Friday, June 14, 2013

न्यूनतापूरक आहार

न्यूनतापूरक आहार
(वेद प्रकाश)
            भारतीय योग संस्थान, रोहिणी में आये आधुनिक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों से मिलकर अनुभव हुआ है कि अधिकतर लोग आवश्यकता से अधिक दवाइयां या न्यूनतापूरक भोजन (Supplementary Foods) खाते है। ये कृत्रिम भोजन व्यक्ति में बीमारी के कारण शरीर में आई न्यूवता को पूरा करने के लिए डॉक्टर खाने की सलाह देते है। लेकिन आश्चर्य होता है कि आज तक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला, जिसने रक्तचाप, मधुमेह, सर्वाइकल, सायटिका , कंधे एवं कलाई के दर्द, घुटने एवं जोड़ों के दर्द, गैस या कब्ज आदि आधुनिक रोगों से दवाइयां या पूरक भोजन खाकर मुक्ति पाई हो। कृत्रिम भोजन एवं दवाइयां शरीर में नकारात्मक ऊर्जा पैदा करती हैं।  वास्तविकता यह है कि इन बीमारीयों से इतने लोग नहीं मरते, जितने कि रोग से छुटकारा पाने के लिए खाई गई दवाइयों से मरते हैं। देखा गया है कि जिन लोगों ने अपने भोजन एंव दिनचर्या को व्यवस्थित कर  लिया है, वे सब बिना दवाइयों के रोग मुक्त हो गये हैं।
            जरा समझने का प्रयास करें कि जो कैल्शियम की गोलियां खाते हैं उससे पाचनतंत्र खराब हो जाता है। ऐसे खाया गया कैल्शियम हड्डियों तक नहीं पहुंचता। लेकिन इस प्रकार खाये कैल्शियम से नस-नाड़ियों की सूजन, पाचनतंत्र, किडनी,  लीवर, हृदय और रक्तचाप पूर्णरूपेण प्रभावित होते हैं। इससे भी अधिक नुकसानदायक होता है आयरन की गोलियां खाना जिससे गैस, कब्ज, नस-नाड़ियों में ऐंठन, मांसपेशियों का कड़ा हो जाना स्वाभविक हो जाता है।
            आजकल नौजवान युवक एवं युवतियां विशेषकर जो जिम जाते हैं, वे सब शरीर के सुड़ौल बनाने के लिए और वनज घटाने के लिए प्रोटिन खाते हैं। इससे इन लोगों को पाचनतंत्र, कमर दर्द, कब्ज, मासिक धर्म की अनियमितता  आदि रोगों से पीड़ित पाया है। नेशलन इंस्टीट्यूट ऑफ न्युट्रिशन, हैदराबाद ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि करीब 70 प्रतिशत भारतीय, जो शहरो में रहते है, अधिक प्रोटीन खाकर बीमार हो रहे हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति को अपने शरीर के एक किलो भार के लिए एक ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन चाहिए और शहरों में प्रति व्यक्ति यह खपत पांच ग्राम है। इसके कारण अग्न्याशय, आमाशय, किडनी, लीवर आदि की बीमारियां बढती जा रही हैं।
            कृत्रिम तरीकों से विटामिन खाना मानव शरीर को और अधिक खराब कर रहा है। जेना विश्वविद्यालय, जर्मनी के प्रोफेसर माइकल रिक्टो की टीम ने अपने अनुसंधान में पाया है कि विटामिन सी एवं ई  खाने से मधुमेह के रोगियों को दी गई इन्स्युलिन का स्पन्दन समाप्त हो गया। लेकिन जब इन विटामिन्स की फलों एवं सब्जियों से पूर्ति की गई, तब ऐसा नहीं हुआ। जो विटामिन वसा में घुलनशील हैं जैसे कि  , डी, ई एव के आदि, उनकी अधिकता शरीर के लिए घातक है। पानी में घुलनशील विटामिन जैसे कि  बी एवं सी का अवशेषित भाग शरीर से बाहर चला जाता है लेकिन वसा में घुलनशील विटामिन का अधिकतर भाग शरीर से बाहर नहीं निकलता।  इससे शरीर का संतुलन बिगड़ना ,चक्कर आना तथा पागल तक होने की समस्याएँ हो जाती है।
            कृत्रिम तरीकों से बनाये गये विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन का मिश्रण सदैव दोषपूर्ण रहता है। प्रकृति द्वारा प्राप्त खाद्य पदार्थो का मिश्रण ही सम्पूर्ण है। अमेरिका की एक कम्पनी Consumer Lab. Com ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि 30 प्रतिशत से भी अधिक बाजार में प्राप्त विटामिन, प्रोटिन आदि का मिश्रण दोषपूर्ण ही नहीं, वरन् मानव शरीर के लिए अहितकारी है। उदाहरण के लिए विटामिन    के अंदर फॉलिक एसिड, नाइसिन एवं जिंक का मिश्रण होता है। यदि इसमें नाइसिन अधिक हो जाएगा तब शरीर में खारिश सी लगेगीं। जिंक अधिक होगा तो शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति कम होकर एनीमिया तक हो जाता है और यदि फॉलिक एसिड अधिक होगा तो मुत्ररोग हो जाते है। लेकिन जब यही विटामिन ए प्रकृति से प्राप्त होगा तब ऐसा  कुछ नहीं होता। ऐसा ही कैल्शियम के साथ है जिसके मिश्रण में कार्बोनेट,  साइट्रेट और  फोस्फेट तक निश्चित मात्रा में होने चाहिए, वरना इससे हानियां बहुत अधिक है।
            जो न्यूनतापूरक भोजन खाने का चलन चला है वह शरीर को रोगी बनाता है।  भ्रमवश मानव इस चलन से बच नहीं पा रहा है। स्वाभाविक आहार से सुंदर कोई औषधि नहीं है। युक्ताहार से रोगों से मुक्ति मिलती है। कृत्रिम आहार दोषपूर्ण है और शरीर को रोगी करता है। कृत्रिम आहार शरीर  को कोई भी ऊर्जा या शक्ति नहीं देते। ऐसे आहार पाचक रसों का विघटन करते हैं और सर्वदा रोग पैदा करने का कारण बनाते हैं। अत: अपने आहार को औषधि बनाएं।

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