Thursday, June 6, 2013

गाय का महत्त्व (भाग -1)


गोवंश रक्षण, पालन तथा संवर्ध्न
      हिन्दु गाय को परम्परा से माता मानते आए हैं, परन्तु गौ केवल हिन्दुओं की माता ही नहीं है अपितु गावो विश्वस्य मातर:- गौवें समस्त विश्व की माता हैं। गाय समान रूप से विश्व के मानव मात्रा का पालन करने वाली मां है। गो के शरीर में तैंतीस करोड़ देवता निवास करते हैं। एक गाय की पूजा करने से स्वयंमेव करोड़ों देवतओं की पूजा हो जाती है। माता: सर्वभूतानाम गाव: सर्वसुखप्रदा:- गाय सब प्राणियों की माता है और प्राणियों को सब प्रकार के सुख प्रदान करती है।
गाय का धर्मिक, सांस्कृतिक महत्त्व
      Íगवेद में गाय को अघन्या कहा है। यजुर्वेद कहता है, गो:मात्राा  विद्यते अर्थात् गो अनुपमेय है। अथर्ववेद में गाय को ध्ेनु: सदनम् रयीणम् अर्थात् गाय संपत्तियों का घर है। अमृतपान से ब्रह्मा जी के मुख से पफेन निकला, उससे गोएं उत्पत्रा हुर्इ। ब्रह्माण्ड पुराण में भगवान व्यासदेव ने गो-सावित्राीस्तोत्रा में कहा, समस्त गौएं साक्षात् विष्णुरूप् हैं, उनके सम्पूर्ण अंगों में भगवान केशव विराजमान रहते हैं। पद्यपुराण का कथन है, गौ के मुख में ाडड्ग और पदक्रम सहित चारों वेद रहते है। स्कन्द पुराण के अनुसार गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगोमय हैं। महाभारत में कहा है, अंगों और मंत्राों सहित समस्त वेद हर्षित होकर नाना प्रकार के मंत्राों से गौ की स्तुति करते हैं। ब्रह्मा-विष्णु-महेश कामध्ेनु की स्तुति निम्न प्रकार करते हैं: त्वं माता सर्वेदेवाना त्वं  मत्तस्य कारणम्। त्वं तीर्थ तीर्थानां नमस्ते¿सतु सदानघे। भगवान कृष्ण को सारा ज्ञानकोष गोचरण से ही प्राप्त हुआ। जिससे आगे चलकर संसार (ार करने वाली गीता का ज्ञान निकला। श्रीकृष्ण गो सेवा से जितने शीघ्र प्रसन्न होते हैं, उतने अन्य किसी सेवा से नहीं। गणेश भगवान का सिर कटने पर महादेव का दाम एक गाय रखा गया और वही पार्वती को देनी पड़ी।
      हम जानते हैं कि भगवान राम के पूर्वज महाराज दिलीप नन्दिनी गाय की पूजा करते थे और उसके पीछे-पीछे घूमते थे। एक बार सिंह ने उनकी गाय पर आक्रमण कर दिया। महाराज दिलीप ने गाय को छोड़ने के बदले सिंह को अपना शरीर अर्पण कर दिया। भगवान परीक्षा ले रहे थे जिसमें महाराजा दिलीप उत्तीर्ण हुए और उनको संतान की प्राप्ति हुर्इ। इसी से उनका वंश चला और हमको भगवान राम जैसे महापुरुष की प्राप्ति हुर्इ।
      भगवान कृष्ण का एक सर्वप्रिय नाम गोपाल है। वे नंगे पांव गायों को चराते थे। इन्द्र के प्रकोप को टालने के लिए उन्होंने ग्वालों को साथ लेकर गोवर्ध्न पर्वत को उठाकर गोवंश ओर समाज की रक्षा की। भगवान माखन चोर कहलाते हैं। वे  केवल स्वयं मक्खन खाते थे अपने ग्वालबालों को भी खिलाते थे। भगवान भोलेनाथ शिव का वाहन, नन्दी कहते हैं भारत के
दक्षिण की ओंगोल नस्ल का सांड था। जैन आदि तीर्थकर भगवान )षभदेव का चिन्ह बैल था।
      सब ओर शिव मंदिरों में नन्दी की मूर्ति रहती है जो भगवान शिव के मंदिर के सामने उनकी ओर मुंह किए रहती है। भगवान कृष्ण अपनी बांसुरी से  केवलर गौओं को रिझाते थे, परंतु दूध् निकालने के समय भी उनको बांसुरी की ध्ुने सुनाते थे। आजकल गोदुग्ध् लेते समय संगीतवादन उसी परम्परा का एक भाग है।
      प्राच्य जगत में हिन्दुओं की गो पूजा के समान ही पारसी लोग सांड की पूजा करते थे। वहां के प्राचीन सिक्कों पर तथा पिरामिड में बैलों की मूत्तियां अंकित है। इजिप्शियन चित्रा लेखों में 1995 में पूर्ण गोपुराण का अनुवाद हुआ। र्इस्वी पूर्व छठी शताब्दी से भारत के स्वतंत्रा होने तक गौ और वृषभ प्राय: अ​िध्कांश शासकों के सिक्कों पर अंकित रहते थे।
      गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार ध्र्म, अर्थ, काम मोक्ष में चारों पफल गाय के चार थन हैं। संत एकनाथ भागवत ध्र्म में गोसेवा का विशेष स्थान बताते हैं। महात्मा नामदेव ने दिल्ली के बादशाह के आह्वान पर मृत गाय को जीवन दिया। शिवाजी महाराज को समर्थ रामदास की कृपा से गो ब्राह्मण प्रतिपालक उपाध् िप्राप्त हुर्इ। दशम गुरु गोविन्दसिंह ने चण्डी दी वार में दुर्गा भवानी से गो-रक्षा की मांग की है: यही देहु आज्ञा तुर्क गाहै खपाऊं। गऊघात का दोष जग सिउ मिटाऊं। उन्होंने यह भी कहा: यही आस पूरन करो तू हमारी, मिटे कष्ट गौअन, छटै खेद भारी।।
      भगवान बु( को गया के पास उस क्षेत्रा के सरदार की बेटी सुजाता द्वारा गायों की दूध् की खीर खाने पर तुरंत ज्ञान और मुक्ति का मार्ग मिला। गाय को वे मनुष्य की परममित्रा गावो नो परमा मित्ता कहते हैं। जैन आगमों में कामध्ेनु को स्वर्ग की गाय कहा है और प्राणिमात्रा को अवèया माना है। भगवान महावीर स्वामी के अनुसार गो रक्षा बिना मानव रक्षा संभव नहीं। पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने कहा है, गाय का दूध् रसायन, गाय का घी, अमृत तथा मांस बीमारी हैं। साथ ही गाय दौलत की रानी है। र्इसा मसीह ने कहा है, एक बैल को मारना, एक मनुष्य को मारने के समान है।
      आध्ुनिक महापुरुषों ने भी गौ के सम्बन्ध् में अपने विचार व्यक्त किए हैं। स्वामी दयानन्द सरस्वती गो करुणा निध्ि में कहते हैं, एक गाय अपने जीवनकाल में 8, 10, 660 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है, जबकि उसके मांस से 50 मांसाहारी केवल एक समय अपना पेट भर सकते हैं। पूज्य गांध्ी जी ने कहा है, गोरक्षा का प्रश्न स्वराज्य के प्रश्न से भी अध्कि महत्त्वपूर्ण है। उनका कहना है, गोवंश की रक्षा र्इश्वर की सारी मूक सृष्टि की रक्षा करना है। भारत की सुख-समृ(ि गौ के साथ जुड़ी हुर्इ है। गाय उन्नति और प्रसन्नता की जननी है। गाय कर्इ प्रकार से अपनी जननी से
भी श्रेष्ठ है।
      लोकमान्य बालगंगाध्र तिलक ने कहा था कि स्वतंत्राता प्राप्ति के बाद कलम की एक नोक से पूर्ण गोहत्या बंद कर दी जाएगी। चाहे तुम मुझे मार डालो, पर गाय पर हाथ  उठाओं।  प्रथम राष्ट्रपति डाñ राजेन्द्रप्रसाद ने कहा था, ‘‘भारत में गोपालन सनातन ध्र्म है। पूज्य देवराहा बाबा कहते थे, जब तक गोमाता का रुध्रि भूमि पर गिरता रहेगा, कोर्इ भी धर्मिक तथा सामाजिक अनुष्ठान सपफल नहीं होगा। भार्इ हनुमान प्रसाद पौ(ार कहते हैं, जब तक भारत की भूमि पर गोरक्त गिरेगा, तब तक देश सुख-शांति और ध्न-धन्य से वंचित रहेगा। स्व जयप्रकाश नारायण जी कहते थे, हमारे लिए गोहत्या बन्दी अनिवार्य है।
गाय का वैज्ञानिक महत्त्व:
1.    गाय के दूध में रेडियो विकिरण (एटामिक रेडिएशन) से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है ऐसा रूसी वैज्ञानिक शिरोविच कहते है।
2.    गाय कैसा भी तृण पदार्थ यहां तक की विषैला भी खाए, उसका दूध तब भी निरापद एवं शुद्ध होता है।
3.    जिन घरों में गाय के गोबर से लिपार्इ-पुतार्इ होती है, वे घर रेडियो विकिरणों से सुरक्षित होता है।
4.    गाय का दूध हृदय रोग से बचाता है।
5.    गाय का दूध शरीर में स्फूर्ति, आलस्यहीनता तथा चुस्ती लाता है।
6.    गाय का दूध स्मरणशक्ति को बढ़ाता है।
7.    गाय के घी के अग्नि पर डालकर घुआं करने अथवा इससे हवन यज्ञ करने से वातावरण एठामिक रेडिएशन से बचाता है।
8.    गाय एवं उसकी संतान के रंभाने की आवाज से मनुष्य की अनेक मानसिक विकृतियाँ एवं रोग स्वयमेव दूर हो जाते हैं।
9.    मद्रास के डा किंग के अनुसंधन के अनुसार गाय के गोबर में हैजे के कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति है।
10.   क्षय रोगियों को गाय के बाड़े या गोशाला में रखने से गोबर और गोमूत्र की गंध से क्षय रोग की कीटाणु मर जाते हैं।
11.   एक तोला घी से यज्ञ करने पर एक टन आक्सीजन बनता है।
12.   रूस में प्रकाशित शोध जानकारी के अनुसार कत्लखानों से भूकम्प की संभावनाएं बढ़ती हैं।
13.   गाय की रीढ़ में सूर्यकेतु नाड़ी होती है जो सूर्य के प्रकाश में जागृत होती है। नाड़ी के जागृत होने पर वह पीले रंग का पदार्थ छोड़ती है। अत: गाय का दूध पीले रंग का होता है। यह केरोटिन तत्व सर्वरोग नाशक, सर्वविष विनाशक होता है।
14.   गाय के घी को चावल के साथ मिलाकर जलाने से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गैसें, जैसे इथीलीन आक्साइड, प्रोपलीन आक्साइड आदि बनती है। इथीलीन आक्साइड गैस जीवाणु रोधक होने के कारण ऑप्रेशन थियेटर से लेकर जीवन रक्षक औषधि बनाने के काम आती है। वैज्ञानिक प्रोपलीन आक्साइड गैस को कृकृत्रिम वर्षा का आधार मानते हैं।
गाय का आर्थिक महत्त्व:
     राष्ट्रीय आय का प्रतिवर्ष एक बड़ा भाग ; 3 से 5 प्रतिशतद्ध पशुध्न से प्राप्त होता है।
     50 हजार मेगावाट अश्वशक्ति पशुध्न से प्राप्त होती है।
     5 करोड़ टन दूध् प्रतिवर्ष पशुध्न से प्राप्त होता है और अब तो भारत सबसे बड़ा दूध् उत्पादक देश हो गया है।
     लाखों गैलन गोमूत्रा ;कीटनियंत्राकद्ध गोवंश से प्राप्त होता है।
     राष्ट्र की कुल विद्युत शक्ति का लगभग 10 प्रतिशत पशुशक्ति से प्राप्त हो सकता है। एक गोवंशीय प्राणी के गोबर से बनी केवल नाडेप खाद का मूल्य न्यूनतम 20 हजार रुपये होता है।
     गोवंश  केवल उत्तम दूध्, दही, छाछ, मक्खन, घी देता है बल्कि औष​िध्यों और कीट नियंत्राकों का आधर गोमूत्रा भी देता है। साथ ही उत्तम जैविक खाद का Ïोत गोबर भी देता है।
     भारतीय गोवंश से खेती के आधर उत्तम बैल प्राप्त होते हैं। अभी भी 50 प्रतिशत खेती में हल चलाने का काम बैलों से लिया जाता है।
     बैल भार ढोने के काम भी आते हैं। उनसे भारतीय रेलों की अपेक्षा अध्कि यातायात का काम लिया जाता है।
     भारतीय गोवंश के मूत्रा और गोबर से लगभग 32 औष​िध्यों का निर्माण किया जा रहा है। उनमें से कापफी औष​िध्याँ महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि सरकारों से मान्यता प्राप्त है।
     गोमूत्रा, गोबर, दूध्, छाछ आदि से मनुष्योपयोगी दवाओं के निर्माण केन्द्र देवलापार ;नागापुरद्ध के अनुसंधन केन्द्र को नागपुर स्थित भारतीय शोध् संस्थान नीरी द्वारा शोध् संस्थान के तौर पर मान्यता दी गर्इ है। 
     भारत की खेती हमारे गोवंश पर और गोवंश भारतीय खेती पर निर्भर है। एक के बिना दूसरे की उत्राति की कल्पना नहीं की जा सकती। वैज्ञानिक चकाचौंध् में भारतीय गोवंश का भारत के मुख्य ध्ंध्े खेती में उपयोग भूलाया जा रहा है।
     गोमूत्रा में तांबा होता है जो मनुष्य के शरीर में पहुँच कर स्वर्ण में परिवर्तित हो जाता है। स्वर्ण में सर्वरोगनाशक शक्ति होती है।
     बुलन्दशहर में बैल चालित ट्रैक्टर का निर्माण हुआ है। किसान बैठकर खेती के अनेक कार्य कर सकेगा और आयातित डीजल की आवश्यकता नहीं होगी।

     गोमूत्रा में अनेक रसायन होते हैं जैसे नाइट्रोजन, कार्बोलिक एसिड, दूध् देती गाय के मूत्रा में लेक्टोज, सल्पफर, अमोनिया गैस, कापर, पोटेशियम, मैंगनीज, यूरिया, साल्ट तथा अन्य कर्इ क्षार, आरोग्यकारी अम्ल आदि होते हैं।
     गाय के गोबर में 94 प्रकार के उपयोगी खनिज पाए जाते हैं।
     आज के प्रदूषण की विकट समस्या डीजल, पेट्रोल, कार्बनडायआक्साइड के कारण पैदा होती है। इसका एक हल गोबर-गोमूत्रा तथा वनस्पतियों का उपयोग बढ़ाना है।
     मरे पशु के एक सींग में गोबर भरकर भूमि के दबाने से कुछ समय के उपरान्त एक एकड़ भूमि के लिए सींग या अणु खाद प्राप्त होती है।
     मरे पशु के शरीर को भूमि में दबाने से कुछ मास में समाध् िखाद मिलता है। जो कर्इ एकड़ भूमि के लिए उपयोगी होता है।
     गोमूत्रा में आक, नीम या तुलसी आदि उबालकर कर्इ गुना पानी में मिलाकर बढ़िया कीटनियंत्राक बनते हैं।
     गोबर का खाद ध्रती का प्राकृतिक आहार है। इससे ध्रती की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। ऐसा भारत में हजारों वर्ष से होता आया है। इसके विपरीत रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से ध्रती की उर्वरा शक्ति घटकर बंजर होने के कगार पर पहुंच गयी है।
     बायो-गैस ;जैविक खाद संयत्रांद्ध ने èयप्रदेश के ग्राम मोहद, जिला नरसिंहपुर में नर्इ क्रांति को जन्म दिया है। गैस, र्इंध्न और चालक शक्ति के तौर पर प्रयोग हो रहा है। गैस से बिजली का निर्माण हो सकता है।
     भारत में 54 करोड़ कृषि योग्य भूमि है। प्रति एकड़ भूमि को पांच टन जैविक खाद चाहिए अर्थात् कुल 250 करोड़ टन। घट गए गोवंश से केवल 40 ;चालीसद्ध करोड़ टन गोबर उपलब्ध् है। इसमें 92 करोड़ जलाने में  जाता है। शेष बचा 25 करोड़ टन। वर्तमान (ति से गोबर सूखने पर केवल 5 करेाड़ टन गोबर गैस मिलेगा। नडेप कम्पोस्ट खाद (ति से एक किलो गोबर से तीस किलो तक खाद मिलेगा। हमारी आवश्यकता की पूर्ति इस जैविक (ति की खादों से हो सकती है।
     नडेप काका ;नारायणदेव पांढरी पाण्डेद्ध तीन देसी गायों को पालकर वार्षिक लगभग 2 लाख 85 हजार रुपये केवल गोबर के उत्पाद से प्राप्त करते हैं जिसमें साबुन, अंगराग पाऊडर, कम्पोस्ट खाद, दीवार रंग, ध्ूपबत्ती आदि सम्मिलित हैं। नडेप कम्पोस्ट खाद को महाराष्ट्र  राजस्थान सरकारों के कृषि विभाग  आर्इñआर्इñटीñ दिल्ली, आर्इñपीñसीñएलñ बडौदा ने मान्यता प्रदान की है।
     देवलापुर नागपुर स्थित गोविज्ञान अनुसंधन केन्द्र में 983 गोवंश पर आधरित उत्पादों से 40 परिवारों को रोजगार मिल रहा है। यहां पर किए
जा रहे सपफल अनुसंधनों के परिणामों से कर्इ असाè रोगों की प्रभावी चिकित्सा संभव हुर्इ है।
     पंचगव्य आयुर्वेद  गोवंशाधरित कृषि तन्त्रा को अपनाने से देश के सभी गावों में रोजगार मिल सकेगा। इससे पर्यावरण  जनस्वास्थ भी सुरक्षित रहेगा।
     विदर्भ ;नागपुर के आस पासद्ध के सूचीब( किसान जैविक खेती कर रहे हैं।
     महाराष्ट्र के मनोहरराव परचुरे, एडवोकेट, भास्कर हरि सावे, आनन्दराव सूबेदार, मोहनशंकर देशपाण्डे, अशोक संघवी जैसे बड़े-बड़े किसान ;सौ-सौ एकड़ से अध्कि भूमिद्ध पर जैविक खेती कर रहे हैं।
     कर्नाटक, गुजरात, èयप्रदेश में जैविक खेती निरन्तर प्रगति पर है। गोबर से बने जैविक खाद और गोमूत्रा से बने कीटनियंत्राकों का ही प्रयोग होता है।
     गोविज्ञान अनुसंधन केन्द्र, देवलापार, नागपुर  अन्य ऐसे ही सपफल प्रयोगों से सि( हो गया है कि महात्मा गांध्ी के चरखा आन्दोलन से भी अध्कि प्रभावी रोजगार  ग्रामीण तथ्यों के आधर पर दूध्  देने वाला गोवंश स्वावलम्बन का साध्न है।
     कृषकों एवं गोपालकों में जनजागरण हेतु देश में 92 गोवंश रक्षा जनजागरण रथ, विश्व हिन्दु परिषद् के माèयम से विभिन्न प्रदेशों में लोक जागृति का कार्य कर रहे हैं।
5 हमारी दृढ़ धरणा है कि केवल गो माता ही नहीं, सम्पूर्ण गोवंश की रक्षा होनी चाहिए। गोवंश को कटने से बचाना चाहिए। कत्लखाने, या​िन्त्राक वध्शालाओं सहित, बन्द होने चाहिए। मांस निर्यात पर प्रतिबंध् लगना चाहिए। हमारी गोवंश की कल्पना पश्चिम से भिन्न है। हम गाय दूध्, दही, घी, लस्सी, मक्खन के लिए तथा बैल हल चलाने एवं बोझ ढोने के लिए तथा दोनों को उनके गोबर और गोमूत्रा के लिए पालते हैं। पश्चिम में गोवंश कृषि के लिए उपयोगी नहीं होता। वहां दो प्रकार की गौएं पाली जाती हैं- दूध् के लिए तथा मांस के लिए। दूध् के लिए जर्सी, होलस्टेन आदि नस्लें है। मांस के लिए पाली जाने वाली गौओं को मोटा-ताजा बनाया जाता है।
हमारे गोवंश का मुख्य उत्पाद गोबर तथा गोमूत्रा है, जो भारतीय कृषि के लिए उत्तम जैविक खाद तथा बढ़िया पफसलें कीटनियंत्राक निर्माण करने तथा भूमि की उर्वरता बनाए रखने एवं बढ़िया पफसलें प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। भारतीय गोवंश जीवन भर अनुत्पादक नहीं होता। मरने के बाद भी मनुष्य को अनेक प्रकार के लाभ देता हैं जीते ही गोवंश गोबर, गोमूत्रा देता ही है जो खेती के लिए बहुत आवश्यक और किसान के लिए उपयोगी होते हैं। इन्हीं के उपयोग से उन पर होने वाले व्यय से कर्इ गुना आय प्राप्त
हो सकती है।

1 comment:

  1. pl. send all publications to
    Pandit [ CA ] Dr sanjay kumar jha
    201-203 , jagat trade centre frasar road
    patna-800001

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