Sunday, October 6, 2013

Jeevan Sanghrash Book-New Matter part-7 (महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण)

समय की आवश्यकता ऐसे महान व्याक्तियों की हैजो स्वार्थ संकीर्णता की कीचड़ में से थोड़े ऊँचे उठकर देशधर्मसमाज और संस्कृति के पुनरुत्थान में अपनी विभूतियाँ नियोजित कर सकते। ऐसी आत्माएँ अपने बीच भरी पड़ी हैअगणित नर-केसरी प्रचुर प्रतिभा और क्षमता के आगार हैं। उनकी गरिमा यदि इसी दिशा में चल पड़ी होती तो न जाने कितने गजब भरे प्रतिफल सामने आए होतेपर दुर्भाग्य इतना ही है कि धन का लालचवासना का प्रलोभन और यश-लिप्सा का व्यामोह छोड़ सकनेघटा सकने का मनोबल उपलब्ध कर सकनाइन तुच्छ दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त कर सकना उनके लिए संभव न हो सका।
आवश्यकता इस बात की है कि प्रबुद्ध आत्माएँ अपनी मूच्र्छा त्यागें और महामानव जीवन के स्वरूपलक्ष्यप्रयोजनकत्र्तव्य एवं उत्तरदायित्व के संबंध में गंभीर चिंतन करने के लिए तत्पर हों। इस प्रकार का चिंतन उन्हें एक ही निष्कर्ष पर ले पहुँचेगा कि भेड़-बकरियों जैसाकीट-पतंगों जैसा पेट और प्रजनन के लिए जिया जाने वाला जीवन उनके लिए अनुपयुक्त हैभले ही उसी घृणित स्तर की जिंदगी सारा जमाना जी रहा हो।
अपना महान इतिहास ऐसे ही नर-नारायणों के कर्तृत्वों की यशगाथा गाता है। उस गौरव-गाथा की आधारशिला अब लुप्त और समाप्त हो गई हो तो यही मानना होगा कि देवत्व का अंश-वंश अब समाप्त हो गया और हम लोग श्वानश्रृगाल जैसी शिश्नोदरपरायण निरुद्देश्य जीवन-पद्धति का वरण करके नर-पशुओं की जाति-वृद्धि ही कर पा रहे हैं।
उत्कृष्टता के लिए कुछ उत्सर्ग करने की महत्त्वाकांक्षा सो जाए तो समझना चाहिए कि मनुष्य मर गया। साँस तो लुहार की धौकनी भी लेती हैअन्न का चर्वण तो चक्की भी करती हैप्रजनन तो दीपक भी करता है और स्वाद के लिए मक्खियाँ भी दौड़-धूप करती रहती हैं। क्या इतना ही कर्तृत्व मनुष्य का होना चाहिए। मावन जीवन का लेखा-जोखा लेते समय उसकी वंश-वृद्धि और जमाखोरीएयाशीऐंठ-अकड़धूर्तता-विलासिता जैसी निकृष्ट प्रक्रियाएँ ही गिनी जा सकीं तो समझना चाहिए बेचारा अभागा प्राणीनर तन की गरिमा को नष्ट और कलंकत कर डालने का ही निमित्त बना।
जीवन के सदुपयोग का प्रश्न सर्वोपरि और सर्वप्रथम हैपेट ही सब कुछ नहीं होना चाहिए चूँकि लोग ओछा जीवन जीते हैं इसलिए अपने को भी इनका अनुकरण करने के लिए अंधानुयायी नहीं बनना चाहिए। भगवान ने जो स्वतंत्र चिंतन की बुद्धि और प्रतिभा दी हैउसका उपयोग करना चाहिए।
समाज के हम अविच्छिन्न अंग हैं। हमारी जिम्मेदारी शरीर-परिवार तक सीमित नहीं वरन सुविस्तृत जन-समाज तक व्यापक है। पड़ोस की अवांछनीय हलचलें किसी न किसी प्रकार अपने कोअपने परिवार को प्रभावित करेंगी और हानिकारक सिद्ध होंगी। सामाजिक विभाषिकाओं का हमें सामना ही करना चाहिए और उन्हें रोकने के लिए कुछ न कुछ करना ही चाहिए। स्वार्थी मनुष्य सोचता भर है कि मैं बहुत लाभ में रहूँगा पर वस्तुतः वह रहता अत्यधिक घाटे में है।
वर्तमान परिस्थितियाँ कैसी ही विषम अथवा उलझी हुई क्यों न होंउनके बीच भी बहुत कुछ करने का मार्ग निकल सकता है। जहाँ चाह वहाँ राह’ वाली उक्ति मिथ्या नहीं है।
साहस हमें एकत्रित करना ही होगा। कायरता और भीरुतास्वार्थ और संकीर्णता सेअज्ञान और व्यामोह से ग्रसित आज के जन-मानस की एक इकाई ही हमें नहीं बन जाना है वरन सजग विवेकवानों की तरह एकाकी अपने पैरों पर खडे़ होना और आगे बढ़ना होगा। हमें शूरवीरों की तरह साहसी बनना है। समय की पुकार हम अनसुनी न करें। युग की चुनौती स्वीकार करने से हम न कतरावेंयही उचित है।  
साहस ने हमें पुकारा है। समय नेयुग नेकत्र्तव्य नेउत्तरदायित्व नेविवेक नेपौरुष ने हमें पुकारा है। यह पुकार अनसुनी न की जा सकेगी। आत्मनिर्माण के लिएनवनिर्माण के लिए हम काँटों से भरे रास्तों का स्वागत करेंगे और आगे बढें़गे। लोग क्या कहते और क्या करते हैं इसकी चिंता कौन करेअपनी आतमा ही मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त है। लोग अँधेरे में भटकते हैं भटकते रहेंहम अपने विवेक के प्रकाश का अवलंबन कर स्वतः आगे बढ़ेंगे। कौन विरोध करता हैकौन समर्थनइसकी गणना कौन करेअपनी अंतरात्माअपना साहस अपने साथ है। सत्य के लिएधर्म के लिएन्याय के लिए हम एकाकी आगे बढ़ेंगे और वही करेंगे जो करना अपने जैसे सजग व्यक्तित्वों के लिए उचित और उपयुक्त है।
युग को बदलना है इसलिए अपने दृष्टिकोण और क्रिया-कलाप का परिवर्तन साहस के साथ या दुस्साहसपूर्ण करना ही होगा। इसके अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं। समय की चुनौती हमें स्वीकार करनी ही होगी।
ज्ञानयज्ञ को विश्वव्यापी बनाने का सकंल्प
अब हम सर्वनाश के किनारे पर बिलकुल आ खड़े हुए हैं। कुमार्ग पर जितने चल लिए उतना ही पर्याप्त है। अगले कुछ ही कदम हमें एकदूसरे का रक्तपान करने वाले भेडि़यों के रूप में बदल देंगे। अनीति और अज्ञान से ओत-प्रोत समाज सामूहिक आत्महत्या कर बैठेगा। अब हमें पीछे लौटना होगा। सामूहिक आत्महत्या हमें अभीष्ट नहीं। नरक की आग में जलते रहना हमें स्वीकार है। मानवता को निकृष्टता के कलंक से कलंकित बनी न रहने देंगे। पतन और विनाश हमारा लक्ष्य नहीं हो सकता।

दुर्बुद्धि और दुष्प्रवृत्तियों को सिंहासन पर विराजमान रहने देना सहन न करेंगे। अज्ञान और अविवेक की सत्ता शिरोधार्य किए रहना अब अशक्य है। हम इन परिस्थितियों को बदलेंगेउन्हें बदलकर ही रहेंगे। शपथपूर्वक परिवर्तन के पथ पर हम चले है और जब तक सामथ्र्य की एक बूँद भी शेष हैतब तक चलते ही रहेंगे। अविवेक को पदच्युत करेंगे। जब तक विवेक को मूर्द्धन्य न बना लेंगेतब तक चैन न लेंगे। उत्कृष्टता और आदर्शवादिता की प्रकाश किरणें हर अंतःकरण तक पहुँचाएँगे और वासना एवं तृष्णा के निकृष्ट दलदल से मानवीय चेतना को विमुक्त करके रहेंगे। मानव समाज को सदा के लिए दुर्भाग्यग्रस्त नहीं रखा जा सकताउसे महान आदर्शो के अनुरूप ढलने और बदलने के लिए बलपूर्वक घसीट ले चलेंगे। पाप और पतन का युग बदला जाना चाहिएउसे बदलकर रहेंगे। इस धरती पर स्वर्ग का अवतरण और इसी मानव प्राणी में देवत्व का उदय हमें अभीष्ट है और इसके लिए भगीरथ तप करेंगे। ज्ञान की गंगा को भूलोक पर लाया जाएगा और उसके पुण्य जल में स्नान कराके कोटि-कोटि नर-पशुओं को नर-नारायाणों में परिवर्तित किया जाएगा। इसी महान शपथ और व्रत को ज्ञानयज्ञ के रूप में परिवर्तित किया गया है। विचार-क्रांति की आग में गंदगी का कूड़ा-करकट जलाने के लिए होलिका-दहन जैसा अपना अभियान है। अनीति और अनौचित्य के गलित कुष्ठ से विश्वमानव का शरीर विमुक्त करेंगे। समग्र कायाकल्प कायुग परिवर्तन का लक्ष्य पूरा ही किया जाएगा। ज्ञानयज्ञ की चिनगारियाँ विश्व के कोने-कोने में प्रज्वलित होंगी। विचार-क्रांति का ज्योतिर्मय प्रवाह जन-जन तक के मन को स्पर्श करेगा। 

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