जटामासी रक्तचाप की अदभुत बूटी है,
जिसे भूतजटा,
जटिला व तपस्वी भी कहते है। यह हिमालय व पश्चिमी बंगाल में गंगा तट पर बहुत होती है। यह सदाबहार बूटी है। इसको चूर्ण रूप में एक या दो चाय चम्मच की मात्रा में ले सकते हैं या काढ़े के रूप में शहद के साथ भी ले सकते हैं। काढ़ा बनाने के लिए गिनती में तीन या चार टुकड़े लेकर किसी मिट्टी के बर्तन में एक गिलास पानी के साथ तब तक उबालें जब तक पानी आधा न रह जाए।
आधे से एक तक चाय की चम्मच भर जटामासी चूर्ण को मधु या मिश्री के घोल के साथ सेवन करने से रक्तचाप सामान्य हो जाता है। जटामासी का अनिद्रा,
हृदय रोग,
उन्माद (पागलपन) तथा बालों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। चक्कर आना,
नाड़ी की दुर्बलता दूर करने में यह आदर्श औषधि है। हस्तलिखित प्राचीन ग्रंथों में इसका अदभुत वर्णन मिलता है। ‘‘नार्दन इंडिया’’ पत्रिका व कल्याण में यह छपा है।
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