Friday, June 14, 2013

भारतीय संस्कृति में देवदर्शन-I

हनुमान भक्ति का रहस्य
कुछ लोग यह मजाक बनाते हैं कि भारत में तो बंदरो की भी पूजा होती है। परन्तु वो यह नहीं जानते कि इसके पीछे गहरा दर्शन (रहस्य) छिपा है। हनुमान जी वानर जाति से थे। वानर की प्रकृति का अध्ययन करें तो उसमे विकारों की बहुलता पायी जाती है। काम वासना कहते है वानरों में सबसे प्रबल होती है। मोह इतना कि मरे हुए बच्चे को भी छाती से चिपकाए घूमता है। लोभ इतना कि यदि बन्दर को चने खाने को दिए जाएँ तो पेट भरने के उपरांत वो चनों को अपने गलफड़ो (गालों में रिक्त स्थान) में फसाएँ रखता है। क्रोध इतना कि खम्भे को भी हिलाएगा व अहं इतना कि हाथी को भी घूरेगा। हनुमान जी वानर जाति के थे परन्तु बचपन में उन्होंने सविता साधना को अपनाया सूर्य ध्यान करते-करते वो विकारों से मुक्त होकर अतिमानवो की श्रेणी में जा पहुँचे। परन्तु कुछ उद्ध्न्ड़ताएँ उनमें बच्ची रहीं। तत्पश्चात उन्होंने अहं विसर्जन हेतु श्री राम भक्ति का पथ चुना और पूर्णता प्राप्त की।
व्यक्ति यदि वानर के समान विकारयुक्त है तब भी वो साधना के बल से अपने को शुद्ध पवित्र करके अनेक शक्तियों का स्वामी बन सकता है। पवन के समान वेगवान हो सकता है। व सविता के समान कान्तिवान व तेजयुक्त हो सकता है।
हनुमान भक्ति यह सिखाती है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। वह तुच्छ वानर के महामानव, देवमानव की श्रेणी में विकसित हो सकता है। भारतीय संस्कृति में निराशा का कोई स्थान नहीं है।साधना के द्वारा अखण्ड ब्रह्मचर्य, अपार बल, बुद्धि,शक्ति की प्राप्त संभव है।

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