भारत माता को इस भोगवाद की आंधी से
बचाने में नारी जाति एक बडा योगदान दे सकती हैं। भारतीय संस्कृति की गौरव गरिमा को
बढाने में नारियों का प्रयास कम नहीं आँका जाना चाहिए। रोती बिखलती मानवता के दर्द
को नारी जाति से अधिक कौन महसूस कर सकता है। भगिनी निवेदिता व मदर टेरेसा ने अपना
सम्पूर्ण जीवन भारत माता की दुखी संतानो के आँसू पोछने में होम दिया। जीजाबार्इ ही
वीर शिवा का निर्माण कर पायी, देवी
सीता ही लवकुश दे पायी । नारियों की गलतियों का समाज को भारी कीमत भी चुकानी पडी ।
रावण के पिता ऋषि पुलस्तय बडे सज्जत भक्त व तपस्वी प्रवृति के थे परन्तु माता ने
अपनी सन्तानों में अहंकार के बीच बो डाले जिस कारण रावण कुम्भकर्ण आदि भक्त, तपस्वी तो हुए परन्तु उनके अहंकार ने
सब कुछ चौपट कर डाला । यदि रावण की माता ने कुछ गलतियाँ न की होती तो उनके कुल की
यह दुर्दशा न होती । यद्यपि यह कहने सुनने में अच्छा लगता है कि ‘पूत कपूत सुने है माता सुनी न कुमाता’ परन्तु माताएं कर्इ बार बडा खराब रोल
अदा करती हैं । एक बार एक व्यक्ति को फांसी होनी थी जब उसकी अन्तिम इच्छा पूरी की
गयी तो उसने अपनी मां से मिलना चाहा । व्यकित की मां को उससे मिलाया गया । उसने
मां के कान में कुछ कहने के बहाने बुलाया व उसके कान काट लिए । लोग यह देखकर हैरान
रह गए कि एक बेटे ने अपनी मां के कान क्यों कांटे । पूछने पर उसने बताया कि यदि
बचपन में उसकी गलतियों को प्रोत्साहन न देकर रोका होता तो आज उसको यह मृत्युदंड न
मिलता ।
इसलिए भारतीय संस्कृति ने नारी को दो
रूपों में प्रस्तुत किया है । एक ओर उसके शक्ति देवी कहा गया है तथा यह उदघोष किया
है ‘यत्र नायर्स्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ नारियों के सम्मान से देवता प्रसन्न
होते है (अर्थात देवत्व समाज मे बढ़ता हैं)। दूसरी ओर ‘नारी नरकस्य द्वार; भी आचार्य शंकर प्रस्तुत करते है । यह
उन नारियों के लिए है जो स्वच्छन्द होकर पशुवत आचरण करें जैसा पश्चिम अथवा फिल्मी
जगत से जुडी कुछ महिलाएं करती हैं । इन
नारियों के लिए गोस्वामी कहते है । ‘ढोल
ग्वार शूद्र पशु नारी, अकल ताडन के अधिकारी' । आचार्य शंकर के समय बौद्ध मठों में व
समाज में तन्त्र के अन्तर्गत वासना का नंगा नाच चारो ओर हो रहा था । अधिकतर मठ व
मन्दिर वेश्यालयों में परिवर्तित हो चुके थे ।
नारी के चिन्तन चरित्र पर बहुत कुछ
समाज की बागडोर निर्भर है । उदाहरण के लिए एक युवती यदि उलटे सीथे वस्त्र पहनकर
अपने किसी Boy Friend के साथ हंसी मजाक व ठिठौलियां करते सडक
पर घूमे, तो इससे न जाने कितने युवाओं व अन्यों
में कामुकता भडकेगी । यही युवती यदि शाली वस्त्रों में चहेरे पर दिव्यता, सोम्यता लिए मर्यादा के साथ सडक पर
घूमें तो लोगों में पवित्रता का संचार होगा ।
बड़े दुख की बात है कि त्यागी और
तपस्वियों के देश भारत में यौन अपराधों में अन्य अपराधो की तुलना में तीन गुना
अधिक वुद्धि हुयी हैं। आए दिन बलात्कार की दर्दनाक घटनाँए सुनने की मिल रही है। यहाँ तक की कुछ संतो के आश्रमों से
भी वेश्यावृति की दुर्गन्ध आती हैं। फोर्ब्स पत्रिका ने महिलाओं के लिए सबसे
असुरक्षित व खतरनाक देशों की सूची में भारत को टॉप पाँच देशों में शामिल किया हैं।
इस सूची में पहले स्थान पर अफगानिस्तान है। इसके बाद कांगो, पाकिस्तान, भारत और सोमालिया। कितने घटिया देशों
की श्रेणी में गिना जाने लगा है अपना महान भारत।
पत्रकार व प्रबुद्ध वर्ग इस दिशा में
कानून व्यवस्था, राजनेताओं व प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा
रहे है। इसमें कोर्इ दो राय नहीं कि इन व्यवस्थाओं में सुधार होना आवश्यक है।
परन्तु इसका एक मनोवैज्ञानिक पक्ष भी हैं। आप भूखे जानवरो के आगे स्वादिष्ट भोजन
खुला छोड़ दो फिर डण्डे लेकर खड़े हो जाओं। जो भी जाकर भोजन की ओर खाए उसे पीटों व
नियन्त्रित करने का प्रयास करों। समझदारी इसमें है कि आप भोजन को छिपाकर सुरक्षित
रखों। इसी प्रकार दुर्भाग्य से आज मीडिया, चलचित्रों
के कारण समाज पर कामुकता व वासना का नशा छाता जा रहा है। समाज में रह रही सामान्य
युवतियों को पहनावे व चाल चलन इस आग को भड़काने में घी का काम कर रहा है। मीडिया
जिस भोग्या स्परुप में नारियों को दिखाकर धन कमाना चाहता है, नारियाँ भी मर्यादा व लज्जा त्यागकर उस
घिनौने स्परूप को अपनाने में कोर्इ कसर
नहीं छोड़ रही हैं।
भारत माता की बेटियाँ बड़ी गुणवान, प्रतिभावान, चरित्रवान व शालीन हुआ करती थी। मात्र
एक दशक के (दस वर्ष) भीतर समाज बड़े ही घटिया स्तर पर आ खड़ा हुआ है। पश्चिम की
चकाचोंध ने हमारी बहन बेटियों को अंधा कर दिया हैं। भारत की नारियों की गुणवत्ता
इतनी अधिक थी कि एक युवती के स्वंयवर के लिए सैकड़ों राजकुमार इकठठे होते थे और
युवती किसी श्रेष्ठ चरित्रवान का स्वंय वरण करती थी। आज उसी युवती ने भोड़े लिबास
पहनकर पुरुष वर्ग को आकर्षित करने के चक्कर में अपनी संस्कृति व सभ्यता को खाक में
मिला दिया है। यदि कामुकता व वासना का नशा समाज पर हावी हुआ तो मात्र कानून या
प्रशासन के सहारे इसको रोकना सम्भव नहीं हो पाएगा।
समाज को इस पतन से बचाने के लिए
नारियों को एक बड़ी भूमिका निभानी है। नारी को शक्ति कहा जाता है, नारी ही वह शक्ति है जो समाज को पशुत्व से देवत्व की और
ले जा सकती है। भारतीय समाज में नारी जाति को सदा सम्मानीय व उच्च दृष्टि से देखा
जाता रहा है। वैदिक ज्ञान के क्षेत्र में गार्गी व भारती देवी, साधना के क्षेत्र में अनुसुइया व
सावित्रि, स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय लक्ष्मी
बार्इ व दुर्गा भाभी का नाम इतिहास में सदैव स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं। देवी
गार्गी ने अपने समय के सर्वश्रेष्ठ विद्वान याज्ञवल्क्य जी को व भारती जी ने
आचार्य शंकर को अपने प्रश्नों द्वारा निरुत्र्र कर दिया था परन्तु अपनी विनम्रता
वश इन्ही को सर्वश्रेष्ठ विद्वान घोषित किया। एक बार की रोमांचक घटना है एक राजपूत
राजा (newly married) अपनी रानी के मोहवश शत्रुओं से युद्ध
किए बिना समर्पण कर रहा था। रानी को यह बुजदिली बर्दाश्त नहीं हुर्इ उसने तुरन्त
राजा की तलवार से अपना सिर काटकर मातृभूमि के लिए सर्वप्रथम अपना बलिदान दे डाला।
इस घटना से राजपूतों के लहू उबल पड़े व दुश्मनो को बुरी तरह पराजित कर दिया। किसी
ने ठिक ही कहा है-
तुम प्रेरणा, संवेदना, करुणा, क्षमा की मूर्ति हो,
नर की अनेक न्यूनताओं की तुम्ही तो
पूर्ति हो,
तुम हो समय की शक्ति, पहचानो स्वंय को देवियों,
तोड़ बन्धन जग के, त्याग तप का जीवन जियो।
होगी तुम्हारी शक्ति अपराजेय तब
नारायणी।
उत्कृष्टताओं के लिए होगा जग तुम्हारा
ऋणी।
अब रुढियों, जड़ क्षुडताओं से न अभिशपित रहो,
हो मुक्त सीमत बन्धनों से, किन्तु मर्यादित रहो,
अब हर दिखाना त्यागकर, तुम आत्मबल जाग्रत करो,
इसके लिए नारीत्व की गरिमा न तुम आहत
करो,
तुम मात्र काया हो नहीं, न हो तुम रमणी कामिनी।
तुम हो भारत माता, इस जग की तुम स्वामिनी।।
यह रुप भोग्या का तुमने, स्वीकार कैसे कर लिया?
आधुनिकता के वेश में, आत्मघाती पथ वरण किया।
तुम भगवती, दुर्गा तुम्ही,
तुम
शक्ति का भण्डार हो,
हो रुप , जिसमें सौम्यता का हर समय संचार हो,
हे यह सुनिश्चित कल बनेंगी नारियाँ ही
अग्रणी।
अत्कृष्टताओं के लिए होगा तुम्हारा जग
ऋणी।
उद्वार नारी का स्वंय बढ़कर करेगी
नारियाँ,
अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध उठेंगी आग की चिंगारियाँ।।
भारत में मुगलों के आक्रमण के पश्चात
उनको समाज में बहुत पीड़ा सहनी पड़ी। खुली हवा में साँस लेना उनके लिए कठिन हो
गया। पैरो की जूती बनाकर पर्दो में कैद कर रख दिया गया। उन्हें भेड बकरियों की तरह
राजाओं के हममों में ठूँस-2 कर भरा जाता था, व्यापारियों की दुकानों में उनका सौदा
होता था। अमीर लोग उन्हें शरीर तृप्ति व भोग्या से अधिक कुछ न समझते थे। देव कृपा
नारी को आज समाज में अपना गरिमापूर्ण स्थान तो मिला। परन्तु दुर्भाग्य नारी अपने
श्रेष्ठ चरित्र व आदर्श रुप को समाज के सामने प्रस्तुत नहीं कर पायी। यदि नारी
ने पश्चिम का अन्धानुकरण करना न छोड़ा तो
समाज के अध:पतन की जिम्मेदार नारी को ही घोषित किया जाएगा। कामुकता व वासना की आग
में सम्पूर्ण समाज निस्तेज हो जाएगा। युवक प्रमेह व युवती ल्यूकोरिया जैसे रोगों
के कुच्रक में फँस जाएगा। वो नहीं जानते कि उन मौज मस्तियों व खुलेपन से वो नरक के
द्वार पर आ खड़े हुए है। इसी
कारण देव भूमि भारत जहाँ जलवायु व स्वास्थ्य विश्व में सर्वोतम होते थे आज
बीमारीयों का हब (hub) बन रहा है।
नारी का यह भौंड़ा स्वरुप देवसताँए, ऋषि सताँए सहन नहीं कर सकती इसके लिए
जो भी उत्तरदायी है चाहे वो कलाकार हों, अमीर
वर्ग हो अथवा बड़े अधिकारी हो उन्हें तुरन्त चेतने की आवश्यकता है अन्यथा इसके
दुष्परिणाम सबको भुगतने होगें। भारत की भुमि पर मार्यादा हीन आचरण व घटिया फैशनेबल
ड्रेसस किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। क्या नारी अपना आत्मसम्मान ग्ंवाकर
भोग विलास में उलझकर रह जाएगी। होना तो यह चाहिए था कि नारियाँ अश्लील फिल्मों
एडवरटाइजमेंटस व इन्टरनेट साइटस को विरोध करती परन्तु उनको देख-2 कर अपने को वैसा रुपान्तरित करने का
प्रयास यह कितना घिनौना कार्य है। न जाने कैसे देवी स्वरुपा, शक्ति स्वरूपा मानि जाने वाली नारी
इसको अपना रही है। शीघ्र ही वह समय आ है जब नारियों को अपनी गलती का अहसास होगा व
नारी अपने महान स्वरूप का वरण कर धर्म संस्कृति व मानवता की रक्षा के लिए अपना
सर्वस्व न्यौछावर कर देगी।
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