Thursday, June 6, 2013

भगवदगीता का कर्मयोग (भाग -3)


पंचसूत्री निष्काम कर्मयोग द्वारा महान भारत की संरचना
   

1. भूमिका
       धन्य है वह पुण्य भूमि भारत जहाँ सर्वप्रथम सभी प्रकार की उच्च संस्कृतियों -  सभ्यताओ का विकास हुआ। धन्य है वह देव भूमि भारत जिसने  सदियों से सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान, प्रेम, शान्ति और कल्याण का मार्ग दिखाया। जिओ और जीने दो का सिद्धान्त जहाँ सर्वप्रथम पुष्पित पल्लवित हुआ। जहाँ विश्व की अधिकतर संस्कृतियाँ मात्र 5000 वर्ष पुरानी  है वहीँ  भारत आज से सवा लाख वर्ष पूर्व भी सम्पूर्ण भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के चरम शिखर पर विराजमान था। सम्पूर्ण विश्व में चर्चा का केन्द्र बना राम सेतु (Adam Bridge - अमेरिका के प्रमुख शोध केन्द्र नासा द्वारा दिया गया नाम) इस बात का साक्षात प्रमाण है जो रामेश्वरम् के धनुषकोटि से श्री लंका तक फैला है। शोधकार्य {१} के अनुसार इसकी लम्बार्इ लगभग 30 किलोमीटर  चौड़ार्इ 1.5 से 3 किलोमीटर के बीच है। यह पुल आज भी विश्व के सम्पूर्ण वैज्ञानिको को आश्चर्य में डाल देता है। सचमुच हमारे पूर्वज इतने महान थे जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
       इसी महान भूमि से भगवद्गीता जैसे ज्ञान के महास्त्रोत का प्राकट्य हुआ जिसको जानने के लिए विश्व के सभी भागो से दार्शनिक, धर्मगुरु एवं अध्यात्म प्रेमी भारत आते रहे हैं शोध ग्रन्थ {२} के अनुसार इसार्इयों के धर्मगुरु जीसस क्रार्इस्ट का भी भारत के कश्मीर प्रान्त से घनिष्ठ समबन्ध रहा है और हाँ  रहकर उन्हा­ने ज्ञान प्राप्त किया अन्त समय ­ यही पर ही शरीर छोड़ा।
प्रस्तुत शोध प्रत्र ­ हम भगवद्गीता के इस ज्ञान के सन्दर्भ मे­ कुछ महत्वपूर्ण पक्षो पर चर्चा कर रहे हैं सर्वप्रथम हम इसकी उत्पत्ति के विषय मे­ वर्णन कर रहे­ हैं तत्पश्चात राष्ट्रीय विकास मे­ इसके योगदान का वर्णन करते है और अन्त मे­ निष्काम कर्मयोग जो इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है, के विषय मे चर्चा करते हैं शोध पत्र के अनुसार इस कर्मयोग को पाँच श्रेणिया­ मे बाँटा गया है। एक-एक कर अगली श्रेणी का चयन मानव की आत्मा को क्रमिक उन्नति कराते हुए इस जगत ­ अर्जुन की तरह परमात्मा का माध्यम बना सकता है, जिसके द्वारा आने वाले समय मे महान भारत की रचना होनी है। वास्तव मे कृष्ण को माध्यम चाहिए था जो गीता के उपदेश द्वारा उन्हा­ने अर्जुन को बनाया। आज भी परमात्मा को इस धरती को विनाश से बचाने के लिए माध्यम चाहिए। जो व्यक्ति परमात्मा का माध्यम बनना चाहते हो उनके लिए यह शोध पत्र अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं
2. भगवद्गीता की उत्पत्ति
       ज्ञान का वह आदि स्त्रोत जो कल्प के प्रारम्भ मे स्वयं परम पिता परमात्मा ने सविता देवता को प्रदान किया था, भगवद्गीता के नाम से विश्विख्यात हुआ। जिससे सविता देवता की चेतना से जुड़कर सामान्य मनुष्य भी उस ज्ञान को प्राप्त कर लाभान्वित हो सके­
       ‘‘इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहव्ययम्।’’           (1/4)
       ‘‘मैने इस अविनाशी योग को कल्प के आदि मे­ विवस्वान (सूर्य) के प्रति कहा।’’
       जैसे बडा पावर हाउस ट्राँसफार्मर के द्वारा छोटे पावर हाउस को विद्युत ऊर्जा प्रदान करता है। फिर छोटा पावर हाउस आगे घरो को विद्युत ऊर्जा प्रदान करता है। वैसे ही परमात्मा जो कि करोड़ो सूर्यो से भी अधिक प्रकाशमान, ज्ञानवान, शक्तिवान हैं, छोटे पावर हाउस  सूर्य को वह ज्ञान प्रदान करता हैं कालान्तर मे जो लोग सविता देवता की उस दिव्य चेतना से जुड़कर उस ज्ञान को प्राप्त कर आत्म कल्याण एवं लोक कल्याण के पावन पथ पर चले­, वो सूर्यवंशी कहलाए। इन्हे सूर्यवंशिया­ मे हम 12 कलावतार श्री राम का नाम बडी श्रद्धा से लेते हैं वीरता, साहस, भक्ति, बुद्धि और ऋद्धि सिद्धिया­ के धनी महावीर हनुमान जी के गुरु भी सूर्य ही माने जाते है, अर्थात उन्हा­ने भी सविता देवता से ही सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया।
       द्वापर युग मे जब अधर्म, अनाचार, पाप बहुत बढ़ गया। द्युतक्रीडा नारिया­ का अपमान राज दरबारो के लिए सामान्य बात हो गयी, ऐसे समय मे उस विलुप्त ज्ञान का उदय लोक नायक श्री कृष्ण के माध्यम से भारतवासिया­ के लिए हुआ


3. राष्ट्रीय विकास मे­ योगदान
       गीता मात्र व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति के लिए ही प्रेरित नही करती अपितु इस राष्ट्र को संकटो से बचाने का अधिकतम श्रेय गीता को ही जाता है। हमारी मातृभूमि के लिए जो कहा गया है -
यूनान मिस्त्र रोमां सब मिट गए जहाँ से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नही हमारी।
यह उक्ति गीता जैसे महान ग्रन्थो के बल पर ही संभव हैं गीता ही वह अमर ग्रन्थ है जिसने नरेन्द्र नामक बालक को स्वामी विवेकानन्द बना दिया। स्वामी जी गीता से कितना लगाव करते थे, एक घटना से इसका पता चलता है। एक बार अमेरिका के एक पुस्तकालय मे जाकर उन्हा­ने भगवद्गीता की मांग की। लाइब्रेरियन ने स्वामी जी को कहा कि अभी खोजते हैं, कही पुस्तको के नीचे दबा पड़ा होगा। इस पर स्वामी जी ने तपाक से उत्तर दिया कि गीता ही सब संस्कृतियो एवं ज्ञान का आधार हैं सबकी नी है, सब की जड़ है। इसी के आधार पर अन्य संस्कृतियाँ फली-फूली हैं
       आजादी का इतिहास बताता है कि गीता पाठ करते-करते अमर क्रान्तिकारी हँसते-2 फाँसी के फंदो पर झूल गए। उनकी निर्भयता साहस देखकर अग्रेंज दंग रह जाते थे। यह सब गीता के आत्मा की अमरता के विषय मे­ प्रदत्त ज्ञान का ही परिणाम था। लोक मान्य तिलक गीता से इतना प्रेम करते थे कि जेल मे­ अधिकाँश समय गीता के मनन चिन्तन मे लगाते थे। उनके द्वारा रचित गीता रहस्य भारतीय साहित्य की अनुपम धरोहर है। {३} महात्मा गाँधी गीता को सदैव माँ के समान पूजनीय मानते थे।{४}
       श्री कृष्ण की गीता का उदय अरविन्द घोष की अन्तरात्मा में सन 1908 में­ उनके अज्ञात कारावास के दौरान हुआ। इस विचित्र घटना ने उनके जीवन में­ क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया। भारत की आजादी को लेकर चिन्तित त्रस्त हुए अरविन्द एक महान साधक के रूप मे रूपान्तरित हो गए एवं महर्षि अरविन्द के नाम से विश्वविख्यात हुए। सूक्ष्म को गर्म करने की उनकी साधना 24 नवम्बर 1926 से प्रारम्भ हुर्इ। इस सूक्ष्मीकरण के दौरान वो आजीवन मौन एकान्तवासी रहे साधना की इस तपन से भारतवासिया­ के हौसल­ इतने बुलन्द हुए कि अग्र­जो को भारत छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा। इतिहास साक्षी है कि सन 1926 के बाद ही भारतीय आजादी की लडार्इ पूरे जोरो शोरो से प्रारम्भ हुर्इ थी। इस घटनाक्रम को ऊर्जा प्रदान करने नियन्त्रित करने का कार्य श्री अरविन्द श्री रमण के माध्यम से सम्पन्न हुआ। {५}
       जिस महाग्रन्थ का भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन मे­ इतना बड़ा योगदान रहा है, उसे निश्चित रूप से राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित किया जाना चाहिए।
4. निष्काम कर्म योग का विवेचन
       वैसे तो भगवद्गीता मे­ बहुत सारे पक्षो का विवेचन है जैसे ज्ञान, सन्यास, विभूतियाँ, आत्मा परमात्मा का स्वरूप इत्यादि। परंतु इसका जो सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है वह है निष्काम कर्म योग। यह निष्काम कर्म योग सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। छोटे से छोटे व्यक्ति से लेकर बड़े से बड़े पदाधिकारी तक, समाज सेवक, आध्यात्मिक जिज्ञासु सभी के लिए निष्काम कर्म योग लाभदायी है। चाहे व्यक्ति की व्यक्तिगत आत्मिक उन्नति हो, चाहे पारिवारिक उन्नति, चाहे सामाजिक, राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ, निष्काम कर्म योग सभी स्तरों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। यदि धरती पर सुख शांति, समृद्धि का वातावरण आएगा तो वह निष्काम कर्म योग के द्वारा ही आएगा। यह निष्काम कर्म योग क्या है? किस प्रकार जीवन में इसके सूत्री को अमल में लाया जा सकता है? उसका विवरण आगे प्रस्तुत किया गया है।
4.1 विवेक सम्मत कर्म
       कर्म की स्वतन्त्रता र्इश्वर ने मानव को देकर उस पर बडा उपकार किया है। अन्य जीव अपनी प्रकृति के अनुसार कर्म करते हैं जैसे शेर की प्रकृति आक्रामक है, खरगोश की डरपोक, कुतो की चापलूस इत्यादि। मानव अपने कर्म के चयन मे­ विवेक का उपयोग कर सकता है कर्म का चयन उसके हाथ मे है। यद्यपि उसकी सत्व, रज, तम से मिश्रित प्रकृति उसको उसी प्रकार के कर्म के लिए प्रेरित करेगी। यदि प्रकृति सात्विक अधिक है तो आत्मकल्याण - जनकल्याण के लिए वह स्वत: प्रेरित होगा। यदि तामसिक है तो आलस्य, निराशा, दूसरो की बेवजह नीचा दिखाना आदि की ओर प्रेरित होगा। मानव ही विवेक का उपयोग कर अपनी नीच प्रकृति, कुसंस्कारो से संघर्ष कर उच्च कोटि के कर्म का चयन कर सकता है कर्म के फल पर मानव का वश नही चलता। श्रेष्ठ कर्म का चयन करने पर फल शुभ निम्न कोटि के कर्म अशुभ फल प्रदान करेग­ इसे मानव नही परिवर्तित कर सकता। इस संदर्भ ­ गीता को श्लोक की पंक्ति विचारणीय है-
       ‘‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्’’ (47/2)
       युधिष्ठिर से भी द्युतक्रीडा की गलती हो गर्इ थी। कृष्ण के साथ होने पर भी उन्हे­ उसका बहुत ही कठोर परिणाम भुगतना पडा। इसलिए हे मानव कर्म करते हुए सावधान रह क्या­कि तुझको कर्म का अधिकार है फल का कदाचित नही एक बार गलत कर्म हो गए तो रोने चिल्लाने से कुछ नही बनेगा उनका दुष्परिणाम सहन करना ही पड़ेगा। राम चरित मानस भी इस संदर्भ मे कहती है
       ‘‘इहाँ कोऊ सुख दुख कर दाता। जो जस करर्इ सो तस फलु चाखा’’।।
       प्रत्येक व्यक्ति अपने ही कर्मो से सुख दुख भोग रहा है।{६}
       इसलिए कर्मो के चयन मे विवेक का उपयोग करके अपने कर्मो को सही दिशा देकर श्रेष्ठ वर्तमान, भाग्य एवं प्रारब्ध का निर्माण किया जा सकता है।
4.2 कर्म फल का हेतु मत बन
       इस संदर्भ ­ श्री मद भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का एक श्लोक निम्न प्रकार है
       ‘‘मा कर्मफलहेतुभुर्मी ते संगो·स्त्वकर्मणि’’       (47/2)
       इसका बडा ही गूढ़ अर्थ है। कर्मो का हेतु क्या होना चाहिए? कर्म किस हेतु कर­? आमतौर पर व्यक्ति अपने परिवार के भरण पोषण हेतु कर्म करता है। यदि प्रतिभा इससे अधिक है तो मन की इच्छाआ­ की पूर्ति हेतु कर्म करता है। श्री कृष्ण इसके पक्ष ­ नह° ® वो कहते है कि कर्म फल का हेतु स्वयं केा मत बनाओ अर्थात स्वंय को अथवा व्यक्तिगत इच्छाओं को आधार बनाकर कर्म मत करो। फिर किस हेतु कर्म कर­ जन कल्याण हेतु, आत्म कल्याण हेतु कर्म किए जाए वो कैसे संभव है इसका आगे विस्तार करते ®
       यज्ञार्थात्कर्मणो·न्यत्र: लोको·यं कर्मबन्धन:         9/3
       यज्ञार्थ कर्म करो परमार्थ वश कर्म करो। समय की मांग की पूर्ति हेतु कर्म करो। समय की मांग, युग की मांग हेतु कर्म करना ही वास्तव ­ यज्ञार्थ- कर्म ® उदाहरण के लिए स्वतन्त्रता सेनानिया­ ने अग्रेजा­ की नौकरियाँ छोडकर भारत की स्वतन्त्रता के लिए कर्म किया वह यज्ञार्थ कर्म हुआ। आमतौर पर लोग यह समझ लेते ® कि हम जो भी काम कर रहे ® र्इश्वर द्वारा सा®पा गया है वही ठीक से करना यज्ञार्थ है। यदि कोर्इ वकील मुकदमा अच्छे से लड़कर किसी अपराधी को छुडा देता है क्या वो गीता के अनुसार उचित है? कदापि नह° कर्मो का भेद तभी समझ सकता है, जब मनुष्य स्वार्थ की परिधि से थोडा ऊपर उठ जाए अर्थात स्वंय को कर्म फल का हेतु बनाए। जैसे आज समय की मांग है नैतिक एवं सांस्कृतिक उत्थान। चारा­ ओर चारित्रिक पतन भ्रष्टाचार ने इस देश को विषम स्थिति ­ लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसे समय ­ यदि ® मात्र कम्प्यूटर विभाग ­ प्रवक्ता अन्य उन्नत पदा­ पर कार्य करता रहँू ओर सा­चू कि यही गीता का निष्काम कर्म योग है तो यह उचित नह° है। मुझे कुछ समय राष्ट्र के विद्यार्थिया­ के चरित्र निर्माण के लिए भी अवश्य लगाना चाहिए। चाहे वह सप्ताह में दो दिन हो या प्रतिदिन दो घण्टे। इसी प्रकार धन का एक अंश भी युग की मांग को पूरा करने के लिए लगाना चाहिए।
       आज के युग ­ किस प्रकार निष्काम कर्म योग का क्रियान्वन (पउचसमउमदजंजपवद) संभव है इसका बडा सुंदर समाधान युगऋषि श्री राम आचार्य ने समय दान अंशदान की परम्परा प्रारम्भ कर निकाला है।
       व्यक्ति यदि अपनी रोजी रोटी नौकरी-पेशा छोड़कर पूर्णत: चरित्र निर्माण ­ खप जाए यह भी प्रारम्भिक स्तर पर संभव नह° है। अत: मानव समयदान अंशदान कर निष्काम कर्म योग की ओर प्रवृत्त हो सकता है।
4.3 योग ­ स्थित होकर कर्म कर
       व्यक्ति समाज सेवा करना चाहता है युग की मांग को पूरा करने के लिए समयदान-अंशदान भी करना चाहता है परंतु इसके लिए क्या कर­ समाज सेवा के विविध आयाम है वो किसका चयन कर­? एक घटना से इसका उत्तर मिलता है। सन 1908 ­ श्री अरविन्द कारावास के दौरान बडे बेचैन थे। भगवान के आगे रोआ करते थे ‘‘हे भगवान इस राष्ट्र का उद्धार कैसे होगा? आप कहाँ सोये ®? क्या­ नह° भारत भूमि का मार्गदर्शन करते? सब कुछ नष्ट होता जा रहा है।’’ परमात्म चेतना ने अरविन्द को मार्गदर्शन देना प्रारम्भ किया- ‘‘अभी तक तुम अपनी र्इच्छानुसार इस राष्ट्र की सेवा करते रहे थे, जिसका परिणाम नगण्य रहा है। अब योग ­ स्थित होकर इस राष्ट्र की सेवा करो, उससे निश्चित रूप से भारत स्वतन्त्र होगा’’ं। इसके साथ ही श्री अरविन्द का योग प्रारम्भ हो जाता है। इस योग की साधना के लिए उन्ह­ पंडिचेरी नामक स्थान पर जाने का आदेश हुआ। इतिहास साक्षी है कि 15 अगस्त श्री अरविन्द के जन्मदिवस पर यह राष्ट्र स्वतन्त्र हुआ। ¿7À
भगवद्गीता कहती है-
       योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।
       सिद्ध्यसिद्ध्यो: समोभूत्वा समत्वं योग उच्यते।।    (48/2)
       इस योग ­ स्थित होने के लिए सब प्रकार की आसक्तिया­ का त्याग करना होता है समता की भावना का विकास अपने अन्दर करना होता है।
       योग ­ स्थित होने का अर्थ है परमात्म चेतना के साथ जुड़कर कर्म करना। परमात्मा की प्रेरणाआ­, दिशानिर्देशा­ की प्रबल अकांक्षा करते हुए उसी अनुसार कर्मों का चयन करना।
       ब्रह्म चेतना के साथ जुड़ने से व्यक्ति के भीतर ओजस, तेजस, वर्चस की वृद्धि होने लगती है। व्यक्ति का जीवन ब्रह्मकमल की भाँति खिलने लगता है। जिसकी सुगन्ध मानवजाति के दुख तापो का हरण करती हुयी चली जाती है।
4.4 कर्म ­ पूर्ण मनोयोग का समावेश
       श्री कृष्ण ने मानवजाति को किसी भी अवस्था ­ कर्म त्यागने का उपदेश नह° दिया। अर्जुन जब मोह और कायरता के वशीभूत होकर निराशा के दौर से गुजरता है तो श्री कृष्ण उसको उसके क्षात्र धर्म की याद दिलाते है। आत्मा की अमरता का संदेश देकर उसके मोह कायरता को खत्म करके कर्म में प्रवृत्त करते ® श्री कृष्ण का यही संदेश है ‘‘योग कर्मसु कौशलम्’’ कर्म को कुशलता पूर्वक करने से ही योग सिद्ध होता है। कर्म को पूरे मनोयोग से किया जाए। समय संयम रखा जाए। अपने समय को व्यर्थ बरबाद किया जाए। ढ़ीली पीली जीवनचर्या योग के अनुरूप नह° है। कसा हुआ जीवन, तपा हुआ जीवन ही योग मार्ग ­ प्रवेश के अनुकूल ® व्यक्ति धर्म सन्यास के नाम पर कर्म करने की ओर प्रवृत्त होने पाए इसके लिए श्री कृष्ण सदैव तत्पर है। युग ऋषि श्री राम आचार्य जी का इस बारे ­ सन्देश यह है कि समय संयम, विचार संयम, इन्द्रिय संयम करने वाला व्यक्ति ही पूर्ण मनोयोग से अपने लक्ष्य ­ प्रवृत्त हो सकता है।
4.5 परमात्मा का माध्यम बनकर कर्म करना
       धरती पर धर्म की स्थापना के लिए, अन्याय अनीति को समाप्त करने के लिए सुपात्रो को परमात्मा अपना माध्यम बनाता है। भगवान के मंगलमय संकल्पा­ को पूरा करने के लिए जो आत्माँए व्यक्तिगत रिश्ते नाता­, मनोगत अकाक्षाआ­ से ऊपर उठकर आत्मदान की स्थिति ­ जाती ® वही माध्यम बनने की पात्रता रखती ® युग ऋषि श्री राम जी के अनुसार इसके लिए निम्न वाक्य को अपने अन्त:करण ­ पकाना चाहिए।
       ‘‘® समाप्त होता हूँ, आप जीवित होर्इए।’’  ¿8À
       पवहारी बाबा जी के अनुसार परमात्मा तो उनका धन है जिन्हा­ने अपनी आत्मा का भी यह सोचकर कि यह मेरी नह° है, त्याग कर दिया है।
       ऐसा व्यक्ति कठपुतली की भाँति ब्रह्म चेतना द्वारा नचाया जाता है। जब इस प्रकार के व्यक्तिया­ की सख्याँ बढ़ जाती है धरती पर उज्जवल भविष्य का शुभारम्भ होने लगता है।
       ‘‘सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थित:
       सर्वथा वर्तमानो·पि योगी मयि वर्तते।।’’   (31/6)
       जो पुरूष अनेकता से परे एकत्व भाव से मुझ परमात्मा को भजता है, वह योगी सब प्रकार के कार्यो ­ बरतता हुआ मेरे ­ ही बरतता है; क्या­कि मुझे छोड़कर उसके लिए कोर्इ बचा भी तो नह° उसका तो सब मिट गया, इसलिए वह अब उठता-बैठता, जो कुछ भी करता है, मेरे संकल्प से करता ® ¿9À
       जो परमात्मा का माध्यम बन जाते ® वो जन्म मृत्यु तक को अपने वश ­ करने की क्षमता रखते है। इस बात का प्रमाण योगानन्द परमहंस जी ने अमेरिका के सम्पूर्ण वैज्ञानिका­, चिकित्सको, बुद्धिजीविया­ के सम्मुख प्रस्तुत किया। सन् 1952 ­ जब उन्हा­ने शरीर छोड़ना था तो अमेरिका के बडे बुद्धिजीविया­ को एक सभा/भोज ­ अमन्त्रित किया। पहले उन्ह­ आत्मा परमात्मा विषय पर संक्षिप्त प्रवचन दिया और फिर अपने पूर्ण स्वस्थ होने का प्रमाण। तत्पश्चात् वो शरीर छोडकर स्वेच्छा से यह कहकर महासमाधि ले गये कि उनका यह शरीर उनकी मृत्यु के 20 दिन उपरान्त भी तरोताजा बन रहेगा। सम्पूर्ण अमेरिकावासी उनकी मृत्यु पर विजय देखकर आश्चर्य चकित रह गये। ¿10À
5. महान भारत की संरचना
       जहाँ सामान्य व्यक्ति प्रकृति के बंधना­ ­ बंधा दुख कष्टा­ को जीवन भर झेलता है वह° योग के पथ पर चलता हुआ व्यक्ति परमात्मा का माध्यम बनते हुए अपना तो कल्याण कर ही जाता है। अपने साथ-साथ असंख्या­ को दुखो तापो से मुक्ति दिलाने की सामथ्र्य रखता है। चाहे वो जगत गुरु शंकराचार्य हो, चाहे करूणा के अवतार बुद्ध और र्इसा, चाहे सत्य और न्याय की रक्षा करने वाले मुहम्मद साहब एवं गुरु गोविन्द ¯सह जी सभी ने इस पथ का वरण किया।
       ऐसे असंख्य उदाहरण ¿11À हमारे सामाने है जो इस दिव्य पथ पर चलते-चलते स्वंय परमात्म स्वरूप बन गये यदि ऐसे 24,000 ब्रह्मकमल इस धरती पर पुन: खिल सक­, तो यह धरती फिर से स्वर्ण युग की ओर मुड जाएगी। जिसे प्रसिद्ध भविष्यवक्ता नेस्त्रोडेम्स ने ळवसकमद म्तं की संज्ञा दी है। फिर क्या­ एक बार हम सभी दिव्य जीवन की ओर ¿12À, निष्काम कर्म योग की ओर सही ढंग से मिल-जुल कर चलने का प्रयास कर­! मंगलमय भगवान इस पुनीत कार्य ­ अवश्य हमारा मार्गदर्शन करेग­ जैसे उन्हा­ने श्री कृष्ण के रूप ­ अर्जुन का मार्गदर्शन किया था। आइए एक बार पुन: महान भारत की संरचना के लिए कटिबद्ध हो, जिससे यह राष्ट्र जगतगुरु   विश्वामित्र का महान गौरव प्राप्त कर सक­
6. उपसंहार
       विवेक का अनुगमन, इन्द्रिय संयम, सेवा की भावना, भय रहित मानसिकता, कर्म ­ पूर्ण मनोयोग का समावेश, परमात्मा चेतना के साथ संयोग इत्यादि कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिन्दु ® जिनका अनुसरण करने पर ही निष्काम कर्म योग सध पाता है। संन्यास के नाम पर व्यक्ति कर्म का त्याग कर­, अपितु मोह का त्याग करते हुए, पारिवारिक बन्धना­ के ढीला रखते हुए युग की मांग के अनुसार अपने कर्मो की दिशाधारा को मोड़ ­ यही निष्काम कर्मयोग का मूल उद्देश्य है। मन की इच्छाआ­ के अन्तर्गत, पद प्रतिष्ठा, धनसंचय आदि की आंकाक्षा से जो कर्म होता है वह सकाम कर्मो के अन्तर्गत आता है। इस प्रकार हम सकाम निष्काम दोना­ ­ भेद करके निष्काम कर्म योग का अवलम्बन लेकर आत्मिक प्रगति की दिशा ­ आगे बढ़­ यही इस शोध कार्य का मुख्य प्रयोजन है।
सन्दर्भ ;त्ममितमदबमेद्ध
1. शोध कार्य राम सेतु एक मानव निर्मित अदभुत कृति द्वारा सिद्धार्थ ;ठण् ज्मबीण्एब्पअपस म्दहहण्द्ध, विद्याथ्र्ाी, सिविल विभाग, एनñआर्इñटीñ, कुरुक्षेत्र एीजजचरूध्ध्ूूूण्ूीपजमीवतेमूवतोण्बवउण्
2. जीसस लीवड इन इन्डिया लेखक हॉलगैर कर्सटेन प्रकाशक ®ग्विन बुक
3. गीता रहस्य लेखक लोक मान्य तिलक।
4. गीता माता लेखक मोहन दास कर्मचन्द गाँधी।
5. सूक्ष्मीकरण एवं उज्जवल भविष्य लेखक श्री राम शर्मा आचार्य।
6. साधक संजीवनी लेखक श्री राम सुख दास, गीता प्रैस, गोरखपुर।
7. सनातन धर्म का प्रसाद लेखक राजेश अग्रवाल
8. हमारी वसीयत और विरासत लेखक श्री राम शर्मा आचार्य।
9. यथार्थ गीता लेखक स्वामी अडगडानन्द।
10. योगी कथामृत लेखक योगानन्द परमहंस, जयको प्रकाशन।
11  श्ळवकश्े छमू ॅवतसक. ळसवइंस ब्पजप्रमदे ंदक व्दम छंजपवदश्ए डमकपनउ  ैपकींतजींए
      च्नइसपेीमतप् न्दपअमतेमएन्ै।ए ब्ींचजमत. ैचपतपजनंस ज्तंदेवितउंजपवदण्
12.  श्क्पअपदम स्पमिश् इल डींंतपेीप ।तअपदकव ण्                            






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