संघ शक्ति’’ का प्रतीक-दुर्गावतरण
कई मोर्चे खोले पर सब जगह हार देवताओं की हुई। असुर उनके एक-एक कर सभी दुर्ग जीतते चल गए, देवताओं का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया।
पराजित देवता प्रजापति ब्रह्मा के पास पहुँचे। पराजय के कारण और उनसे असुरों पर विजय का उपाय पूछा। पराजय के कारण और विजय की नई योजनाओं पर कुछ देर तक विचार करने के बाद ब्रह्मा जी बोले- ‘‘देवताओ! तुम सभी दिव्य गुणों वाले हो, त्यागी और तपस्वी भी कम नहीं हो, शक्ति और साहस का तुम में अभाव भी नहीं है, किंतु एक बहुत बड़ी कमी तुम में भी है- संगठन का अभाव।’’ तुम्हारी शक्तियाँ बिखरी होने के कारण अभीष्ट प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पातीं, जब कि पापी और दुर्गुणी होकर भी केवल संगठित होने के कारण थोड़े-से असुरों की शक्ति में वह बल आ जाता है कि तुम सब को जब चाहते हैं, परास्त करके रख देते है।
देवताओं ने मिलकर अपनी-अपनी शक्ति का अंश देकर एक संघ शक्ति का निर्माण किया, दुर्गा उस संस्था का प्रतीक है, जिसमें श्रेष्ठ पुरुषों की शक्तियाँ संघ-बद्ध होकर काम करती है। यह संघ-शक्ति अवतरित हुई, उसने सिंह को अपना वाहन बनाया। सिंह साहस और स्फूर्ति का प्रतीक है। उसका भावार्थ यह होता है कि देवताओं ने अपनी संगठित शक्ति का तेजी से साहसपूर्वक प्रयोग किया, उसका फल यह हुआ कि बड़े-बड़े दुर्दात और दिग्गज राक्षस आए, पर दुर्गा उन सब को मारती-काटती चली गई। वह अपने वाहन सहित राक्षसों पर टूट पड़ी हैं। राक्षसों में अब उनका सामना करने की हिम्मत नहीं रही है।
पुराणों की दुर्गा-अवतरण की कथा में संघ शक्ति का अलंकारिक चित्रण है, उसका उपयोग प्रकारांतर से प्रत्येक युग में होता आया है। रावण जैसे शक्तिशाली असुर के सामने रीछ-वानरों की कोई औकात नहीं थी, पर यह उनकी संगठित शक्ति का ही परिणाम था कि एक लाख पुत्र, सवा लाख नातियों के कुनवे वाला मायावी रावण भी धराशायी कर दिया गया। इंद्र के कोप का सामना करना कठिन हो जाता यदि यादवों ने कृष्ण के इशारे पर संगठित होकर गोवर्धन को नहीं उठा लिया होता। भगवान बुद्ध को तो ‘‘बुद्धं शरणं गच्छामि’’, धर्म शरणं गच्छामि’’ के साथ ‘‘संघं शरणं गच्छामि’’ का भी नारा लगाना पड़ा था, तब कहीं उस युग में व्याप्त धर्म के नाम पर आडंबर, अज्ञान, अनाचार और मत-मतांतरों का अँधड़ रोका जा सकता था। अभी कुछ दिन पूर्व ही यही प्रयोग गाँधी जी ने किया। गाँधी के रूप में दुर्गा शक्ति ने अवतार लिया था, तभी अंग्रेजी हुकूमत जैसी शक्तिशाली सत्ता पर निहत्थे भारतीयों को विजय मिल सकी थी।
आज समाज में अच्छे लोगों का अभाव नहीं। लोग आस्तिक है, पूजा-उपासना करते हैं, दान-पुण्य करते हैं, उनमें नेक आदमियों के सब लक्षण हैं, तो भी असुरता चाहे वह मनुष्यों के रूप में हो या दुष्प्रवृत्तियों के रूप में जीतती चली जाती है, अच्छे लोग आए दिन संकट में पड़ते, कष्ट भोगते रहते हैं, यह सब उनमें संगठन शक्ति के अभाव के कारण है। यदि आज भी लोग संगठित हो जाएँ तो इस युग की असुरता पाप और अत्याचार को उसी प्रकार भगाया जा सकता है, जिस प्रकार दुर्गा को जन्म देकर देवताओं ने आसुरों को मार भगाया।
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