हे भारत माँ मुझे माफ करना, आपकी सन्तानो पर प्रहार करता हँू।
सारा वैभव तेरा माँ खोता देख, चुप रह भी कैसे सकता हँू।।
नारियों ने अपनी मर्यादा व पवित्रता, सब उतार कर रख दी है।
सोम्यता ओर पवित्रता की मूर्ति ने अब, उन संस्कारों की होली जला दी है।।
उलटे सीधे वस्त्र पहन वो माडर्न बन, अपने को श्रेष्ठ समझती है।
फिल्मी हीरो हीरोझा के चक्कर में उलझ, धन वैभव को आदर्श मानती है।।
धर्म कर्म सेवा, सवेंदना का क्या, अब तो वासना की खुमारी चढ़ी है।
त्याग, तप, तितिक्षा की बात क्यों करे, अब तो पश्चिम की नकल बढ़ी है।।
पुरुषों की बात कैसे करें, उन पर शराब कवाब का नशा सवार है।
वर्यि, शैार्य, हो गर्इ पुरानी बातें, अब तो मतलब परस्ती की बचार है।।
व्रत अनुशासन नियम संयम का क्या, अब तो अश्लीलता से प्यार है।
ओजय, तेज वर्चरू को त्याग, अब तो भार्इ बड़ी गाड़ी पर सवार है।।
सन्तों की शरण में जाने से लगता हे डर, उन्हे की माया से प्यार है।
बड़ी गाड़ी ओर आलीशान बंगलो में है, इस धन्धे में धन अपार है।।
मुख में राम बगल में छुटी रख, नीचता की दह हो गर्इ पार है।
राम राम करते हे जनता के सामने, अन्दर वासना का भूत सवार है।।
राजनेताओं की अब बारी आयी, बडे़-2 वादो से जनता को बहकाते है।
वोट ओर गाड़ी पाने के चक्कर में, किसी भी हद तक चले जाते है।।
काला धन गरीब जनता का चूसा, स्विस बैकों में जमा कर डाला।
कोर्इ दिन नही ऐसा जाता होगा, जब न सामने आता हो नया घोटाला।।
माँ तेरे लायक सपूत कहाँ खो गए, भगत ओर आजाद कहाँ सो गए।
कैसे कहँू तेरे दुख की दास्ताँ, जब भारतवासी ही संवेदनहीन हो गए।।
सब अपने-2 स्वाथ्र्ाी में उलझे, किसके फिक्र हे देश ओर समाज की।
पीड़ा पतन से कराह रही जनता, अब याद आती हे प्रभु श्री राम की।।
सुनते है तेरी रहमत हे भगवान दिन-रात बरसती है।
वर्षा कर दो सद्बुद्धि की मेरे देश पर, हो चुकी अब बहुत दुर्गति है।।
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