Wednesday, October 23, 2013

बिगुल बज गया पुनः 1857 की क्रान्ति का

          सम्पूर्ण विश्व यह स्वीकार करता है कि हिन्दू जाति अत्यन्त सहनशील, विनम्र, सबका भला चाहने वाली व सदगुणों की खान रही है। हमने सदा अन्य धर्मो का आदर किया है व सदा से सबकी सहायता की है। इसी कारण भारत में सभी धर्मो के लोग बड़े प्रेम से रहते है। 
          दुर्भाग्यवश अनेक प्रकार के स्वार्थी लोग हमारी कुछ कमजोरी का लाभ उठाकर हमें कुचलने ओर दबाने का प्रयास करते रहें। पहले मुगल आक्रमणकारी आए ओर उन्होंने हमारे देव मन्दिरों को तोड़ हमें भाँति-2 प्रतडि़त किया। उनसे लोहा लेने के लिए हमारी मातृभूमि ने शिवाजी व गुरु गोविन्द सिंह जैसे वीर सपूत पैदा किए, जिन्होंने मुगलों का जमकर मुकाबला किया व यह सिद्ध कर दिया कि हिन्दू अपनी धर्म संस्कृति को बचाने के लिए एक जुट हो सकता है व त्याग बलिदान की पराकाष्ठा पर जा सकता है। 
          धीरे-2 मुगलों का पतन हो गया ओर अंग्रेज इस धरती पर आए। उन्होंने देश पर शासन करने के लिए इस देश का बुरी तरह शोषण किया व हिन्दू मुसलमानों को आपस में लड़ाया। अंग्रेजो का विरोध धीरे-2 करके बहुत प्रबल होता चला। इसका प्रारम्भ सन् 1857 में मेरठ में मंगल पाड़े के विद्रोह सेे हुआ। धीरे-2 यह आग पूरे भारत में फैली परन्तु अग्रेंजो द्वारा दबा दी गयी। उस समय यह लड़ाई सैक्किों में थी। महात्मा गाँधी व अन्य महापुरुषों के नेतृत्व में आम जनता जागरूक हुयी व हर कीमत पर अग्रेंजो के भारत से बाहर खदेडने का बड़ा पुरुषार्थ किया गया। सन् 1947 में हमें बहुत बलिदानों के उपरान्त यह सफलता मिली। 
          दुर्भाग्यवश आज फिर से हमारा शासक वर्ग अग्रेंजो की नीति पर चल रहा है। वो राज करने के लिए भ्रष्टाचार के माध्यम से भारत का बुरी तरह शोषण कर रहा है। दूसरा हिन्दू मुस्लिमों को आपस में लड़ाकर मुसलमानों को भयभीत कर उनका वोट बेंक हथियाना चाहता है। उत्तर प्रदेश की जनता दो दशकों से बड़ी शान्तिपूर्ण ढंग से रह रही थी। हिन्दू मुस्लिमों में आपस में बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। परन्तु नहीं किसकी नजर लग गई। उत्तर प्रदेश में नई त्नसपदह चंतजल  के आते ही आपकी तनाव बढ़ने लगा। धीरे-2 करके यह तनाव एक विस्फोट का रूप ले गया यह सभी जानते है कि इन दंगो में त्नसपदह चंतजल के एक बड़े नेता का हाथ था। परन्तु जाँच के नाम पर दोषियों को जेल ससे रिटा कराया गया व निर्दोष हिन्दुओं पर तरह-2 से मुकदमें चलाए जा रहे है। 
          मेरठ के लोग यह अन्याय सह नहीं सके ओर जब इसके लिए उन्होंने एकत्र होने का प्रयास किया तो उन पर पुलिस बल का प्रयोग किया गया। परिणाम यह हुआ कि मेरठ की जनता ने विद्रोह कर दिया। गाँव-2 की महिलाएँ घर से तलवारें-गंदासे ले लेकर इस अन्याय के विरोध में निकल पड़ी। लोगों ने जमकर प्रशासन का विरोध किया व वहाँ से माँगने के मजबूर कर दिया। 

क्या यह सशस्त्र क्रान्ति हमें 1857 की क्रान्ति की याद नहीं दिलाती

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