Thursday, January 2, 2014

साधना समर - चुनोतिया एवं समाधान (आहुति)

आहुति एवम आभार (Chapter--1)  



       देवात्मा हिमालय के सन्देश के रूप में इस पुस्तक का प्रारम्भ हो रहा है। हिमालय पर सैकड़ों हजारो वर्षो से तप कर रहे सिद्ध पुरुषों ने विश्व के नवनिर्माण हेतु अपने संकल्प को पूर्ण करने के लिए सवा लाख लोगों में सन् 2014 में शक्तिपात करने का निष्चय किया है। सन् 2014 का अंक 7 (2+0+1+4) है। सवा लाख लोगों के सातो चक्रों में चेतना का स्फुरण होगा, शक्ति का जागरण होगा, सातवे आसमान सेपरमात्मा के प्रकाश का अवतरण होगा।अंग्रेजी के GOD  शब्द का पहला अक्षर G भी 7 वे (A,B,C,D,E,F,G) स्थान पर  आता हैं| पश्चिम के लोग भी इस वर्ष  दिव्य चेतना का सपर्श अनुभव करेंगे व साधना की दिशा में मुड़ेंगे। ये सवा लाख उच्च स्तरीय लोग साधना के लिए प्रेरित होंगे, बाध्य होंगे, अपने भीतर व बाहर तरह-तरह की उथल-पुथल का अनुभव करेंगे। देवसत्ताएं इनसे तीन वर्ष तक विशिष्ट साधनाँए सम्पन्न कराँएगी। सन् 2016 का  अंक 9 (2+0+1+6) है जो कि पूर्णंक माना जाता है। जो लोग अपनी साधना के लिए सचेत रहेंगे, गम्भीरता पूर्वक जुटे रहेंगे वो सन् 2016 में पूर्णता के निकट पहूँचेगे।पूर्ण रूप से परमात्मा से जुड़ने में सफल होंगे।
       यदि शक्तिपात के पश्चात व्यक्ति सावधानी नहीं रखता, साधना के अनुबन्धो से नहीं जुडता तो यह ऊर्जा हानिकारक भी हो सकती है। साधना की ऊर्जा को सम्भालकर व्यक्ति कैसे पूर्ण स्वस्थ, पूर्ण ज्ञानी, पूर्ण तृप्त, पराशांति को प्राप्त हो, यह इस पुस्तक को लिखने का मूल प्रयोजन है। यह दिव्य शक्ति अवतरण इस राष्ट्र में हजारों विवेकानंद उत्पन्न करने जा रहा है। भारतकी आत्मा को जगाने के लिए इस उच्चस्तरीय प्रयोग हेतु हमारे जीवन की आहुति महाकाल मांग रहा है। साधना के पथ का अनुसरण करते हुए हम आत्मदान की भूमिका में पहुँच सकें, इसी प्रयास की अपेक्षा देवआत्माएं हमसे कर रही हैं।
               हे देवात्मा हिमालय! मेरे भारत में ऐसे व्यक्तित्व उभर कर आएँ जो वास्तव में तपस्वी हों, संयमी हों, सेवाभावी हों, विनम्र हों, साहसी हों, दृढ़ संकल्पी हों। जिन सपूतों को देखकर धरती माँ प्रसन्न हो सके! जिन पर नाज कर सके, जो माँ के आँसू पोंछ सकें। यों तो संस्थाएँ बहुत हैं, सन्त बहुत हैं, नेता व लोकसेवी बहुत हैं, परन्तु दुर्भाग्यवश  अधिकाँश अपनी समस्याओं से ग्रस्त हैं। जिसके भी भीतर झांका, जिस पर से पर्दा उठा, खोखलापन नजर आया, भीतर चल रहा व्यापार नजर आया, यह आम आदमी का अनुभव है, मीडिया की आवाज है। जनता दु:खी है, जाए तो कहाँ जाए? किस पर विश्वास करें किसके आगे दु:ख दर्द बाँटे?
       क्या भारत में फिर से वीर सुभाष, भगत सिंह, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी, तिलक, सरदार पटेल का निर्माण नहीं हो सकता जो भीतर व बाहर हर तरफ से फौलाद हों। वैसे तो भारत में बहुत से ब्रह्मज्ञानी कहलाए जाते हैं परन्तु अधिकतर कच्चे घड़े हैं जरा सी चोट पड़ते ही बिखर जाते हैं। कैसे भारत की धरती पर ब्रह्मकमल खिल सकता है? कैसे साधना के द्वारा उच्च कोटि के महामानवों का निर्माण हो सकता है? जिन पर जनता विश्वास कर सके, जिनका अनुकरण कर सके। ऐसे प्रकाश स्तम्भ तैयार हों जो व्यक्ति को सच्चार्इ, अच्छार्इ, त्याग और तप के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सकें। कैसे नरेन्द्र विवेकानन्द बने? कैसे मोहनदास महात्मा गाँधी बनें? कैसे 21वीं सदी का उज्ज्वल भविष्य नजर आए? यही प्रश्न लेखक को कचोटते रहते हैं? सोचने को विवश करते हैं, देवात्मा हिमालय का जो संदेश युग ऋषि श्रीराम जी, श्री अरविन्द जी ने दिया, वह कैसे पूरा हो? महाकाल के सतयुग की वापसी के संकल्प में हम कैसे अपनी भागीदारी दें? ये विचार हर जाग्रत आत्मा को चैन से नहीं बैठने देते। इसी वेदना को अपने भीतर संजोए इस पुस्तक के रूप में उस परम पवित्र महायज्ञ में अपनी एक छोटी सी आहुति देने का प्रयास किया गया है। आशा है यह आहुति देवआत्माएँ  स्वीकार करेंगी।
       आज अध्यात्म विद्या पर शोध की बहुत आवश्यकता है, इस विद्या पर कार्य बहुत कम हो पा रहा है। जहाँ संस्थाएँ छोटी हैं वहाँ उनका लक्ष्य है किसी प्रकार धन बटोर कर बड़ा किया जाए। जब बड़ी हो जाती हैं, तो वहाँ आपसी झगड़े बढ़ जाते हैं व पदाधिकारी लोग अपनी कुर्सी बचाने पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। मूल प्रयोजन मात्र जनता के सामने आने पर ही लच्छेदार शब्दों में प्रस्तुत किया जाता है जिससे संस्था की पद प्रतिष्ठा बनी रहे। परन्तु आने वाले समय में जागरूक जनता जवाबदेही माँगेगी, चुप नहीं बैठेगी।
       जनता को देखना चाहिए कि जिन संस्थाओं को उन्होंने भारी भरकम धन चढ़ाया है क्या वो वास्तव में उसकी पात्र हैं? अथवा केवल मंचो से मीठी-मीठी बातें बनाकर दिल बहलाया जा रहा है, समय व धन कुछ तथाकथित सन्तों, समाज सेवियों के विलासपूर्ण जीवन में नष्ट किया जा रहा है। इससे करोड़ों अरबों रूपयों पर चलने वाली संस्थाएँ अधिक सक्रियता से समाज के उत्थान में अपनी भागीदारी देंगी।
       जैसे महाकाल की कृपा से वर्त्तमान राजनीतिक पटलपर कुछ अच्छे लोग उभर  कर आगे आ रहे है जन-मानस भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध एकजुट हो रहा है , समाजसेवा के क्षेत्र में भी अच्छे व्यक्तित्वों को प्रसिद्धि मिलेगी। अत: अच्छे लोग बिना निराश हुए अपना कार्य भीलनी की तरह करते रहें, प्रभु उनके द्वार अवश्य आएँगे यह महाकाल का वादा है।
       अन्त में उन सभी महान आत्माओं, संस्थाओं को मेरा सादर नमन जो इस राष्ट्र को ऊँचा उठाने के लिए प्रयत्नशील हैं, मानवता व संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही हैं। मंगलमय भगवान सबको शक्ति दें व संगठित होने की प्रेरणा दें, मात्र यही हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं।
    

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