आम तौर पर व्यक्ति अपनी
आध्यात्मिक उन्नति के लिए, अथवा अपने कष्टो को दूर करने के लिए देवी देवताओं,
आश्रमों में जाता है अच्छे गुरुओं, साधु सतों
को खोजता है। परन्तु कभी-कभी ऐसा समय आता है जब सूक्ष्य जगत की देवसत्ताएँ धरती पर
धर्म की स्थापना के लिए मनुष्यों को खोजती हैं कि किनसे कैसे अपना कार्य कराया जा
सके। ऐसे समय को अवतारी चेतना का समय कहा जाता है। महात्मा बुद्ध जगह-जगह धूमे,
अंगुलिमाल के परमा गए, आम्रपाली के पास गए व
उनको घटिया जीवन से निकालकर उच्च प्रयोजनो में लगाया। राम कृष्ण परमहंस जी ने
नेरन्द्र को उनके सामान्य जीवन से ऊँचा उठाकर असामान्य बना दिया। श्रेता युग में
मात्र श्री राम ही एक अवतार नहीं हुए थे अपितु ऋषि विश्वमित्र, अगस्तय, पवन पुत्र हनुमान, सूर्य
पुत्र जाम्बवत आदि अनेको के पुरुषाथ्र्ाी से अवतारी चेतना का दुष्टो के संहारह का
कार्य पूर्ण हो पाया था। द्वापर युग में भी, ऋषि व्यास,
ऋषि सांदीपनी, ऋषि दुर्वासा व ऋषि परशुराम जी
के कठिन तप से महान भारत बनाने का संकल्प पूरा हुआ। कलियुग में इस समय यदि देंखे
तो श्री अरविन्द, श्री रमण, स्वामी राय
कृष्ण परमहंस, देव रहा बाबा, त्रैलंग
स्वामी, लाहिड़ी महाशय, युवा ऋषि,
श्री राम जी आदि अनेक महाशक्तियाँ देश में जन्मी जो काल व
परिस्थितियों के मोड़ने नियत्रित करने की क्षमता रखती थी। इसलिए इनको महाकाल की
संज्ञा दी जाती है। आने वाला समय इससे भी अधिक विलक्षण है। सन् 2000 बाद के
देवात्मा हिमालय से 24,000 ऋषि आत्माएँ भारत भूमि में जन्म ले चुकी है इनके
क्रियाकलाप महावतार के रूप में दुनिया के सामने आने जा रहे है। भारत की धरती पुन:
देव भूमि बनने जा रही है। यह खुशखबरी उन सभी सज्जनो के लिए है जो आज घुट-घुट कर जी
रहे हैं जो परमात्मा को प्यार करते है व साधना के रास्ते पर चलने का प्रयास करते
है। हर क्षेत्र में कला, विज्ञान, राजनीति,
धर्म आदि में उच्च व्यक्तित्वों का प्रभुत्व स्थापित होता चला जाएगा
क्योंकि ये ऋषि आत्माएँ अपना अलग-अलग क्षेत्र चुनेंगी जिसमें चहुँ ओर गन्दगी का
सफाया हो सके। यह न सोचा जाए कि जो पीला अथवा भगवा पहनकर गीत गाएगा, भाषण देगा वह ही अवतार होगा। संसार में रोल कोर्इ भी अदा करेगा परन्तु
भीतर से ऋषि स्तर का होगा। ऋषि स्तर के कलाकार, वैज्ञानिक,
राजनेता, समाजसेवी की आज समान में बहुत
आवश्यकता है। यह आवश्यकता शीद्य्र ही पूरी होने जा रही है। इसके कुछ संकेत भी
मिलने प्रारम्भ हुए है। अभी तक पढ़े लिखे लोग राजनीति में नहीं जाते थे। परन्तु अब
प्रबुद्ध वर्ग राजनीति में रूचि लेने लगा है।
अभी राजनीति मे बिगडेल लोग अधिक घुसते है। जिनके पास पैतृक खुला पैसा
होता है, बड़ी गड़ियाँ व मकान होते है करने को कुछ अधिक नहीं होता वो लोग अपनी
दादगिरि चमाकाने के लिए राजनीति में घुसते आ रहे है। जनता के पास कोर्इ विकल्प
नहीं रहता इन्हीं को न चाहते हुए भी चुनना पड़ता है। परन्तु सन् 2011 से परिवर्तन
हुआ है कुछ अच्छे प्रबुद्ध वर्ग के लोग राजनीति में आँए है भविष्य में अधिक
प्रबुद्ध वर्ग राजनीति से जुड़ेगा। कुछ वर्षो पश्चात् तपस्वी लोगो की घुसपैठ
राजनीति में होगी। अवतारी चेतना का युग परिवर्तन का कार्य हर क्षेत्र में होता
दिखेगा। अभीतों बीज से अंकुर ही फूट रहा है धीरे-धीरे यह बड़ा वृक्ष बढ़ेगा,
धरती पर धर्म की मानवीय मूल्यों की स्थापना करेगा। तब तक सज्जनो को
धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी होगी, अपने को भगवान के भजन में
लगाना होगा, दुष्टो का पलड़ा भारी देख उनमें नही घुसना है।
क्योंकि अब प्रतीक्षा का समय समाप्त होने जा रहा है। सेना तो दुर्योधन की बड़ी थी।
देवसेना का गठन हो रहा है उसका संचालन भगवान महाकाल स्वयं कर रहे है इस अवसर को
खोना नहीं है, माया के प्रलोभन में उलझन नहीं है। गिद्ध
गिलहरी की तरह अपना सहयोग अवश्य देना है जिससे मानव जन्म व्यर्थ न जाएँ। भगवान की
कृपा की करुणा की कुछ बूँदे हम पर भी गिरें।
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