हमारी विडम्बना यह है कि हम झूठ कपट में डूबे रहते हैं Luxurious life जीना चाहते हैं, पसीना नहीं बहाते, श्रम से जी चुराते हैं। कोई रोग आता है तो आसन, प्राणायाम करके ठीक करना चाहते हैं। जब तक आधारभूत सिद्धांतों पर व्यक्ति नहीं चलेगा उसको कष्टों, रोगों से मुक्ति नहीं मिलेगी। यदि हमने ब्रह्मचर्य का पालन नहीं किया व कपाल-भाति ज्यादा लगा लिया तो यह हमारे लिए खतरनाक भी सिद्ध हो सकता है। व्यक्ति के लोकिक जीवन के पश्चात् आध्यात्मिक जीवन की बारी आती है। जो व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति करना चाहते हैं उन्हें पाँच नियमों पर चलना होगा-शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर प्राणिधान।
सत्य ऋषि पतंजलि सत्य को सर्वोपरि महत्व देते हैं। गाँधी जी बचपन में बड़े दुर्बल व कायर व्यक्ति थे। हरिश्चन्द्र का नाटक देख उन्होंने सत्य और अहिंसा पर चलना प्रारम्भ किया और वो एक आत्मबल सम्पन्न महामानव बन सके। उन्होंने अपनी जीवनी का नाम भी ‘मेरे सत्य के साथ प्रयोग’ (my experiments with truth) दिया है। सत्य का सामान्य अर्थ है सच्चाई के मार्ग पर चलना (follow the righteous path) अर्थात् सही बात अपनाना। क्या सही है क्या गलत? यह व्यक्ति को अपने विवेक से पता चलता है अथवा उसकी आत्मा उसको इस बात का बोध अवश्य कराती है।
लोग कहते हैं कि समाज झूठ के रास्ते पर चलकर पनप रहा है जो सच्चाई पर चल रहे हैं वो दुःख कष्ट उठा रहे हैं। ये सब उथली (surface level) मान्यताएँ है। जो परिश्रम नही करना चाहते, बुद्धिमान नहीं हैं अथवा प्रारब्ध वश जिनको सफलता नहीं मिलती वो भी यह कहने लगते हैं कि हम सच्चाई के कारण सफल नहीं हो पाए लेकिन पीछे खोजने पर कारण कुछ और मिलते हैं। कुछ लोग श्री कृष्ण जी का उदाहरण देने लगते हैं कि उनको भी असत्य का सहारा लेना पड़ा। इस विषय में यह ही कहना चाहूँगा कि अपवाद स्वरूप कभी-कभी परिस्थितिवश झूठ का सहारा लेना उचित होता है। जैसे यदि गाय के पीछे कसाई लगा है और बलपूर्वक आप उसको नहीं रोक पा रहे हैं तो असत्य बोलकर गाय की जान बचाइये। अपने लिए असत्य का सहारा नहीं लिया, स्वार्थ वश ऐसा नहीं किया अपितु निरीह प्राणी की रक्षा के लिए जो झूठ बोला उससे पाप और पुण्य दोनों का उदय हुआ। जो पाप था, वह बहुत छोटा था; गाय की रक्षा कर जो पुण्य मिला, वह बहुत बड़ा। अतः बड़े लाभ के लिए छोटी-मोटी हानि सहनी पड़ती है। अच्छा तो यह होता कि हम कसाई को बलपूर्वक रोक देते परन्तु यदि ऐसा सम्भव नहीं है तो दूसरा रास्ता अपनाना पड़ा। महाभारत के युद्ध में भी भगवान् श्री कृष्ण ने यही सीख दी कि अपनी नीयत सत्य के लिए दृढ़ रखो परन्तु यदि कभी-कभी मजबूरी हो तो असत्य का सहारा भी लेना पड़ सकता है।
यह ठीक ऐसा है जैसे हम किसी के यहाँ गए मजबूरी वश भारी भोजन किया तो पेट दर्द से बचने के लिए हमने कुछ हल्का एल्कोहल (झण्डु पंचारिष्ट) ले लिया तो वह लाभप्रद ही रहेगा। परन्तु यह यदि रोज लिया जाने लगे, स्वभाव का एक अंग बन जाए तो यही हमारे लिए हानिप्रद हो जाएगा।
सत्य पर चलने की जगह यदि हम जीवन में झूठ-कपट को स्थान देने लगें, रोज दूध में पानी मिलाने लगें, आफिस में बैठकर रिश्वत लेने लगें तो यह हमारे अपने व समाज के लिए बहुत घातक हो जाएगा। जो सत्य का आश्रय लेते हैं वो ठीक निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं क्योंकि पूरी प्रड्डति उनको सही मार्ग (guidance) देती है। यदि आप सही-सही चल रहे हैं तो न्यूटन के नियमानुसार आपको सब कुछ सही-सही मिलेगा। आपको सही जीवन साथी मिलेगा सही नौकरी मिलेगी, सही जगह जन्म मिलेगा। बहुत से लोग दूसरों से पूछते हैं कि नौकरी करें या व्यापार, संशय में रहते हैं। जो व्यक्ति सत्य पर चलता है उसकी आत्मा ही उसको सही बात बताने में समर्थ होती जाती है।
एक बार एक व्यक्ति किसी गम्भीर बीमारी में फंस गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह PGI Chandigarh दिखाए या IMS,Delhi दिखाए या गंगा राम में अपना ईलाज करवाए। बड़ी उलझन उसके दिमाग में चल रही थी। यदि व्यक्ति ने जीवन में अधिकतर सच्चाई को चुना है तो इस विषम समय में उसकी आत्मा उसका सही मार्गदर्शन करेगी। इस प्रकार हम देखते हैं कि सच्चाई के रास्ते पर चलने से हमें छोटी-मोटी कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है परन्तु हमारी आत्मा इतनी सशक्त हो जाती है कि हम हर परिस्थिति में सही निर्णय ले पाते हैं व बड़ी मुसीबतों से भी अपने को बचा ले जाते हैं।
आजादी से पूर्व हमने बहुत कुछ खोया, हमारे अन्दर बहुत कमियाँ थी जैसे जाति-भेद, लिंग-भेद, सती-प्रथा आदि परन्तु उस समय आम आदमी सच्चाई के रास्ते पर चलना पसन्द करता था इस कारण हम राष्ट्र पर आए बड़े-बड़े संकटों से अपने आप को उभार ले गए आज बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश की जनता का बहुत बड़ा भाग स्वार्थवश सच्चाई से हटता चला जा रहा है। पद-प्रतिष्ठा, धन-वैभव ने हमको अंधा कर दिया है। ठीक है हमको अच्छी सुख-सुविधाएँ मिल जाएँगी परन्तु अपनी आत्मा का हनन करके हम कभी भी सुखी नहीं रह पाएँगे। ठीक है बड़े-बड़े अस्पताल भी होंगे; बड़ा बैंक बैलेंस भी होगा परन्तु Diabetes, Cancer, Nervous-Disorder जैसी कष्ट दायक और असाध्य बीमारियाँ भी हमारे सामने एक चुनौती बन कर खड़ी हो जाएँगी। उस समय हमें बड़ा भारी पश्चाताप् होगा कि यह हम क्या कर बैठे जिस सुख के चक्कर में हमने धोखाधड़ी और भ्रष्ट रास्ता अपनाया वह तो पता नही मिला या नही मिला हाँ दुःखों का एक सैलाब हमारे ऊपर अवश्य टूट पड़ा।
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