भगवान श्रीहरि अपने कृष्णावतार में शांतिदूत बनकर कौरव सभा में गए । उद्देश्य यही था कि महाभारत का महाविनाश रुक जाए । सभी प्रेम से रह सकें, लेकिन अभिमानी दुर्योधन ने उन्हें बाँधने की ठान ली । तब कौरव सभा में भगवान ने दिखाया अपना विराट स्वरूप । महाभारत के इस अंश का काव्यस्वरूप प्रदान किया है महाकवि दिनकर ने, जो पठनीय, मननीय और चिंतनीय है -
हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान कुपित होकर बोले
जंजीर बढ़ाकर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे ।
यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन संसार सकल,
मुझ में लय है संसार सकल ।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें ।
उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल ।
भुजपरिधि बंध को घेरे हैं,
मैनाक मेरु पग मेरे हैं ।
दिपते जो यह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अंदर ।
दुग हों तो दृश्य अकांड देख,
मुझमें सारा ब्रह्यांड देख,
चर-अचर-जीव,जग,क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर ।
शतकोटि सूर्य, शतकोटि चंद्र,
शतकोटि सरित, सर-सिंधु, मंद्र ।
शतकोटि विष्णु ब्रह्य महेश,
शतकोटि विष्णु, जलपति, धनेश,
शतकोटि रुद्र, शतकोटि काल,
शतकोटि दंडधर लोकपाल ।
जंजीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ, हाँ दुर्योधन ! बोध इन्हें ।
भूलोक, अत्तल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि सृजन,
यह देख महाभारत का रण ।
मृतकों से पटी हुर्इ भू है,
पहचान, कहाँ इसमें तू है ।
अंबर में कुंतल जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख ।
सब जन्म मुझी में पाते हैं,
फिर लौट मुझी में जाते हैं ।
जिàा से कटती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर ।
मैं जभी मूँदता हँू लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण ।
बाँधने मुझे तो आया हैं,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनंत गगन ।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?
कौरव सभा में भगवान ने अपना यह विराट रूप दिखाया अवश्य, पर सब उसे देख न सके । महात्मा विदुर, महात्मा भीष्म को ही यह सौभाग्य मिल सका, बाकी तो बेहाश हो गए । हाँ, धृतराष्ट्र ने अवश्य इसे देख पाने के लिए कृपा की भीख माँग ली और देख पाए । श्रीमद्भगवद्गीता का यह एकादश अध्याय भगवान के उसी विश्वरूप, विराट स्वरूप का साक्षात्कार कराता है । उसी की तत्त्वकथा कहता है।
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