Wednesday, January 1, 2014

Science and Mechanism of KUNDLINI SADHNA-4 कुण्डलिनी साधना का विधान एवं विज्ञान भाग -4

     युग ऋषि श्री राम आचार्य जी कुण्डलिनी साधना के विषय में अत्यन्त महत्वपूर्ण बात सांकेतिक भाषा में कहते है-"पहली ज्ञान भूमि, दूसरी शक्ति भूमि और तीसरी ब्रहम भूमि होती है। क्रमश: एक के बाद एक को पार करना पड़ता है।’’ प्रज्ञा को जागृत करने के लिए व्यक्ति आज्ञा चक्र सहस्त्रार चक्र पर ध्यान जप करे। ये चक्र व्यक्ति की intuition power develop करते है। यह ऊर्जा पीछे की ओर होती हुयी नीचे उतरती है तथा कुण्डलिनी पर आघात कर उसको उठाती है। ऊर्जा का एक cycle व्यक्ति के भीतर बन जाता है। जो चक्रो से होकर गुजरता है। सभी चक्रो के ऊर्जा मिलती है। स्थूल शरीर में ओजस, सूक्ष्म शरीर में तेजस कारण शरीर में वर्चस बढ़ने लगता है। कर्इ बार व्यक्ति भय के मारे ऊर्जा को मात्र ऊपर के चक्रो पर बाँधे रखता है कि कही नीचे आने पर ऊर्जा वासना में बह जाय। इससे ऊपर के चक्रो में गर्मी बढ़ने का खतरा पैदा हो जाता है। नीचे के चक्रो में कम ऊर्जा जाने से स्थूल शरीर कमजोर होता जाता है। शरीर का एक भाग धीरे-धीरे down होता जाता है व्यक्ति bed पर आने के लिए मजबूर हो जाता है।
     इसलिए भारत में कुण्डलिनी विज्ञान के विशेषज्ञो का होना आवश्यक हैं। अधिकतर लोग अपने अनुभवो को गुप्त रखना पसन्द करते है। इसका एक लाभ यह तो है कि साधना व्यक्ति बिना अवरोध के कर सकता है। अंह आने का भय कम रहता है परन्तु नुकसान यह है कि जो फंसता है वह दूसरो के अनुभवों से लाभ नहीं उठा पाता। कई बार इस मार्ग में ऐसे लोग अपना प्रभुत्व जमा लेते है जिनकी निज की साधना नहीं होती। इधर उधर से पढ़कर वो बाते बनाते रहते है। जिसने खुद गाड़ी चलाई हो वह दूसरे को गाड़ी चलाना कैसे सीखाएगा। यदि कोर्इ दुर्घटना होने वाली हो तो कैसे बचाएगा? इसलिए गुरु दीक्षा की बात कही जाती है। दीक्षा तीन प्रकार की होती है ज्ञान भूमि के लिए मन्त्र दीक्षा, शक्ति भूमि में प्रवेश के लिए प्राण दीक्षा अन्त में ब्रहम ज्ञान के लिए ब्रहम दीक्षा।


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