Wednesday, October 23, 2013

मोबाइल फोन का उपयोग कुछ सावधानियों के साथ

मोबाइल फोन के बिना अब हम जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर पाते। आदतें ऐसी बन गर्इ है कि जब कॉल नहीं होता, तो भी हमें लगता है कि घंटी बज रही है। यह घंटी दरअसल खतरे की घंटी हो सकती है। मोबाइल फोन और मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन सेहत के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है। लेकिन कुछ सावधानियां बरती जाए तो मोइाबल रेडिएशन से होने वाले खतरों से काफी हद तक बचा जा सकता है।
क्या रेडिएशन से सेहत से जुड़ी समस्याएँ होती हैं?
आर्इआर्इटी बॉम्बे में इलेक्ट्रिकल इंजिनियर प्रो. गिरीश कुमार का कहना है कि मोबाइल रेडिएशन से तमाम दिक्कतें हो सकती हैं। इससे सिरदर्द, सिर में झनझनाहट, लगातार थकान महसूस करना, चक्कर आना, डिप्रेशन, नींद आना, आंखों में ड्राइनेस, काम में ध्यान लगाना, कानों का बजना, सुनने में कमी, याददाश्त में कमी, पाचन की गड़बड़ी, अनियमित धड़कन, जोड़ों में दर्द, लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिसकैरेज की आशंका भी हो सकती है। इंटरफोन स्टडी में कहा गया कि हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है। लगातार बढ़ते इस्तेमाल, शरीर से नजदीकी और बढ़ती संख्या की वजह से मोबाइल रेडिएशन अन्य रेडिएशन के मुकाबले सबसे खतरनाक साबित हो सकता है। न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पुनीत अग्रवाल के मुताबिक मोबाइल रेडिएशन सभी के लिए नुकसानदेह है लेकिन बच्चे, महिलाएं, बुजुर्गों और मरीजों को इससे ज्यादा नुकसान हो सकता है। बच्चों और प्रेगनेंट महिलाओं को भी मोबाइल फोन के ज्यादा उपयोग से बचना चाहिए।
मोबाइल टावर या फोन, किससे नुकसान ज्यादा?
मोबाइल फोन हमारे ज्यादा करीब होता है, इसलिए उससे नुकसान ज्यादा होना चाहिए लेकिन ज्यादा परेशानी टावर से होती है क्योंकि मोबाइल का इस्तेमाल हम लगातार नहीं करते, जबकि टावर लगातार चौबीसों घंटे रेडिएशन फैलाते हैं। मोबाइल पर अगर हम घंटा भर बात करते हैं तो उससे हुए नुकसान की भरपार्इ के लिए हमें 23 घंटे मिलते हैं, जबकि टावर के पास रहने वाले लोग उससे लगातार निकलने वाली तरंगों की जद में रहते हैं। मुंबर्इ की उषा किरण बिल्डिंग में कैंसर के कर्इ मामले सामने आने को मोबाइल टावर रेडिएशन से जोड़कर देखा जा रहा है।
मोबाइल टावर से होनेवाले नुकसान में यह बात भी अहमियत रखती है कि घर टावर पर लगे ऐंटेना के सामने हैं। या पीछे। इसी तरह दूरी भी बहुत अहम है। टावर पर जितने ज्यादा ऐंटेना लगे होंगे, रेडिएशन भी उतना ज्यादा होगा।
कितनी देर तक मोबाइल का इस्तेमाल ठीक है?
दिन भर में 24 मिनट तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल सेहत के लिहाज से मुफीद है। यहाँ यह भी अहम है कि आपके मोबाइल की SAR बैल्यू क्या है? ज्यादा SAR वैल्यू के फोन पर कम देर बात करना कम SAR वैल्यू वाले फोन पर ज्यादा बात करने से ज्यादा नुकसानदेह है। लंबे वक्त तक बातचीत के लिए लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल रेडिएशन से बचने का आसान तरीका है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि ऑफिस या घर में लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करें। कॉर्डलेस फोन के इस्तेमाल से बचें।
1-    हंगरी में साइंटिस्टों ने पाया कि जो युवक बहुत ज्यादा सेल फोन का इस्तेमाल करते थे, उनके स्पर्म की संख्या कम हो गर्इ।
2-    जर्मनी में हुर्इ रिसर्च के मुताबिक जो लोग ट्रांसमिटर ऐंटेना के 400 मीटर के एरिया में रह रहे थे, उनमें कैंसर होने की आशंका तीन गुना बढ़ गर्इ। 400 मीटर के एरिया में ट्रांसमिशन बाकी एरिया से 100 गुना ज्यादा होता है।
3-    केरल में की गर्इ एक रिसर्च के अनुसार सेल फोन टावरों से होनेवाले रेडिएशन से मधुमक्खियों की कमर्शियल पॉपुलेशन 60 फीसदी तक गिर गर्इ है।
रेडिएशन को लेकर क्या है गाइडलाइंस?
जीएसएम टावरों के लिए रेडिएशन लिमिट 4500 मिलीवाट/मी. स्क्वेयर तय की गर्इ। लेकिन इंटरनेशनल कमिशन ऑन नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन (ICNIRP) की गाइडलाइंस जो इंडिया में लाूग की गर्इ, वे दरअसल शॉर्ट-टर्म एक्सपोजर के लिए थी, जबकि मोबाइल टावर से तो लगातार रेडिएशन होता है। इसलिए इस लिमिट को कम कर 450 मिलीवाट/मी. स्क्वेयर करने की बात हो रही है। ये नर्इ गाइडलाइंस 15 सितंबर से लागू होगी। हालांकि प्रो. गिरीश कुमार का कहना है कि यह लिमिट भी बहुत ज्यादा है और सिर्फ 1 मिलीवाट/मी. स्क्वेयर नुकसानदेह है और साउथ वेल्स, ऑस्टे्रलिया में 0.01 मिलीवाट/मी. स्क्वेयर लिमिट है।
2010 में एक मैगजीन और कंपनी के सर्वे में दिल्ली में 100 जगहों पर टेस्टिंग की गर्इ और पाया कि दिल्ली का एक चौथार्इ हिस्सा ही रेडिएशन से सुरक्षित है लेकिन इन जगहों में दिल्ली के वीवीआइपी एरिया ही ज्यादा हैं। दिल्ली के नामी अस्पताल भी इस रेडिएशन की चपेट में हैं।

किस तरह कम कर सकते हैं मोबाइल फोन रेडिऐशन?
v  रेडिएशन कम करने के लिए अपने फोन के साथ फेराइट बीड (रेडिएशन सोखने वाला एक यंत्र) भी लगा सकते हैं।
v  मोबाइल फोन रेडिएशन शील्ड का इस्तेमाल भी अच्छा तरीका है। आजकल कर्इ कंपनियां मार्केट में इस तरह के उपकरण बेच रही है।
v  रेडिएशन ब्लॉक ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं। दरअसल, ये खास तरह के सॉफ्टवेयर होते हैं, जो एक खास वक्त तक वार्इफार्इ, ब्लू-टुथ, जीपीएस या ऐंटेना को ब्लॉक कर सकते है।
टावर के रेडिएशन से कैसे बच सकते है?
मोबाइल रेडिएशन से बचने के लिए ये उपाय कारगर हो सकते हैं:
v  मोबाइल टावरों से जितना मुमकीन हो, दूर रहें।
v  टावर कंपनी से ऐंटेना की पावर कम करने को बोलें।
v  अगर घर के बिल्कुल सामने मोबाइल टावर है तो घर की खिड़की-दरवाजे बंद करके रखें।
v  घर में रेडिएशन डिटेक्टर की मदद से रेडिएशन का लेवल चेक करें। जिस इलाके में रेडिएशन ज्यादा है, वहां कम वक्त बिताएं।
v  Detex नाम का रेडिएशन डिटेक्टर करीब 5000 रूपये में मिलता है।
v  घर की खिड़कियों पर खास तरह की फिल्म लगा सकते हैं क्योंकि सबसे ज्यादा रेडिएशन ग्लास के जरिए आता है। ऐंटि-रेडिएशन फिल्म की कीमत एक खिड़की के लिए करीब 4000 रूपए पड़ती है।
v  खिड़की दरवाजों पर शिल्डिंग पर्दे लगा सकते हैं। ये पर्दे काफी हद तक रेडिएशन को रोक सकते हैं। कर्इ कंपनियां ऐसे प्रोडक्ट बनाती है।

क्या कम सिग्नल भी हो सकते हैं घातक?
अगर सिग्नल कम रहे हों तो मोबाइल का इस्तेमाल करें क्योंकि इस दौरान रेडिएशन ज्यादा होता है। पूरे सिग्नल आने पर ही मोबाइल यूज करना चाहिए। मोबाइल का इस्तेमाल खिड़की या दरवाजे के पास खड़े होकर या खुले में करना बेहतर है क्योंकि इससे तरंगों को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है।
क्या मोबाइल तकिए के नीचे रखकर सोना सही है?
मोबाइल को हर वक्त जेब में रखकर घूमें, ही तकिए के नीचे या बगल में रखकर सोएं क्योंकि मोबाइल हर मिनट टावर को सिग्नल भेजता है। बेहतर है कि मोबाइल को जेब से निकाल कर कम से कम दो फुट यानी करीब एक हाथ की दूरी पर रखें। सोते हुए भी दूरी बनाए रखें।
पेसमेकर लगा है तो क्या मोबाइल ज्यादा नुकसान करता है?
डॉ. सेठ का कहना है कि अगर शरीर में पेसमेकर लगा है तो हैंडसेट से 1 फुट तक की दूरी बनाकर बात करें। शरीर में लगा डिवाइस इलेक्ट्रिक सिग्नल पैदा करता हैं, जो मोबाइल के सिग्नल के साथ दखल देते हुए नुकसानदेह हो सकता है। ऐसे में ब्लूटुथ या हैड्स-फ्री डिवाइस के जरिए या फिर स्पीकर ऑन कर बात करें। पेसमेकर जिस तरफ लगा है, उस पॉकेट में मोबाइल रखें।
क्या ब्लूटुथ का इस्तेमाल नुकसान बढ़ाता है?
अगर हम ब्लूटुथ का इस्तेमाल करते हैं तो हमारे शरीर में रेडिएशन थोड़ा ज्यादा अब्जॉर्ब होगा। अगर ब्लूटुथ ऑन करेंगे तो 10 मिली वाट पावर अडिशनल निकलेगी। मोबाइल से निकलने वाली पावर के साथ-साथ शरीर इसे भी अब्जॉर्ब करेगा। ऐसे में जरूरी है कि ब्लूटुथ पर बात करते हैं तो मोबाइल को अपने शरीर से दूर रखें। एक फुट की दूरी हो तो अच्छा है।


गेम्स/नेट सर्फिग के लिए मोबाइल यूज खतरनाक है?
मोबाइल पर गेम्स खेलना सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह नहीं है, लेकिन इंटरनेट सर्फिग के दौरान रेडिएशन होता है इसलिए मोबाइल फोन से ज्यादा इंटरनेट सर्फिग नहीं करना चाहिए।
क्या है SAR?
अमेरिका के नैशनल स्टैंडड्र्स इंस्टिट्यूट के मुतबिक, एक तय वक्त के भीतर किसी इंसान या जानवर के शरीर में प्रवेश करने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की माप को SAR (स्पैसिफिक अब्जॉर्पशन रेश्यो) कहा जाता है। SAR संख्या वह ऊर्जा है, जो मोबाइल के इस्तेमाल के वक्त इंसान का शरीर सोखता है। मतलब यह है कि जिस मोबाइल की SAR संख्या जितनी ज्यादा होगी, वह शरीर के लिए उतना ही ज्यादा नुकसानदेह होगा।
मेट्रो या लिफ्ट में मोबाइल यूज करते वक्त क्या ध्यान रखें?
लिफ्ट या मेट्रो में मोबाइल के इस्तेमाल से बचें क्योंकि तरंगों के बाहर निकलने का रास्ता बंद होने से इनके शरीर में प्रवेश का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही, इन जगहों पर सिग्नल कम होना भी नुकसानदेह हो सकता है।
किस मोबाइल का कितना SAR?
ज्यादातर मोबाइल फोन का SAR अलग अलग होता है:
मोटोरोला V195S      1.6             नोकिया E710      1.53
एल जी यूर्मर 2       1.51            सोनी एरिक्सन W350a    1.48
एप्पल आर्इफोन-4 1.51            सैंमसंग सोल       0.24
नोकिया 9300        0.21            सैंमसंग ग्लेक्सी S2       0.338
ब्लैकबेरी कर्व 8310    0.72      
  
हीलिंग करंट से साभार       

No comments:

Post a Comment