Thursday, January 2, 2014

साधना समर (एक नयी पहल )

       भारत की पवित्र धरती पर एक ब्रह्मकमल खिला जिसने असंख्य ब्रह्मबीज धरती में फैलाएँ। भूमि को उर्वर किया, खाद पानी की व्यवस्था की, आसुरी शक्तियों से संघर्ष किया। फलस्वरूप 24,000 छोटे कमल उत्पन्न हुए। परम्परानुसार इन कमलों ने पाँच-पाँच नए कमल उत्पन्न किये। लगभग सवा लाख ब्रह्मकमल धरती पर लहराते नजर आए। अपनी संख्या बढ़ते देख ब्रह्मकमलों का उत्साह बढ़ा। हर कमल से 24 नए कमल उत्पन्न हुए व 24 लाख ब्रह्मकमल खिलते देख भारत माँ, धरती माँ प्रसन्न हो गयी। ये ब्रह्मकमल सम्पूर्ण विश्व में फैल गए और धीरे-धीरे एक करोड़ हो गए। यह स्वप्न देखा युगऋषि  श्रीराम जी ने, जिसको साकार करना हम सभी का पुनीत कर्तव्य है। आचार्य शंकर सनातन धर्म की अनमोल धरोहर रहे हैं। जिन्होंने सन्यासियों के विभिन्न सम्प्रदायों की स्थापना कर भारत में वैदिक संस्कृति की पुनस्र्थापना की। इसी प्रकार युग ऋषि श्रीराम जी ने 24,000 ब्रह्मबीज अंकुरित कर धरती पर सतयुगी वातावरण की घोषणा की। आचार्य श्रीराम जी शंकराचार्य जी के बचे कार्य को पूरा करने पूर्ण अवतार के रूप में धरती पर आए।
       विश्व समय-समय पर अनेक क्रान्तियों के दौर से गुजरा, कभी अर्थ-क्रान्ति, कभी राजनैतिक-क्रान्ति, कभी वैज्ञानिक-क्रान्ति परन्तु अब सन् 2011 से आध्यात्मिक-क्रान्ति का, साधना-क्रान्ति का प्रारम्भ हो चुका है। सन् 2011 से नए युग की शुरूवात की घोषणा सभी धर्मो में की गयी है। इसका कुछ लोगों ने गलत अर्थ लगाया कि दुनिया समाप्त हो जाएगी। नहीं दुनिया की तामसिक वृत्तियाँ व शक्तियाँ प्राणहीन हो जाएँगी, दुनिया से पाप पीड़ा, अधर्म, अन्याय का सफाया हो जाएगा। पूरे विश्व में एक करोड़ लोग साधना के पथ पर चलने के लिए उत्सुक होंगे, विवश होंगे। यद्यपि अभी वैसा कुछ प्रत्यक्ष नजर नहीं आ रहा है परन्तु अधिक गौर करने पर यह अनुभूति कोर्इ भी कर सकता है।अपने चारो और देखिए प्रत्येक क्षेत्र में चरित्रवान लोग आगे आ रहें हैं। महाकाल उच्च व्यक्तित्वों को ऊपर उठा रहा है उनकी कमियाँ दूर कर रहा है, परीक्षा ले रहा है। सम्पूर्ण विश्व का आध्यात्मिक कायाकल्प करने के लिए, सतयुगी वातावरण का निर्माण करने के लिए एक करोड़ विशिष्ट साधकों की आवश्यकता है।
       समय-समय पर विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक क्रान्तियाँ हुर्इ जैसे अर्थक्रान्ति, राजनैतिक-क्रान्ति, विज्ञान-क्रान्ति, परन्तु इनसे मानवता को कोर्इ विशेष लाभ नहीं पहुँच पाया। कारण यह था कि समस्याओं के स्वरूप बदल गए। पहले व्यक्ति बिना खाए भूख से तड़पता था बाद में अधिक खाकर, गलत खाकर, भोगों के कारण विविध रोगों से तड़पने लगा। यदि इनके साथ-साथ आध्यात्मिक क्रान्ति भी हो जाती तो परिणाम बहुत अच्छे निकलते इसीलिए इस बार आध्यात्मिक क्रान्ति, साधना क्रान्ति पर सबसे अधिक जोर लगाया जा रहा है। एक बार नेता जी सुभाष चन्द्र बोस श्री अरविन्द के पास गए व उनसें आजादी की लड़ार्इ में सक्रिय भूमिका निभाने का निवेदन किया। श्री अरविन्द बोले कि उन्हें भारत की आजादी तो स्पष्ट नजर आ रही है परन्तु आजादी के बाद की भारत की स्थिति की चिन्ता है। इसलिए वो आध्यात्मिक क्रान्ति लाने हेतु तप कर रहे हैं। क्योंकि आध्यात्मिक क्रान्ति के बिना भारत का विकास सम्भव नहीं है। आज भारत भ्रष्ट गौरों के हाथ में है कल भ्रष्ट कालों के हाथ में आ जाएगा। आज गौरे शोषण कर पैसा इंग्लैंड भेज रहे हैं कल काले शोषण कर पैसा स्विट्जरलैंड भेजने लगेंगे। उन्होंने नेता जी से कहा कि तुम अपनी सेना के सात्विक लोगों के साथ हमारी आध्यात्मिक क्रान्ति में सम्मिलित हो जाओ। नेताजी की बात समझ नहीं आयी वो बुरा सा मुँह बनाकर, श्री अरविन्द को सनकी समझ वहाँ से निकल गए। जब उन्हें समझ आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। देश आजाद होते ही बुरी तरह नैतिक पतन प्रारम्भ हो गया: अधिकतर अच्छे नेता शहीद हो गए थे व भ्रष्ट लोग महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा कर बैठे।
       जिस आध्यात्मिक क्रान्ति का शुभारम्भ अनेक (अवतारी चेतनाओं ) जैसे श्री रामकृष्ण परमहंस, श्री लाहिड़ी महाशय, श्री अरविन्द, श्री रमण द्वारा किया गया, आचार्य श्रीराम शर्मा जी द्वारा उसको गति दी गर्इ। अब 2011 से महावतार का समय प्रारम्भ हो चुका है। विभिन्न प्रकार की क्रान्तियाँ इस राष्ट्र में व सम्पूर्ण विश्व में चलेंगी जिसमें सबसे बड़ी क्रान्ति होगी आध्यात्मिक क्रान्ति। विश्व के जो एक करोड़ लोग अपनी साधना व आत्मिक उन्नति के लिए संकल्पित होंगे: उनको उचित मार्गदर्शन कैसे मिले यह एक विचारनीय प्रश्न है।
       यों तो संस्थाएँ बहुत हैं आश्रम बहुत हैं ऊपर से बहुत आकर्षक व हरा-भरा दिखता है परन्तु अधिकतर संस्थाएँ नाजुक मोड़ों से गुजर रही हैं। छोटे लोग अपनी रोजी-रोटी, हारी-बीमारी, बच्चों की परवरिश व भविष्य को लेकर चिन्तित हैं उन्हें यह भय सता रहा है कि उन्हें संस्था से बाहर निकाल दिया तो कहाँ जाएँगे व रोजी-रोटी कैसे चलाएँगे। बड़ी कुर्सी वाले लोग इसी उधेड़ बुन में लगे रहते हैं कि कोर्इ उनसे शक्तिशाली व्यक्ति आकर उनकी कुर्सी ना हथिया ले। इन्ही कुछ कारणों वश साधना विज्ञान पर जो खोज होनी चाहिए थी वह नही हो पा रही है।
       जैसे गाड़ीयाँ सड़क पर दौड़ती हैं तो दुर्घटना भी होती है इसी प्रकार जब व्यक्ति साधना करता है व उससे जो ऊर्जा उत्पन्न होती है उस कारण कुछ समस्याएँ भी पैदा होती है उदाहरण के लिए:-
1. कभी-कभी यह ऊर्जा प्रारब्ध वश, संस्कार वश अथवा परिस्थिति वश रीढ़  में एक भंवर बना देती है। व्यक्ति की कमर में दर्द, अकड़ाहट, बैचेनी प्रारम्भ हो जाती है। रीढ़ के तन्तुओं में सूजन आने लगती है व टेढ़ापन आना प्रारम्भ हो जाता है। कभी-कभी एक ओर के नीचे के आधे हिस्से अथवा ऊपर के हिस्से में सुन्न हो जाते है। इससे बचने के लिए व्यक्ति अनेक प्रकार के उपचार जैसे एक्युप्रेशर,योग-व्यायाम (Exercises) वगैरहा करता है परन्तु आंशिक आराम ही हो पाता है व्यक्ति इस पीड़ा से निजात पाने के लिए सर्जरी की ओर दौड़ता है परन्तु पुन: कुछ वर्षो में दोबारा उसी कष्ट से पीड़ित हो जाता है। कभी-कभी साधक की ऊर्जा उसके अन्दर पित्त कुपित कर देती है। लम्बे समय तक कुपित पित्त वात रोग के लक्ष्ण उत्पन्न करता है। अनाड़ी चिकित्सक उसका ेलेजमउंजपब जतमंजउमदज उसको गर्म दवाएँ अथवा तेज भस्में खिला देते हैं। जिससे उसको शरीर के भीतर तीव्र जलन महसूस होती है अथवा किसी भाग में कालापन आ सकता है।
2. कभी-कभी व्यक्ति को लगता है कि उसके सिर के ऊपरी हिस्से में किसी ने आग लगा दी हो जिससे उसकी स्म्रण-शक्ति व नेत्र दिन-प्रतिदिन कमजोर होते चले जाते है।
3. कभी-कभी व्यक्ति अनाहत चक्र के आस-पास एक अजीब सा दवाब महसूस करता है जिससे सर्वार्इकल एवं हृदय में दर्द होता देख बहुत घबरा जाता है।
4. कभी-कभी व्यक्ति अपने अन्दर विभिन्न प्रकार की वेग पूर्ण भाव धाराओं को उदय होते देखता है व उसे ऐसा लगता है कि उन पर उसका कोर्इ नियन्त्रण नही बन पर रहा है। ये स्थितियाँ साधक में anxiety अथवा depression भी ला देती हैं।
5. कभी-कभी कुछ व्यक्ति अपने ऊपर कुछ आसुरी आत्माओं का आवेश महसूस करते हैं वो उससे बचना चाहते हैं परन्तु अपने को असमर्थ पाते हैं आमतौर पर घर परिवार वाले अथवा आश्रम वाले ऐसे व्यक्तियों को पागल खानों में बिजली के झटके खाने के लिए छोड़ देते हैं।
6. कभी-कभी साधक एक प्रकार की मानसिक उत्तेजना से गुजरता है व कुछ समय पश्चात्  सहसा अपने आप को बीमारी से उठें आदमी की तरह लड़खड़ाता सा पाता है, सिर में एक अजीब गूंज सी होती है मानों यह संसार बेहद शोरगुल से भरा हो। सवेंदनशीलता अत्याधिक तीव्र हो जाती है जिसके कारण उसे सब तरफ से चोट ही लगती है। लोग नासमझ झगड़ालू व परिस्थितियाँ कठोर प्रतीत होती हैं।
7. कभी-कभी साधक को कुछ अजीबोगरीब रोग जैसे कठिन त्वचा रोगों का अचानक उभार दिखता है।
       यद्यपि कुछ लोगों का यह मानना है कि साधना में सफलता के लिए एक कष्टकर निर्जन भूमि को पार करना पड़ता है कुछ लोगों के अनुसार यह एक परीक्षाकाल होता है जो प्रारब्ध अथवा संकल्प के अनुसार कम व अधिक लम्बा हो सकता है। यदि दुर्घटना हो जाए तो सहारे की जरूरत पड़ती है ऐसे ही यदि साधना के समय सही-सहारा या मार्गदर्शन मिल जाए तो वह आसानी से उस परिस्थिति से उभर सकता है इसके लिए अनुभवी लोगों की एक टीम होनी चाहिएँ जो मुसीबत में फंसे साधक की सहायता कर सकें।
       लेखक स्वयं अपने जीवन काल में ऐसे अनेक खट्टे मीठे कड़वे अनुभवों से गुजरा है। बहुत सी कठिनार्इयों का समाधान निकालने के लिए अनेक प्रकार के प्रयोग भी किए हैं। जो लोग विज्ञान एवं तकनीकी में शोध करते है वो अपना एक नेटवर्क बना कर रखते है जिससे अपने अनुभवों को बाँट सकें और सभी लोग उसका लाभ उठा सकें जो उस विद्या पर शोध कर रहे हैं। क्या आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिए जो लोग संकल्पबद्ध  है (God Realization) जिनके जीवन उद्देश्य ईश्वर दर्शन ही बन चुका है उनको एक अंतर्राष्ट्रीय मंच नहीं बनाना चाहिए? जिनको भगवान् ने पैसा, प्रतिभा, योग्यता व इस दिशा में आगें बढ़ने की चाह दी है वो लोग एक बड़ा Plateform तैयार करे जिसका लक्ष्य हो।
“TOWARDS GOD REALIZATION-CHALLENGES AND SOLUTION"

       मेरी यह पुस्तक इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी व विभिन्न मिशनों के श्रेष्ठ साधकों को एक मंच पर लाएगी। एक Network में जोड़ेगी जिससे सब मिल जुल कर आगे बढे़ंगे यही मेरा विश्वास है।


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