काश, हम महात्मा बुद्ध की इस शिक्षा को प्रारम्भ से ही अपने जीवन में धारण कर लेते।
आरोग्यपरमा लाभा यन्तुटिठ परमं धनं।
विस्सास परमा ञति निब्वानं परमं सुखं ॥
आरोग्य सबसे बड़ा लाभ है, संतोष सबसे बड़ा धन है। विश्वास सबसे बड़ा बंधु है, और निर्वाण बड़ा सुख है॥
जीवन लक्ष्य निर्वाण तक पहुँचने के लिए अर्थात् समाधि तक जाने के लिए पहली सीढ़ी सत्य है। यदि हम इस सीढ़ी पर नहीं चढ़े, यदि हमने सत्य को नहीं अपनाया तो हम चाहे कितने भी पूजा-पाठ, जप-ध्यान, तीर्थ-सेवन, दान-पुण्य करें परन्तु दैव कृपा हमें नही मिलेगी, आध्यात्मिक उन्नति नहीं हो पाएगी। जप-तप की ऊर्जा हमारे अन्दर इस प्रकार के भंवर पैदा कर देगी कि हम जाल में फंसी मछली की तरह तड़पड़ते, छटपटाते रहेंगे। अतः हे भारत उठ! और सत्य पर चल कर अपनी आत्मा को सशक्त बना, अपने राष्ट्र को ऊँचा उठा।
शास्त्रकारों ने बहुत मर्म की बात कही है-"सत्यमेव जयते"। अर्थात् जहाँ सच्चाई है वही जय है। जो व्यक्ति सच्चाई पर चलता है हँसते-हँसते परम संतोष के साथ अपने प्राण छोड़ता है, वह परमात्मा की गोदी में वर्षों विश्राम करता है। इस लोक में उसका जीवन कष्टों से भरा हो सकता है परन्तु उसका परलोक बहुत ही शांत और आनन्दमय रहता है इसके विपरीत असत्य पर चलने वाला व्यक्ति कुछ सुख-सुविधा अधिक बटोर ले परन्तु जीवन के अन्तिम वर्षों में एक प्रकार की पीड़ा व असंतोष से घिर जाता है। शरीर की शक्ति क्षीण हो जाती है, आत्मा धिक्कारने लगती है कि तेरा ये जीवन अनावश्यक ताने-बाने बुनने में ही व्यर्थ चला गया इसी पीड़ा पश्चाताप के साथ वह शरीर छोड़ता है और वर्षों नरक की अग्नि में झुलसता रहता है।
जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान् महावीर का कथन है-
"सदा सावधान और प्रमादरहित होकर सत्य का पालन करें। संसार के सभी सत्पुरुषों ने असत्य को निंदित ठहराया है। क्रोध में, भय में, हास्य-विनोद में भी असत्य भरे पाप वचन न बोलें। खूब सोच-विचार कर परिमित ही बोलना चाहिए, ताकि असत्य का उच्चारण न हो। आत्म कल्याण के इच्छुक साधक को परिमित, असंदिग्ध, परिपूर्ण, स्पष्ट, वाचलतारहित और किसी को पीड़ा न पहुँचाने वाली सत्य से युक्त मधुर-वाणी ही बोलनी चाहिए।"
श्री रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे-
"कलियुग की तपस्या सत्य भाषण है। सत्य के बल से भगवान् को प्राप्त किया जा सकता है। असत्य को अपनाने वाले मनुष्य का धीरे-धीरे सर्वनाश ही हो जाता है।"
स्वामी रामतीर्थ का कथन है-
"चाहे सारी दुनिया भी तुम्हारे विरुद्ध होती हो, तो भी तुम सत्य पर आरूढ़ रहो। सत्य बहुत ही मूल्यवान है, उसे प्राप्त कर सको तो ब्रह्म की प्राप्ति सहज है। सत्य के लिए यदि अभावग्रस्त जीवन अपनाना पड़े, सांसारिक कामनाओं और महत्त्वाकांक्षाओं से विमुख होना पड़े, कुटुंबी और रिश्तेदारों को नमस्कार करना पड़े, यहाँ तक कि चिर-पोषित अन्य विश्वासों को भी छोड़ना पड़े तो उन्हें छोड़ देना ही उचित है यह सत्य के साक्षात्कार का मूल्य है। जब तक उस मूल्य को न चुकाया जायेगा-सत्य की उपलब्धि न हो सकेगी।"
श्री अरविंद की अनुभूति है-
"सच्चाई समस्त सच्ची प्राप्तियों का मूल आधार है। यही साधन, मार्ग और लक्ष्य है। सच्चे बनने पर तुम दिव्य जीवन से संबंधित हो सकोगे।"
महात्मा गाँधी ने कहा है-
"परमेश्वर का सच्चा नाम ‘सत्’ अर्थात् सत्य है। इसलिए परमेश्वर सत्य है, यह कहने की अपेक्षा ‘सत्य ही परमेश्वर है’-यह कहना अधिक अच्छा है। सत्य की आराधना के लिए ही हमारा अस्तित्व है, इसी के लिए हमारी प्रत्येक प्रवृत्ति और इसी के लिए हमारा श्वासोच्छवास होना चाहिए। साधारणतया सत्य का अर्थ सच बोलना मात्र समझा जाता है, परंतु विचार में, वाणी में और आचार में सत्य का होना ही सत्य है। इस सत्य को पूर्णतया समझने वाले के लिए जगत् में और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता। सत्य को परमेश्वर मानना मेरे लिए अमूल्य धन रहा है। मैं चाहता हूँ कि यही हममें से सबके लिए हो।"
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने लिखा है-
"सत्य के ग्रहण और असत्य के त्याग के लिए सर्वदा उद्यत रहना चाहिए। सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य का विचार कर करने चाहिए। जो भक्त उपासना का अभ्यास करना चाहे उसके लिए उचित है कि वह किसी से बैर न रखें। सबसे प्रीति करें। सत्य बोलें। मिथ्या कभी न बोलें। चोरी न करें। सत्य का व्यवहार करें। जितेंद्रिय हों, लंपट न हों, निरभिमानी हों। राग-द्वेष छोड़ भीतर-बाहर से पवित्र रहें।"
भक्त-संतों ने भी ईश्वर उपासना में सत्य को ही प्रारंभिक एवं आवश्यक साधन माना है।
कबीर कहते है-
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हृदय साँच है, ताके हृदय आप।
हरि का मिलन सहज है, जो दिल साँचा होय।
साँई के दरबार की, राह न रोके कोय॥
संत दादू दयाल का वचन है-
सीधा मारग साँच का, साँचा होय सो जाय।
झूठे को कुछ ना मिले, दादू दिया बताय॥
दया धर्म का रूखड़ा, सत् से बढ़ता जाय।
संतों को फूलै फलै, वही अमर फल खाय॥
भक्त पलटूदास की उक्ति है-
भक्त पलटूदास की उक्ति है-
पलटू पकडे़ साँच को झूठे से रह दूर।
दिल में आवे साँच तो साहब हाल हजूर॥
रामायण में सत्य की महत्ता प्रकट करने वाली अनेक चैपाइयाँ हैं-
(1) सत्य मूल सब सुकृत सुहाये।
वेद पुराण विदित मनु गाये (राम चरितमानस 2.28/3)
(2) नहिं असत्य सम पातक पुंजा।
गिरी सम होंहि कि कोटिक गुंजा॥ (राम चरितमानस 2.28/3)
(3) तनु तिय तनय धाम धन धरनी।
सत्यवंत कहूँ तृन सम बरनी॥ (अयोध्या कांड 34/4)
यदि अपने पैर सत्य को अपनाने में लड़खड़ाते हों, साहस न होता हो, आंतरिक दुर्बलताएँ हताश करती हों तो भी निराश नहीं होना चाहिए। समस्त बलों के केंद्र उस परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह सत्य व्रत पालन करने से हमें साहस, बल, धैर्य, निष्ठा और इस मार्ग में जो कष्ट आयें, उन्हें सहन करने की क्षमता प्रदान करें। वेद में एक ऐसी ही प्रार्थना आती है-
अग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामि तच्छकेयम्।
तन्मे राध्यतां इदमहमनृतात्सत्यमुपैमि॥ -युज.
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