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वर्तमान परिस्थितियाँ कैसी ही
विषम अथवा उलझी
हुई क्यों न
हों, उनके बीच
भी बहुत कुछ
करने का मार्ग
निकल सकता है।
‘जहाँ चाह वहाँ
राह’ वाली उक्ति
मिथ्या नहीं है।
साहस हमें एकत्रित
करना ही होगा।
कायरता और भीरुता,
स्वार्थ और संकीर्णता
से, अज्ञान और
व्यामोह से ग्रसित
आज के जन-मानस की
एक इकाई ही
हमें नहीं बन
जाना है वरन
सजग विवेकवानों की
तरह एकाकी अपने
पैरों पर खडे़
होना और आगे
बढ़ना होगा। हमें
शूरवीरों की तरह
साहसी बनना है।
समय की पुकार
हम अनसुनी न
करें। युग की
चुनौती स्वीकार करने से
हम न कतरावें,
यही उचित है।
साहस ने हमें
पुकारा है। समय
ने, युग ने,
कत्र्तव्य ने, उत्तरदायित्व
ने, विवेक ने,
पौरुष ने हमें
पुकारा है। यह
पुकार अनसुनी न
की जा सकेगी।
आत्मनिर्माण के लिए,
नवनिर्माण के लिए
हम काँटों से
भरे रास्तों का
स्वागत करेंगे और आगे
बढें़गे। लोग क्या
कहते और क्या
करते हैं इसकी
चिंता कौन करे?
अपनी आतमा ही
मार्गदर्शन के लिए
पर्याप्त है। लोग
अँधेरे में भटकते
हैं भटकते रहें,
हम अपने विवेक
के प्रकाश का
अवलंबन कर स्वतः
आगे बढ़ेंगे। कौन
विरोध करता है,
कौन समर्थन, इसकी
गणना कौन करे?
अपनी अंतरात्मा, अपना
साहस अपने साथ
है। सत्य के
लिए, धर्म के
लिए, न्याय के
लिए हम एकाकी
आगे बढ़ेंगे और
वही करेंगे जो
करना अपने जैसे
सजग व्यक्तित्वों के
लिए उचित और
उपयुक्त है।
युग को बदलना
है इसलिए अपने
दृष्टिकोण और क्रिया-कलाप का
परिवर्तन साहस के
साथ या दुस्साहसपूर्ण
करना ही होगा।
इसके अतिरिक्त और
कोई मार्ग नहीं।
समय की चुनौती
हमें स्वीकार करनी
ही होगी।
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