Wednesday, January 1, 2014

Science and Mechanism of KUNDLINI SADHNA-1 कुण्डलिनी साधना का विधान एवं विज्ञान भाग -1

इस विश्व ब्रह्माण्ड में दो विभिन्न प्रकार की ऊर्जाएँ अथवा धाराएँ विद्यमान है जिनके मिलन से सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण हुआ है। यदि हम विद्युत शक्ति (Electric Current) के सम्दर्भ में देखे तो हम positive व negative दो Poles को मिलाकर इस ऊर्जा का निर्माण करते है। विद्युत ऊर्जा के चमत्कार ने सारे विश्व को भौतिक सुख सुविधाओं से सम्पन्न कर मानव जीवन को उन्नत किया है। इसी प्रकार यदि हम चुम्बकीय शक्ति को देखें तो दो धुव्र उत्तरी दक्षिणी होते है। चुम्बकीय शक्ति को विद्युत शक्ति में विद्युत शक्ति को चुम्बकीय शक्ति में परिवर्तन किया जा सकता है। यदि हम अध्यापक विज्ञान की बात करें, यहाँ भी शास्त्र पुरुष और प्रकृति की बात करते है। इन्हीं को शिव और शक्ति भी कहा जाता है। ऋषियों के अनुसार यत ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे अर्थात जो कुछ ब्रह्माण्ड में है वह इस पिण्ड अर्थात शरीर में भी है। हमारे शरीर में भी दो केन्द्र है। एक ब्रह्मा चेतना का जिसको सहस्त्रार कहा जाता है दूसरा प्राण शक्ति का जिसको मूलाधार कहा जाता है। चेतना प्राण दोनों मिलकर ही मानव जीवन की संरचना करते है जीवन के विविध व्यापार सम्पन्न होते है। यदि हम इन दोनों केन्द्रो को activate कर लें और दोनों के बीच एक circuit बना लें जो अवरोध रहित हो, जिसमें से होकर ऊर्जा का flow सही से हो जाए तो हमें प्रचुर मात्रा में ऊर्जा की उपलब्धि हो सकती है। यह ऊर्जा 72,000 नाडियों के द्वारा पूरे शरीर में प्रवाहित होती है। इन नाडियों के विभिन्न कार्य है कुछ नाडियाँ स्थूल शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है जिसमें उसके अंगो का संचालन उचित प्रकार से हो सकता है। उदाहरण के लिए हृदय एक बहुत बड़ी pumping machine है जो बहुत बारीक-बारीक नाडियों में रक्त प्रवाहित करता हैं इतनी बड़ी पम्पिंग मशीन भौतिक जगत में बड़ी कठिनाइ से ही बनाई जा सकती है। यदि मशीन को ऊर्जा सही मात्रा में बिना अवरोध के मिलती रहे तो कार्य सुचारू रूप से चलता रहेगा। परन्तु यदि voltage में fluctuation होता है या voltage कम हो जाए तो मशीन कार्य नहीं करेगी। इसी प्रकार जब हृदय में प्राण प्रवाह में अवरोध आता है तो heart attack की सम्भावना बनती है। कइ बार सोते-सोते अवचे मन के कारण यह अवरोध अचानक जाता है व्यक्ति दौरा से पीड़ित हो जाता है।
     यदि हम इस विज्ञान को थोड़ा समझ ले तो हृदय को सशक्त बनाकर रोगो से बहुत हद तक रक्षा की जा सकती है। जो नाडियाँ स्थूल शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है उनका केन्द्र नाभि चक्र है। जैसे अलग-अलग मोहल्लो के ट्रासफार्मर अथवा अलग-अलग क्षेत्रों के power station अलग-अलग बनाए जाते है ऐसे ही नाभि चक्र स्थूल शरीर का नियन्त्रक (controller) है। यदि नाभि चक्र को activate कर लिया जाए तो स्थूल शरीर से सम्बन्धित अनेक समस्याओं जैसे गढिया, अस्थमा, रोग प्रतिरोधी क्षमता को ठीक किया जा सकता है। रावण का नाभि चक्र सिद्ध था। श्री राम जब भी रावण के किसी अंग पर घात करते तो वह पुन: कुछ समय पश्चात् ठीक (heal) हो जाता। पहले लड़ाई  ऊर्जा की होती थी। विभिन्न अंगो से ऊर्जा को बाणो के माध्यम से सोख लिया जाता था। बड़े योद्धा बुलेट प्रूफ जाकेटस पहने रहते थे अर्थात उच्च कोटि के कवंच धारण किये रहते थे। बाणो के द्वारा जिनको भेदना सम्भव नही होता था इस कारण ऊर्जा बाणो का प्रयोग कर शुत्र को क्षति पहुँचाई  जाती थी। कहते है कि इन्द्रजीत ने राम लक्ष्मण को नागपाश में बाँध दिया था। यह श्री राम लक्ष्मण के नाग प्राणो को विक्षिप्त कर दिया था। अनाहत चक्र में नाग लघु प्राण होते है जिनको यदि विकृत कर दिया जाए तो हृदय गति रुक जाती है। पवनसुत हनुमान जी वायु (अर्थात प्राण) विज्ञान के सिद्ध साधक थे उन्होंने इस विकृति को दूर कर श्री राम लक्षण जी को बेहोशी से उबारा। इसी प्रकार श्री राम ने रावण के नाभि चक्र से ऊर्जा को सोख लिया इसमें रावण का अन्त हुआ। नाभि चक्र से ऊपर के चक्र सूक्ष्म कारण शरीर के केन्द्र है अर्थात इनसे निकलने वाली प्राणवाहिनी नाडियाँ सूक्ष्म कारण शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है। जिससे व्यक्ति बुद्धिमान, एकाग्रचित्र, स्मरण शक्ति उच्च भावो का धनी बनता है। अनाहत चक्र भावनाओ से संबंधित है जब मनुष्य की भावनाएँ परिष्कृत होने लगती है तो ऊर्जा ऊपर के चक्रो में जाने लगती है विशुद्धि चक्र से आध्यात्मिक ऋद्धि सिद्धियाँ व्यक्ति को दिखने लगती है यह चक्र सिद्ध करने के लिए पूर्ण शुद्धि की माँग करता है। अन्यथा यह विकृत हो सकता है।
     विशुद्धि से ऊपर आज्ञा चक्र सहस्त्रार चक्र आकाश तत्व के प्रतिनिधि है। आज्ञा चक्र तप शक्ति की माँग करता है। आज्ञा चक्र सहस्त्रार चक्र नीचे के चक्रो को नियन्त्रित कर सकते है। इनमें आयी कमियों को दूर कर उनका पोषण कर सकते है।

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