शरद ऋतु का
समय
था
।
चारों
और
बर्फ
ही
बर्फ
का
साम्राज्य
था।
जिस
और
भी
दृष्टि
जाती
केवल
सफेदी
की
एक
चादर
सी
बिछी हुई नजर
आती
थी
।
शरीर
को
कंपकपाने
वाली
ठण्डी
हवाएं
चल
रही
थी
।
ऐसे
समय
में
जंगल
के
मार्ग
पर
एक
सौदागर
चला
जा
रहा
था।
सर्दी
के
मारे
उसका
बुरा
हाल
था
।
अचानक
उसने
देखा
कि
मार्ग
में
एक
अति
सुन्दर, बलिष्ठ
पुरुष निर्वस्त्र एवं
मूर्छित
अवस्था
में
पड़ा
हुआ
है
।
इस
अवस्था
में
पड़े
हुए
मनुषय को
देख
सौदागर
के
मन
में
विचार
उठने
लगा
कि
पड़ा
है
तो
पड़ा
रहने
दो, मुझे क्या? परन्तु दूसरे
ही
क्षण
मन
से
आवाज आई कि
इस
अवस्था
में
यदि
वह
पड़ा
रहा
तो
अवश्य
ही
मर
जाएगा
।
आखिर
सौदागर
भी
तो
मानव
ही
था
जिसके
तन
में
एक
संदेवनशील
मन
भी
था
।
उसने
अपने
कुछ
दासों
की
सहायता
से
उसे
उठाकर
गाड़ी
में
लिटाया
और
अपने
घर
ले
आये
।
कुछ
समय
की
सेवा-सुश्रूषा
के
उपरान्त
उसे
होश
आया
और
अंतत: वह स्वस्थ
हो
गया
।
सौदागर ने उससे
बातचीत
करनी
चाही
परन्तु
उसने
अपनी
भाव-भंगिमाओं से
जाहिर
कर
दिया
कि
वह
गूंगा
है, बोल नहीं
सकता।
उस
सौदागर
का
व्यापार
जूते
बनाकर
उन्हें
बेचना
था
।
उसने
गूंगे
को
भी
जूते
बनाना
सिखा
दिया
और
कुछ
ही
समय
में
वह
इतने
सुन्दर
और
बढ़िया
जूते
बनाने
लगा
कि
उसकी
ख्याति
दूर-दूर तक
फैल गई , परन्तु वह
आदमी
किसी
से
कुछ
नहीं
कहता
और
अपने
कार्य
में
लगा
रहता
था।
एक दिन सौदागर
की
दुकान
के
सामने
एक
बग्घी
आकर
रूकी
और
उसमें
से
वहाँ
के
राजा
ने
नीचे
उतरकर
दुकान
में
प्रवेश
किया
।
उसने
अपने
दास
से
सौदागर
को
एक
अति
सुन्दर
और
मूल्यवान
खाल
अपने
नाम
के
जूते
बनाने
को
दी
और
कहा, ßजूते ठीक
और
सही
नाप
के
बनने
चाहिए
।
यदि
खाल
खराब
हो गया तो
तुम
सब
लोगों
को
परिवार
सहित
कोल्हू
में
पिलवा
दूंगा
।
इस
बात
का
ध्यान
रखें
।Þ
राजा
के
ऐसे
वचन
सुनकर
वह
गूंगा
भी
मुस्कराया
जो
कभी
अपने
मुख
पर कोई भाव
लाता
ही
नहीं
था
।
सौदागर
ने
उसकी
मुस्कराहट
देख
ली, लेकिन पूछा
कुछ
नहीं
।
उस गूंगे ने
उस
खाल
के
राजा
के
जूतों
के
स्थान
पर
एक
बच्ची
के
जूते
बना
दिये, जिन्हें देखकर
सौदागर
तो
कांपने
लगा
और
क्रोध
में
गूंगे
को
अनाप-शनाप बकने
लगा, मगर गूंगा
शांत
भाव
से
अपना
कार्य
करता
रहा
।
कुछ दिनों के
बाद
वही
बग्घी
पुन: दुकान के
सामने
आकर
रूकी
और
उसमें
से
एक
दास
के
साथ
एक
छोटी-सी बच्ची
राजसी
वस्त्रों
में
उतरी
जो
एक
पांव
से
लंगड़ा
रही
थी
।
दास
ने
सौदागर
को
कहा
कि
राजा
की
कुछ
दिन
पूर्व
मृत्यु
हो गई है
और
उस
खाल
से
इस
बच्ची
के
जूते
बना
दें
।
सौदागर
ऐसा
सुनकर
बहुत
हैरान
हुआ
क्योंकि
गूंगे
ने
तो
पहले
ही
जूते
बनाये
हुए
थे, जिन्हें लड़की
को
देते
हुए
वह
फिर
मुस्कराया, जिसे सौदागर
ने
भी
देख
लिया
।
बच्ची
के
दुकान
से
जाते
ही
सौदागर
गूंगे
के
सामने
हाथ
जोड़कर
खड़ा
हो
गया
और
बोला, ßप्रभु आप
कौन
है, निश्चित ही
आप कोई महान
आत्मा
अथवा
देव
हैं
।Þ
गूंगा
कुछ
समय
तक
चुप
रहा
और
फिर
कहने
लगा
कि
ßहाँ
मैं
एक
देवदूत
हूँ
और
प्रभु
की
आज्ञा
का
पालन
कर
रहा
हूँ
और
यह
मेरा
कार्य
है
।
प्रभु ने एक
दिन
एक
औरत
के
प्राण
खींचने
हेतु
आज्ञा
दी
।
वह
औरत
एक
भयानक
एवं
बियावान
जंगल
में
एक
झोंपड़ी
में
रहती
थी, जहाँ मीलों
तक
मनुष्य का
नामोनिशान
भी
नहीं
था
।
झोंपड़ी
में
मैंने
देखा
कि
एक
नवजात
बच्ची
अपनी
माँ
यानी
उस
औरत
की
छाती
पर
लेटी
स्तनपान
कर
रही
है
।
पता
नहीं
कहाँ
से
मेरे
मन
में
दया
का
भाव
आया
कि
यदि
मैंने
इसकी
माँ
के
प्राण
हर
लिए
तो
यह
बच्ची
कैसे
जीवित
रहेगी
।
ऐसा
विचार
आते
ही
मैं
प्राण
लिए
बिना
ही
देवलोक
लौट
गया
और
प्रभु
को
पूरा
वृतान्त
बता
दिया
।Þ
प्रभु मेरे इस
कार्य
से
क्रोधित
हुए
और
मुझसे
कहा, ßतुम्हारा काम
केवल
मेरी
आज्ञा
का
पालन
करना
मात्र
है
।
पालनहार
तो
मैं
हूँ
तुम
नहीं
।
मैं
जानता
हूँ
कि
मुझे
क्या
और
कैसे
पालन
करना
है
।Þ
प्रभु की आज्ञा
से
मैं
पुन: वहीं पहुँचा
और
उस
स्त्री
के
प्राण
हर
लिए
और
चल
पड़ा
।
दूध
पीती
बच्ची
अपनी
माँ
की
करवट
के
नीचे
दब गई ।
मैंने
आज्ञा
का
पालन
तो
कर
दिया
परन्तु
प्रभु
ने
मुझे
क्षमा
नहीं
किया
तथा
दण्ड
स्वरूप
पृथ्वी
पर
फेंक
दिया, जहाँ मैं
आपको
उस
अवस्था
में
मिला
।
पहली बार राजा
जब
दुकान
पर
आया
तो
वह
जूता
ठीक
न
बनने
की
अवस्था
में
परिवार
सहित
कोल्हू
में
पेलने
की
धमकी
दे
रहा
था, जबकि उसे
यह
पता
नहीं
था
कि
वह
अगले
दिन
ही
मृत्यु
को
प्राप्त
होने
वाला
है
।
ऐसा
सोचकर
मैं
मुस्कराया
था
।
दूसरी
बार
जब
बग्घी
से
छोटी
बच्ची
उतरी, तब मैंने
देखा
कि
यह
वही
बच्ची
है
जिसकी
माँ
के
प्राण
मैं
हर
लाया
था
और
सोच
रहा
था
कि
यह
किस
प्रकार
जीवित
रहेगी
।
प्रभु
की
लीला
देखिए
कि
वही
लड़की
एक
राजघराने
में
पल
रही
है
।
धन्य
है
प्रभु
तेरी
लीला
।Þ
अपनी
कथा
सुना
कर
वह
देवदूत
सौदागर
के
सम्मुख
हाथ
जोड़कर
खड़ा
हो
गया
और
कहा, ßमालिक मैं
आज
शाप
मुक्त
भी
हो
गया
हूँ, अब मुझे
अपने
लोक
जाने
की
अनुमति
भी
दें
।
वास्तव में ही वह इश्वर सर्वशक्तिमान, समस्त संसार का पालनहार है । वही शिला के भीतर भी कीट का पालन करता है । वही संसारका नियन्ता, रक्षक और चलाने वाला है । प्रभु आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
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