हे व्रतपति परमेश्वर! मैं व्रत का पालन करने की अभिलाषा करता हूँ। मुझे वह शक्ति दो, जिससे व्रत को निभा सकूँ। मैं असत्य से सत्य की ओर बढ़ना चाहता हूँ। सच्चे मन से सदुद्देश्य के लिए की गई प्रार्थना को प्रभु सुनते हैं और तदनुकूल बल और प्रकाश भी प्रदान करते हैं। यदि हमारी निष्ठा सच्ची होगी, तो परमेश्वर वह बल हमें भी अवश्य प्रदान करेंगे।
अहिंसा
हमारे मन वचन और कर्म इस प्रकार के हों कि उससे किसी को नुकसान न पहुंचे इस भाव को अहिंसा कहते हैं। ऋषियों का उद्घोष है आत्मबल सर्वभुतेषु अर्थात् सब प्राणियों में एक ही आत्मा का वास है अथवा सबको अपने जैसा ही समझो यदि हम किसी को नुकसान पहुँचाने का प्रयास करेंगे उसकी प्रतिक्रिया वश वह नुकसान हमें भी उठाना पडे़गा। जिस समाज में अहिंसा का सिद्धांत फलता-फूलता है वहाँ खुशियाँ आती है, प्रकृति अपना प्यार उस समाज को देती है परन्तु जहाँ हिंसा होती है गाय, भैंस, बकरे, मुर्गे काटे जाते हैं प्रकृति रुष्ट होकर भूकम्प, बाढ़ों के रूप में अपना प्रकोप वहाँ बरसाती है। यह बात वैज्ञानिक भी सिद्ध कर चुके हैं कि जहाँ कत्लखानें, बुचड़खानें होते हैं वहाँ एक प्रकार की pain waves रहती हैं। ये तंरगें बढ़ते-बढ़ते सृष्टि में कम्पन, असंतुलन पैदा करती हैं।
जो व्यक्ति मांस भक्षण करते हैं उनके भीतर भी ये pain waves जाकर उसके सूक्ष्म शरीर को विकृत करती हैं। एक समय ऐसा आता है जब व्यक्ति किसी भयानक रोग अथवा संकट में फँस जाता है अतः सुखी जीवन के लिए हम सभी को अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए।
जो लोग हिंसा के रास्ते पर चलते हों उनको समझाएँ कि वे इसका बहिष्कार करें यह भी हमारा दायित्व है। जो अपने दायित्व को भलीभाँति निभाता है परमात्मा उसकी रक्षा करते हैं। उत्तराखण्ड की त्रासदी में जहाँ हजारों लोगों की दर्दनाक मौत हुई अनेक ऐसे लोग बच भी निकले जो उसको एक चमत्कार ही मानते हैं।
कुरूक्षेत्र के सुविस्तृत मैदान में दूर-दूर तक महाभारत युद्ध में मरे योद्धाओं की लाशें बिछी पड़ी थीं गिद्ध और कौऐ उन्हें नोंच-नोंच कर खा रहे थे। उस घमासान के कारण सब कुछ कुचला पड़ा था। शिष्यों समेत शमीक ऋषि उधर से निकले तो इस महानाश के बीच दो पक्षी शावकों को एक गज घंटा के पास चहचहाते देखा गया। शिष्यों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उन्होंने महर्षि से पूछा-भला, इस सब कुछ कुचल डालने वाले घमासान में ये बच्चे कैसे बच गए?
शमीक ने कहा- शिष्यों, युद्ध के समय आकाश में उड़ती हुई चिडि़या को तीर लगने से वह भूमि पर गिर पड़ी और उसने दो अण्डे प्रसव किये। संयोगवश एक हाथी के गले का घंटा टूट कर अंडों पर गिरा जिससे उनकी रक्षा हो गई। अब परिपक्व होकर वे बच्चों के रूप में घंटे के नीचे की मिट्टी हटाकर बाहर निकले हैं, सो तुम इन्हें उठा लो और आश्रम में ले जाकर इनका पालन-पोषण करो। एक शिष्य ने पूछा- जिस दैव ने इन बच्चों की, ऐसे महासमर में रक्षा की क्या वह इनका पोषण न करेगा? महर्षि ने कहा- प्रिय, जहाँ दैव का काम समाप्त हो जाता है वहाँ से मनुष्य का कार्य आरम्भ होता है। दैव ने मनुष्य को दया और सामथ्र्य का वरदान इसीलिए दिया है कि उनके द्वारा दैव के छोड़े हुये शेष कार्य को पूरा किया जाए।
यदि हमारे अन्दर अहिंसा की भावना दृढ़ हो गई है तो चाहे आसमान टूट जाएँ, धरती फट जाएँ। लेकिन जहाँ पर हम खड़े है उस स्थान पर कुछ नही बिगडे़गा अर्थात् अहिंसा की दृढ़ता होने पर पूरी सृष्टि में कोई भी नुकसान नही पहुँचा सकता। परन्तु इसके लिए हमें वैर-भाव का त्याग करना होगा, छोटी-छोटी बातों में उलझने से बचना होगा, प्राणी मात्र के प्रति आत्मीयता और सद्भाव बढ़ाना होगा, लोगों को क्षमा करना सीखना होगा। पूरे विश्व का मित्र बनकर विश्वामित्र की भूमिका में पहुँचना होगा। हम अपने मन में किसी के भी प्रति ईष्र्या-द्वेष न पालें। हमारे अन्तःकरण में कभी किसी का नुकसान देखने की इच्छा ना हो सबके प्रति प्रेम सबके कल्याण की भावना हमारे अन्दर रहें।
इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण आते हैं जब ईसा-मसीह को सूली पर लटकाया गया तो उन्होंने किसी को श्राप नहीं दिया जबकि उनके हृदय से जो भाव फूटें वो बहुत अद्भुत थे। उन्होंने कहा ”हे प्रभु! इन्हें क्षमा कर देना क्योंकि इन्हें नहीं पता कि ये क्या करने जा रहे है“ जब राम और रावण का युद्ध हुआ। रावण मृत्यु शैय्या पर था तो श्री राम ने लक्ष्मण जी को रावण से ज्ञान ले कर आने के लिए कहा। इस पर लक्ष्मण जी को आश्चर्य हुआ तो श्रीराम ने उन्हें समझाया कि यह रावण महाज्ञानी था अहंकार ने इसके ज्ञान को ढ़क लिया था। आज इसका अहंकार नष्ट हो गया है व इसके भीतर पुनः वह ज्ञान प्रकट हो गया है। अपने शुत्र के प्रति भी कितना ऊँचा भाव था उनका। किसी ने सत्य ही कहा है- "सद्भावना हम सबमें जगा दो। पावन बना दो हे देव सविता"
हे भारत उठ, गौतम बुद्ध को याद कर, महावीर स्वामी को याद कर, ईसा-मसीह को याद कर, उनके जैसा प्रेम और करुणा से भरा अन्तःकरण अपने भीतर विकसित कर। हे भारत, विराट वट वृक्ष बन जा, और भोगवाद की अग्नि में झुलसते पूरे विश्व को अपनी शीतल छाया प्रदान कर। पूरा विश्व आज हमारी ओर देख रहा है कि हम एक बार फिर से उनको प्रेम और शान्ति का पाठ पढ़ाएँ। संकीर्णता की दीवारें टूटे पूरा विश्व एक राष्ट्र बनें। देवात्मा हिमालय का "Global citizen and one nation" का सिद्धांत फलींभूत हो उठे।
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