Sunday, January 12, 2014

साधना समर - पातञ्जल योग दर्शन(अष्टांग योग)-4

     काशहम महात्मा बुद्ध  की इस शिक्षा को प्रारम्भ से ही अपने जीवन में धारण कर लेते।
आरोग्यपरमा लाभा यन्तुटिठ परमं धनं।
विस्सास परमा ञति निब्वानं परमं सुखं ॥ 
     आरोग्य सबसे बड़ा लाभ हैसंतोष सबसे बड़ा धन है। विश्वास सबसे बड़ा बंधु हैऔर निर्वाण बड़ा सुख है॥ 
     जीवन लक्ष्य निर्वाण तक पहुँचने के लिए अर्थात् समाधि तक जाने के लिए पहली सीढ़ी सत्य है। यदि हम इस सीढ़ी पर नहीं चढ़ेयदि हमने सत्य को नहीं अपनाया तो हम चाहे कितने भी पूजा-पाठजप-ध्यानतीर्थ-सेवनदान-पुण्य करें परन्तु दैव कृपा हमें  नही मिलेगीआध्यात्मिक उन्नति नहीं हो पाएगी। जप-तप की ऊर्जा हमारे अन्दर इस प्रकार के भंवर पैदा कर देगी कि हम जाल में फंसी मछली की तरह तड़पड़तेछटपटाते रहेंगे। अतः हे भारत उठ! और सत्य पर चल कर अपनी आत्मा को सशक्त बनाअपने राष्ट्र को ऊँचा उठा।
     शास्त्रकारों ने बहुत मर्म की बात कही है-"सत्यमेव जयते"। अर्थात् जहाँ सच्चाई है वही जय है। जो व्यक्ति सच्चाई पर चलता है हँसते-हँसते परम संतोष के साथ अपने प्राण छोड़ता हैवह परमात्मा की गोदी में वर्षों विश्राम करता है। इस लोक में उसका जीवन कष्टों से भरा हो सकता है परन्तु उसका परलोक बहुत ही शांत और आनन्दमय रहता है इसके विपरीत असत्य पर चलने वाला व्यक्ति कुछ सुख-सुविधा अधिक बटोर ले परन्तु जीवन के अन्तिम वर्षों में एक प्रकार की पीड़ा व असंतोष से घिर जाता है। शरीर की शक्ति क्षीण हो जाती हैआत्मा धिक्कारने लगती है कि तेरा ये जीवन अनावश्यक ताने-बाने बुनने में ही व्यर्थ चला गया इसी पीड़ा पश्चाताप के साथ वह शरीर छोड़ता है और वर्षों नरक की अग्नि में झुलसता रहता है।
जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान् महावीर का कथन है-
     "सदा सावधान और प्रमादरहित होकर सत्य का पालन करें। संसार के सभी सत्पुरुषों ने असत्य को निंदित ठहराया है। क्रोध मेंभय मेंहास्य-विनोद में भी असत्य भरे पाप वचन न बोलें। खूब सोच-विचार कर परिमित ही बोलना चाहिएताकि असत्य का उच्चारण न हो। आत्म कल्याण के इच्छुक साधक को परिमितअसंदिग्धपरिपूर्णस्पष्टवाचलतारहित और किसी को पीड़ा न पहुँचाने वाली सत्य से युक्त मधुर-वाणी ही बोलनी चाहिए।"
श्री रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे-
     "कलियुग की तपस्या सत्य भाषण है। सत्य के बल से भगवान् को प्राप्त किया जा सकता है। असत्य को अपनाने वाले मनुष्य का धीरे-धीरे सर्वनाश ही हो जाता है।"
स्वामी रामतीर्थ का कथन है-
     "चाहे सारी दुनिया भी तुम्हारे विरुद्ध होती होतो भी तुम सत्य पर आरूढ़ रहो। सत्य बहुत ही मूल्यवान हैउसे प्राप्त कर सको तो ब्रह्म की प्राप्ति सहज है। सत्य के लिए यदि अभावग्रस्त जीवन अपनाना पड़ेसांसारिक कामनाओं और महत्त्वाकांक्षाओं से विमुख होना पड़ेकुटुंबी और रिश्तेदारों को नमस्कार करना पड़ेयहाँ तक कि चिर-पोषित अन्य विश्वासों को भी छोड़ना पड़े तो उन्हें छोड़ देना ही उचित है यह सत्य के साक्षात्कार का मूल्य है। जब तक उस मूल्य को न चुकाया जायेगा-सत्य की उपलब्धि न हो सकेगी।"
श्री अरविंद की अनुभूति है-
     "सच्चाई समस्त सच्ची प्राप्तियों का मूल आधार है। यही साधनमार्ग और लक्ष्य है। सच्चे बनने पर तुम दिव्य जीवन से संबंधित हो सकोगे।"
महात्मा गाँधी ने कहा है-
     "परमेश्वर का सच्चा नाम सत्’ अर्थात् सत्य है। इसलिए परमेश्वर सत्य हैयह कहने की अपेक्षा सत्य ही परमेश्वर है’-यह कहना अधिक अच्छा है। सत्य की आराधना के लिए ही हमारा अस्तित्व हैइसी के लिए हमारी प्रत्येक प्रवृत्ति और इसी के लिए हमारा श्वासोच्छवास होना चाहिए। साधारणतया सत्य का अर्थ सच बोलना मात्र समझा जाता हैपरंतु विचार मेंवाणी में और आचार में सत्य का होना ही सत्य है। इस सत्य को पूर्णतया समझने वाले के लिए जगत् में और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता। सत्य को परमेश्वर मानना मेरे लिए अमूल्य धन रहा है। मैं चाहता हूँ कि यही हममें से सबके लिए हो।"
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने लिखा है-
     "सत्य के ग्रहण और असत्य के त्याग के लिए सर्वदा उद्यत रहना चाहिए। सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य का विचार कर करने चाहिए। जो भक्त उपासना का अभ्यास करना चाहे उसके लिए उचित है कि वह किसी से बैर न रखें। सबसे प्रीति करें। सत्य बोलें। मिथ्या कभी न बोलें। चोरी न करें। सत्य का व्यवहार करें। जितेंद्रिय होंलंपट न होंनिरभिमानी हों। राग-द्वेष छोड़ भीतर-बाहर से पवित्र रहें।"
     भक्त-संतों ने भी ईश्वर उपासना में सत्य को ही प्रारंभिक एवं आवश्यक साधन माना है।
कबीर कहते है-
     साँच बराबर तप नहींझूठ बराबर पाप।
     जाके हृदय साँच हैताके हृदय आप।
     हरि का मिलन सहज हैजो दिल साँचा होय।
     साँई के दरबार कीराह न रोके कोय॥ 
 संत दादू दयाल का वचन है-
     सीधा मारग साँच कासाँचा होय सो जाय।
     झूठे को कुछ ना मिलेदादू दिया बताय॥ 
     दया धर्म का रूखड़ासत् से बढ़ता जाय।
     संतों को फूलै फलैवही अमर फल खाय॥ 
 भक्त पलटूदास की उक्ति है-
     पलटू पकडे़ साँच को झूठे से रह दूर।
     दिल में आवे साँच तो साहब हाल हजूर॥ 
रामायण में सत्य की महत्ता प्रकट करने वाली अनेक चैपाइयाँ हैं-
     (1)   सत्य मूल सब सुकृत सुहाये।
           वेद पुराण विदित मनु गाये (राम चरितमानस 2.28/3)
     (2)   नहिं असत्य सम पातक पुंजा।
           गिरी सम होंहि कि कोटिक गुंजा॥  (राम चरितमानस 2.28/3)
     (3)   तनु तिय तनय धाम धन धरनी।
           सत्यवंत कहूँ तृन सम बरनी॥  (अयोध्या कांड 34/4)
     यदि अपने पैर सत्य को अपनाने में लड़खड़ाते होंसाहस न होता होआंतरिक दुर्बलताएँ हताश करती हों तो भी निराश नहीं होना चाहिए। समस्त बलों के केंद्र उस परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह सत्य व्रत पालन करने से हमें साहसबलधैर्यनिष्ठा और इस मार्ग में जो कष्ट आयेंउन्हें सहन करने की क्षमता प्रदान करें। वेद में एक ऐसी ही प्रार्थना आती है-
           अग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामि तच्छकेयम्।

           तन्मे राध्यतां इदमहमनृतात्सत्यमुपैमि॥       -युज.  

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