गुड़ गोबर को मिलाएँ नहीं, गुड़ की अपनी उपयोगिता है गोबर की अपनी। परन्तु जब ये दोनों मिल जाते है तो असंमजस की स्थिति हो जाती है न खाने लायक न खाद के लिए प्रयोग करने लायक। मिशन में त्यागी, तपस्वी, नि:स्वार्थ स्वयं सेवक की आज भी कोर्इ कभी नही जो महाकाल के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर सकते है। लेकिन यदि हम उन्हें पहचानेंगे। नहीं, चिन्हित नहीं करेंगे, तराशेंगे नहीं, संगठित नहीं करेंगे। तो कैसे काम चलेगा? हीरो का हार कैसे बनेगा? मिशन के लिए मरने मिटने के जिनका खून उबलता है, जिनको सोते जागते केवल एक ही लक्ष्य नजर आता है मिशन-2 वो बहुमूल्य हीरे कैसे एकत्र हो सकें?
दूसरे वर्ग में वो लोग है जो किसी न किसी स्वार्थ के लिए मिशन से जुडे़ है कोर्इ कहता है गुरु बहुत देने वाला है सारी मनोकामना पूरी करता है। कोर्इ चाहता है उसकी रोजी रोटी मिथंन में अच्छी चल जाए, बाल बच्चे सही पल जाएँ। कोर्इ चाहता है बस वह बाचँता रहे उसकी फोटो अखबारों में छपती रहें। कोर्इ चाहता है कि उसको कुर्सी पर बड़ा मजा आता है बड़ी इज्जत है किसी तरह यह कुर्सी मिली रहें। साथ-2 यह भी भय है कि कोर्इ प्रतिद्वन्द्वी इसे हथिया न लें। आवाहन तो प्रतिभाशाली वर्ग का कर रहे है परन्तु कोर्इ कुर्सी का बड़ा दावेदार अधिक योग्य न निकल आए। न जाने क्यों कुर्सी का पुख एक सीमा तक भोग लेने के उपरान्त व्यक्ति परमात्मा से प्रार्थना नहीं करता कि क्या इसी में उलझाए रहोगें? अब कोर्इ ओर योग्य उत्तराधिकारी इसके लिए भेज दो। इस पर बैठे-2 कमर भी दुखने लगी है। यह तो वही हाल हुआ ‘आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास’। लौकेषणा व्यक्ति को ऐसे भ्रमित करती है कि वह आत्मज्ञान के लक्ष्य से कोसो दूर चला जाता है मात्र कुर्सी का पहरेदार बनकर रह जाता है। कर्इ जगह तो हालत ऐसे हो जाती है कि जैसे कुत्ता किसी घर की रखवाली करता है व कोर्इ भ्ी उस घर की ओर आए उसे ही भौकता है ऐसे कुर्सीधारी व्यक्ति कुर्सी को बचाए रखते है हरेक के सन्देह की दृष्टि से देखने लगते है जो भी कुर्सी के नजदीक जाता दिखे उसी का पता साफ करने के ताने वाने बुनने लगते है। व्यक्ति मिशन, परमात्मा, गुरु सब कुछ भूलता जाता है बस कुर्सी के तानों बानों में अपने अमूल्य समय व प्रतिभा के नष्ट करता रहता है।
हमें भी पूरी सावधानी से साथ आगे बढ़ना हैं इसमें कोर्इ सन्देह नहीं कि हमारा मिशन आने वाले समय में विश्व की सर्वोच्च मिशन होगा।
देव सेना का गठन
कितना अदभुत होता यदि हमारे पास 24
लाख लोगो की एक चतुरगिंणी देवसेना होती। चतुरंगिणी का अर्थ है जिसमें चार प्रकार के सैनिक हों- आत्मदानी, समर्पित, सहयोगी, व समर्थक। काश हमारे पास 24
हजार आत्मदानी कार्यकर्ता होते अर्थात् जिनके जीवन का केवल एक ही लक्ष्य है-युग निर्माण। जिनके प्राणो में मिशन सुलगता रहता हो जिनके मोह बन्धन कर चुके हो, अपने शरीर से भी मोह न रहा है जो इस महायज्ञ में अपने जीवन की आहुति समर्पित करने को तत्पर हों। समय आने पर खून की होली खेल जाएँ ऐसा दृढ़ संकल्प जिनका हो उन्हें हम आत्मदानी स्तर के कार्यकर्ता कह सकते है। दूसरे हमें एक लाख समर्पित कार्यकर्ता चाहिए। जिनसे परिवार के बन्धन ढ़ीले हों, आधी प्रतिभा भगवान के काम के लिए व आधी अपने घर परिवार के पालन पोषण के लिए लगाएँ वे समर्पित है यदि पचास हजार मासिक कमाएँ तो 25
मिशन के लिए व 25
निज के लिए लगाएँ। सक्रिय समयदान किए बिना जिनको चैन न पड़ता हो। आत्म इच्छा व आत्म प्रेरणा से जो युग निर्माण के कार्य में संलग्न रहते हों वो समर्पित की श्रेणी में आते है।
आत्मदानी व समर्पित कार्यकर्ता में अन्तर मोटे रूप में ऐसे माना जा सकता है आत्मदानी मिशन को अपना रक्त दे सकते है जबकि समर्पित मिशन के लिए दूध दे सकते हैं। दूध जैन शास्त्रों में शान्ति, करूणा, प्रेम के लिए आता है अर्थात् सामान्य अथवा अनुकूल परिस्थितियों में जो मिशन का कार्य लगन से करता रहे वह समर्पित। परन्तु विपरीत परिस्थितियों में भी जो वीरता के साथ मोर्चे पर डटा रहे वह आत्मदानी। जो सैनिक कुछ विशेष करामात युद्ध में दिखलाते है उन्हें पदक दिए जाते है इसी प्रकार समर्पित व्यक्तियों में से विशेष प्रतिभा वाले आत्मदानी का चयन किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त एक बात ओर है जिसके अन्दर देवसत्ताओं का कार्य करने की इच्छा है वह पद, अवसर अथवा बुलावा आदि को नहीं देखता। वह तो कुछ न कुछ श्रेष्ठ अवश्य करता रहता हैं। किसी समर्पित अथवा आत्मदानी के हम पदवी दें या न दें इससे उस पर कोर्इ अन्तर नहीं पड़ता। वह समर्पण कैसा जो पद प्रतिष्ठा की चाह से बंधा हो वह तो व्यापार है। परन्तु सेना के गठन के लिए हमें हीरों को एक सूत्र में पिरोना है। हीरो का हार गुरूदेव माता जी के गले में डालना है।
यह आवश्यक नहीं जो शक्तिपीठो पर समयदान दे रहे है, अथवा केन्द्रों में बैठे है, वही समर्पित है। क्षेत्रों में अपना सामान्य जीवन जी रहे बहुत से व्यक्ति भी समर्पित हो सकते है। शक्तिपीठो पर अनेक कार्यकर्ता खाली माक्खियाँ मारते देखे जा सकते है जबकि बाहर दौड़-दौड़ कर काम करने वाले लोग भी देखे जा सकते है। अन्तर का उत्साह, लगन, अन्तर के सदगुण व्यक्ति को समर्पित व प्रतिभावान बनाते है।
तीसरे वर्ग के कार्यकर्ता है सहयोगी, अर्थात् जिनसे जब-जब सहयोग माँगा जाएँ समय दान अंशदान लिया जाए वो अपनी परिस्थिति अनुसार करते रहते हों उन्हें सहयोगी कहा जा सकता है। गायत्री परिवार में इस स्तर के कार्यकर्ता बड़ी सख्याँ में मिल सकते है। चौथा एक और वर्ग है-समर्थको का। यह वर्ग हमारा सक्रिय सहयोग भले ही न करता हो परन्तु गुरू सत्ता के विचारो से प्रभावित है, अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयत्नशील है व हमारे कार्यक्रमों व गतिविधियों में रूचि लेता है व उसका समर्थन एवं प्रंशसा भी करता है।
हम इनकी grading कर सकते है कुछ आधार बनाकर जैसे A ग्रेड, B ग्रेड, C ग्रेड, D ग्रेड कार्यकर्ता। इनका database व Idintity Card बना सकते है व कुछ Serial No., State व
District Wise दे सकते है। यदि हमें अपने कार्यकर्ताओं की अर्थात् देव सेना की सही जानकारी मिल जाए उनकी सामथ्र्य का सही आकंलन हम कर पाएँ तो एक सुनिश्चित योजना बनाकर हम आगे बढ़ सकते है। अभी कठिनार्इ यह है कि किस राज्य की कितनी सामथ्र्य है युग निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने की, यह उचित अनुमान सम्भवत: हमें नही है। हम आगे बढ़ तो रहे है, चल तो रहे है परन्तु अस्त व्यस्त रूप में। यदि हम उचित व्यूह रचना कर आगे बढ़े ंतो चमत्कारी परिणाम हमें मिल सकते है व निराशा के इस दौर से उबर सकते है।
जो वायदे हमने जनता से किए थे, जो प्रवचन हम मंचो से खडे़ होकर देते रहें जो ठीक हमारे हृदय में उठती है कि हम सन् 2,000 तक बहुत कुछ करना चाहते थे उसकी भरपार्इ कर सकते है। अन्यथा आने वाली पीढ़ी खाली राजनेताओं के ही नहीं जूते मारेगी हम धर्म तन्त्र के लोगो से भी सवाल खड़ा करेगी जो शसकीं सदी उज्जवल भविष्य की गंगोत्री शाँतिकुंज हरिद्वार से निकली थी वो कहाँ विलुप्त हो गयी? क्यों विलुप्त हो गयी? किन कमियों के रहते वह ठीक दिशा में आगे नहीं बढ़ पायी? दूसरे हमारी अपनी आत्मा भी हमें कोसेगी कि हम समय रहते बहुत कुछ कर सकते थे परन्तु हमारे र्इष्र्या, द्वेष, legpulling झूठे अंह, मान सम्मान की इच्छा जैसे दुर्गुण आडे आ गए। हम संगठित नहीं हो पाएँ, एक दूसरे पर दोषरोपण ही करते रह गए, एक दूसरे से तुलना ही करते रह गए, गुट बाजियों में उलझ गए।
आओ आज हम सभी गायत्री परिजन पूज्यवर के अहसानों को उनके अरमानो को याद करें। जो भी कमियाँ बुरार्इयाँ हमारे भीतर है उनको दूर कर आगे बढ़ें, यदि कुछ नयी पीढ़ी के युवा तेजी से आगे बढ़ना चाहते है तो उनका मार्ग खाली करें उनकी पीठ थपथपाएँ उन पर गर्व महसूस करें अपनी टाँग उनके रास्ते में न अडाँए अन्यथा महाकाल का ब्रàमदंड हमारी कमर तोड देगा हम अस्पतालों के चक्कर काटते रहेंगे, न जीने लायक होंगे, न मरने लायक।
अन्त में हम अपनी आराध्य सत्ता से यही प्रार्थना करते है कि जो आशा अपेक्षाएँ आपने हमसे की थी हम उस पर खरे उतर पाएँ, हमारी कमियाँ हमें आपसे दूर न ले जाएँ हे प्रभु हम आपसे यही निवेदन करते है हम कहीं भटक न जाँए आपकी अंगुली पकडकर आगे बढ़ते रहें कहीं यह छूट न जाएँ। छोटी मोटी सफलता विफलता हमें उद्विग्न न करें। हे महाप्राण हमारा हृदय आपके कारण से सदा योगयुक्त रहें शक्ति, भक्ति, आनन्द, प्रेरणा सदा पाता रहें। हमारे अन्दर कोर्इ अंह केार्इ विकार न पनपे व हम सदा आपकी सेवा का उद्देश्य लेकर ही जीवन में आगे बढ़ें।
जय गुरूदेव, जय श्री राम
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