेदों का उद्धार कौन करेगा। एक युवक कुमारिल भट्ट खडे
हुए । उन्होंने बौद्ध गुरू द्वारा सम्पूर्ण बौद्ध शिक्षाओं का अध्ययन किया ।
तत्पश्चात वैदिक परम्पराओं की श्रेष्ठता व बौद्ध शिक्षकों की अपूर्णता को समय के
सामने रखा । परन्तु यह उन्हें अपने गुरू का अपमान भी प्रतीत हुआ कि जिसे गुरू
बनाकर उन्होंने शिक्षाएं ली उसी का खण्डन कर डाला । इसके प्रायश्चित के लिए
उन्होंने स्वयं को जलती चिता में जला डाला । परन्तु उनके एक शिष्य मण्डन मिश्र के
नेतृत्व में युवाओं का एक बडा दल वैदिक संस्कृति के उत्थान के लिए उभरा । जिनको
शंकराचार्य जैसे व्यक्तित्व का साथ मिला तो पूरे भारत में सनातन धर्म की लहर दौड़
गयी । कुमारित भट्ट का बलिदान सार्थक हो गया ।
गुरू गोविन्द सिंह जी के दो बालकों को
दीवार में जिन्दा चिनवा दिया गया । उन्होंने हंसते-हंसते सनातन धर्म की रक्षा के
लिए अपना बलिदान दे डाला । सम्पूर्ण समुदाय में इस घटना से आक्रोश की लहर उत्पन्न
हुयी और बच्चा बडा, नर नारी हर कोर्इ कृपाण, कटार व तलवार लेकर मातृभूमि की रक्षा
के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तत्पर हो गया । धर्म संस्कृति की रक्षा
के लिए सिर पर सिर कलम होते चले गये लेकिन र्इस्लाम नहीं कबूला गया, घुटने नहीं टेके गए । काश आज पुन: भारत
मां के सपूतों में अपनी धर्म संस्कृति को लेकर इतना प्रेम पैदा हो जिससे भोगवाद की
आंधी को रोका जा सके ।
ब्रिटिश हकुमत का अहिंसापूर्ण विरोध
करने के लिए गांधी जी का नेतृत्व उभरा । जाति बाधा जो बाद्य से भी लड सकते थे
उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ अमरण अनशन किया, भूख
हडताल कर दी । लम्बे समय तक भूखे प्यासे पडे रहकर तिल-तिलकर अपना प्राणान्त कर
दिया । परन्तु अंग्रेजी सरकार पर जूँ न रेंगी । जतिन बाधा के बलिदान ने भारत में
युवाअें का दिल दहला दिया । एक बडा वर्ग खड़ा होने लगा जिन्होंने हथियार थाम लिए व
अंग्रेजों से अशस्त्र क्रान्ति के लिए अपना मन बना लिया । नेता जी सुभाष चन्द्र
बोस देश के बाहर रहकर फौज तैयार करने लगे तो देश के भीतर चन्द्र शेख आजाद के
नेतृत्व में भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू आदि अनेक युवा भरी जवानी में शहीद हो गए ।
जो स्वतन्त्रता हमें इतने बलिदानों से
मिली । उनसे कुछ स्वार्थी तत्व अपने मौज मजे के लिए कैसे खेल सकते है । हर समाज
में दो तरह का वर्ग होता है एक वो जिनकी आत्मा जीवित होती है जो धर्म संस्कृति
राष्ट्र के लिए कुछ करने मरने के लिए कटिबद्ध होते हैं दूसरा वो जो मात्र अपने
स्वार्थ अपना उल्लू सीधा कर चापलूसी, धोखेबाजी
का रास्ता अपनाते हैं । ऐसे लोग जीते जी पशु होते है जो मात्र अपने पेट प्रजनन
अथवा शरीर तक सीमित रहते हैं । आजादी के लिए बडी संख्या में देश भक्तों की
कुर्बानी चढ गयी । इस कारण आजादी के बाद बडी मात्रा में स्वार्थी लोग जो दूर से
तमाशा देख रहे थे, मौका पाते ही अपने सिर पर देश भक्ति की
टोपी चढाकर बडे-बडे पदों पर चढ बैठे । परन्तु अब भारत माता जाग रही हैं उत्थान व
पलन का क्रम हर जगह चलता हैं । सन् 2011 से
अन्ना हजारे जी के आन्दोलन से पुन: भारत मां के सपूतों में जागृति आयी हैं ।
धीरे-धीरे यह जागृति क्रान्ति में
परिवर्तित होती चली जाएगी । आज एक समस्या ओर बढ गयी हैं असुर कदम वेश से हमारे घर
में घुस आया है । पहले लडार्इ उन अंग्रेजों के खिलाफ थी जो तन से मन से अंग्रेज थे
। आज बडे-बडे पदों पर ऐसे अनेक नेता बैठे है जो मात्र तन से भारतीय है मन से वो
विदेशी संस्कृति अथवा विदेशों से लगाव रखते है व अपना धन भारत मां की सेवा में न
लगाकर विदेशों में निवेश करते हैं बाहर से सफेद वस्त्रों में हाथ जोडकर विनम्रता
पूर्वक प्रणाम करते हैं । परन्तु भीतर से इतने काले है कि रेप, मर्डर, घोटालों में ऊपर से नीचे तक डूबे हुए हैं । इन सामान्य यह पहचान ही
नहीं पाता कि यह सन्त है या असुर । मीडिया के सशक्तिकरण से अब अधिकतर नेताओं व
अधिकारियों की छवि स्पष्ट होने लगी हैं । सन्तो, महात्माओं के कथा प्रवचनों कार्यक्रमों ने लोगों की आत्माओं को
झकझोरना प्रारम्भ किया है । यदि व्यक्ति अपनी आत्मा का कल्याण व परमात्मा की कृपा
चाहता हैं तो सर्वप्रथम उसे सच्चार्इ ओर अच्छार्इ का साथ देना होगा । मन्त्र जप, पूजा पद्धति आदि तो बाद के विषय है ।
आत्म कल्याण का मूल मन्त्र है कि व्यक्ति अपने रिश्ते नाते, मित्रता, सब कुछ भुलाकर सही पथ का चयन करे । चुनाव के समय वोट डालते वक्त साफ
छवि के लोग चुनें । जातिवाद, परिवारवाद, संस्थावाद से ऊपर उठकर राष्ट्रीय सोच
का विकास करें ।
स्वार्थी व्यक्ति को यह लगता है कि वह
अपने व अपने परिवार का भला कर रहा है । परन्तु होता उसके विपरीत हैं । Sort Term
के लिए तो वह सफल हो सकता है परन्तु Long Term
के लिए वह अपने पैरा पर कुल्हाडी मार
रहा होता हैं । इसी प्रकार त्यागी तपस्वी व्यक्ति तत्कालीन कष्ट उठाता दिखता है ।
परन्तु उसका भविष्य सदा उज्जवल होता है । सृष्टि की रचना ही इसी आधार पर हुयी हैं
जो दिखता है वो होता ही नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं । मात्र प्रज्ञावान, विवेकशील लोग ही इस सत्य व तथ्य को जान
पाते है बाकि सब तो एक भ्रम व कल्पना मे जीते हैं । इसी को माया कहा जाता है ।
यह प्रसन्नता की बात हैं कि भारत में
जो नयी पीढी है जो नए बच्चे जन्म ले रहे हें अधिक समझदार, जागरूक व र्इमानदार हैं आने वाले समय
में सूक्ष्म जगत के देव व दानवों का संघर्ष तीव्र से तीव्रतम होता चला जाएगा । देव
शक्तियाँ लोगों को अपना माध्यम बनाएगी व असुर अपने बचाव के लिए लोगों को भ्रमित
करेंगे । जिनमें अच्छे संस्कार हैं, धर्म
संस्कृति से प्रेम करने वाले हैं वो देव सेना में भर्ती हो जाएंगे । जो अहंकारी
हैं, स्वार्थी है, दोष दुर्गुणों में लिप्त है वो आसुरी
वर्ग में शामिल होकर ऐसे-ऐसे घृणित कर्म करेंगे कि जो मानवीय चरित्र को तार-तार कर
देगा । चयन व्यक्ति के हाथ में हैं कि कहां जाय यदि देव वर्ग में जाना चाहते हो तो
सावधानी के साथ अपने चरित्र का अपनी प्रतिभा का साधना के द्वारा विकास करें ।
भगवान इतना देगा कि निहाल हो जाएंगे । यदि व्यक्ति अपनी आत्मिक उन्नति के लिए
प्रयास नहीं करेगा तो आसुरी शक्तियाँ उसे अनर्थकारी प्रयोजनों में उलझाती रहेंगी ।
उसको हैरान व परेशान करती रहेंगी । मेरे सम्पर्क में ऐसे अनेक व्यक्ति आते है जो
यह शिकायत करते है कि हम यह कार्य नहीं करना चाहते थे परन्तु पता नहीं कैसे हो गया
। एक बार हम जिस विद्यालय की प्रबन्ध समिति में हैं उसमें एक केस आया । दसवीं
कक्षा के एक छात्र ने एक छात्रा को बडी गन्दी मेल लिखी । जब लडके से इस बारे में
पूछा गया तो उसने बताया कि एक अजीब सा आवेश उसके ऊपर आया और वह यह काम कर गया ।
छात्रा तो उसकी मित्र थी । अक्सर Chat करते
थे कैसे वह इतना गलत लिख गया । उसे स्वयं पर विश्वास नहीं हो रहा था । परिणाम उसको
भुगतना पडा विद्यालय से उसको निष्कासित किया गया व उसका भविष्य खराब हो गया ।
व्यक्ति के भीतर जागृत कुछ सूक्ष्म केन्द्रों के द्वारा देवी व आसुरी शक्तियाँ
व्यक्ति की चेतना पर अपना प्रभाव डालती है । यह अलग से पूरा विज्ञान है । जिसका
विस्तार यहां उचित नहीं है ।
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