Saturday, July 21, 2012

साधना के विघ्न



निद्रा, तंद्रा, आलस्य, मनोराज, लय और रसास्वाद-ये : साधना के बड़े विघ्न है। ये विघ्न आयें तो हर मनुष्य भगवान के दर्शन कर ले।
जब हम माला का जाप करने बैठते हैं तब मन कहीं से कहीं भागता है। फिर मन नही लग रहा...’ ऐसा कहकर माला रख देते हैं। घर में भजन करने बैठते हैं तो मंदिर याद आता है और मंदिर में जाते हैं तो घर याद आता है। काम करते हैं तो माला याद आती है और माला करने बैठते हैं तब कोई कोई काम याद आता है यह एक व्यक्ति का प्रश्न नहीं, सबका प्रश्न है और यही मनोराज है।
दो दोस्त थे आपस में उनका बड़ा स्नेह था। एक दिन वे खेत में घूमने के लिए निकले और विचारने लगे कि: हम एक बड़ी जमीन लें और भागीदारी में खेती करें...’
एक ने कहा: ‘‘मैं टै्रक्टर लाऊंगा। तू कुऑं खुदवाना।’’ दूसरा: ‘‘ठीक है। टै्रक्टर खराब हो जाये तो मैं बैल रखूंगा।’’
पहला: ‘‘अगर तेरे बैल मेरे हिस्से के खेत में घुस जायेंगे तो मैं उन्हें खदेड़ दूंगा।’’
दूसरा: ‘‘क्यों? मेरे बैलों को क्यों खदेड़गा?’’
पहला: ‘‘क्योंकि मेरी खेती को नुकसान पहुंचायेंगे।’’
इस प्रकार दोनों में कहा-सुनी हो गई और बात बढते-बढते मारपीट तक पहुँच गई दोनों ने एक-दूसरे का सिर फोड़ दिया। मुकदमा हो गया।
दोनो न्यायालय में गये। न्यायाधीश ने पूछा: ‘‘आपकी लड़ाई कैसे हुई?’’
दोनों बोले: ‘‘जमीन के संबंध में बात हुई थी।’’
‘‘कितनी जमीन और कहां ली थी?’’
‘‘अभी तक ली नहीं है।’’
‘‘फिर क्या हुआ?’’
एक: ‘‘मेरे हिस्से में टै्रक्टर आता था, इसके हिस्से में कुऑं और बैल।’’
न्यायधीश: ‘‘बैल कहां हैं?’’
दूसरा: ‘‘अभी तक खरीदे नहीं हैं।’’
जमीन ली नही है, कुऑं खुदवाया नहीं है, टै्रक्टर और बैल खरीदे नहीं हैं फिर भी मन के द्वारा सारा बखेड़ा खड़ा कर दिया है और लड़ रहे हैं
इसका नाम मनोराज है माला करते-करते भी मनोराज करता रहता है यह साधना का बड़ा विघ्न है
कभी-कभी प्रकृति में मन का लय हो जाता है आत्मा का दर्शन नही होता किन्तु मन का लय हो जाता है और लगता है कि ध्यान किया। ध्यान में से उठते हैं तो जम्हाई आने लगती है। यह ध्यान नही, लय हुआ। वास्तविक ध्यान में से उठते हैं तो ताजगी, प्रसन्नता और दिव्य विचार आते हैं किन्तु लय में ऐसा नही होता है।
कभी-कभी साधक को रसास्वाद परेशान करता है। साधना करते-करते थोड़ा-बहुत आनंद आने लगता है तो मन उसी आनंद का आस्वाद लेने लग जाता है और अपना मुख्य लक्ष्य भूल जाता है।
कभी साधना करने बैठते हैं तो नींद आने लगती है और जब सोने की कोशिश करते हैं तो नींद नही आती। यह भी साधना का एक विघ्न है।
तंद्रा भी एक विघ्न है। नींद तो नही आती किन्तु नींद जैसा लगता है। कितनी मालाएं घूमीं इसका पता नही चलता। यह सूक्ष्म निद्रा अर्थात तंद्रा है
साधना करने में आलस्य आता है। अभी नही, बाद में करेंगे...’ यह भी एक विघ्न है।
इन विघ्नों को जीतने के उपाय भी हैं
मनोराज और लय का जीतना हो तो दीर्घ स्वर से ...’ का जप करना चाहिए।
स्थूल निद्रा को जीतने के लिये अल्पाहार और आसन करने चाहिए। सूक्ष्म निद्रा यानि तंद्रा को जीतने के लिये प्राणायाम करना चाहिए
आलस्य को जीतना हो तो निष्काम कर्म करने चाहिए सेवा से आलस्य दूर होगा एवं धीरे-धीरे साधना में भी मन लगने लगेगा। प्राणायाम और आसन भी आलस्य को दूर करने में सहायक है
रसास्वाद से भी सावधान रहो एवं अपना विवेक सतत बनाये रखो सदैव सजग और सावधान रहो साधना के विघ्नों को पहचानकर उचित उपाय से उनका निराकरण करो और अपने लक्ष्य पथ पर निरन्तर आगे बढते रहो।
जो मनुष्य इसी जन्म में  मुक्ति प्राप्त करना चाहता है उसे एक ही जन्म में हजारों वर्षो का काम कर लेना होगा उसे इस युग की रफ्तार से बहुत आगे निकलना होगा। जैसे स्वप्न में मान-अपमान, मेरा-तेरा,अच्छा-बुरा दिखता है और जागने के बाद उसकी सत्यता नही रहती वैसे ही इस जाग्रत जगत में भी अनुभव करना होगा।


अपने शिष्यों को वे शास्त्रों की अनुमानमूलक चर्चा में उलझने का परामर्श देते थे। वे कहते केवल वही बुद्धिमान है, जो प्राचीन दर्शनों का केवल पठन-पाठन करने के बजाय उनकी बुद्धिमान करने का प्रयास करता है। ध्यान में ही ऊपरी सब समस्याओं का समाधान ढूढों।
व्यर्थ अनुमान लगाते रहते थे बदले इश्वर से प्रत्यक्ष सम्पर्क करो। ‘‘शास्त्रों के किताबी ज्ञान से उत्पन्न गतांध धाराणाओं के कचरे को अपने मन से निकाल फेंको और उसके स्थान पर अनुभूति के आरोग्य मीठे जल को अंदर आने दो। अंतरात्मा के सक्रिय मार्गदर्शन से मन की तार जोड लो।
उसके माध्यम से बोलने वाली ईश्वर वाणी के पास जीवन की प्रत्येक समस्या का उत्तर है। अपने आपको संकट में डालनें के मामले में मनुष्य की प्रतिमा का कोई अंत प्रतीत नही होता, परंतु उस परम दयालुश्वर के पास सहायता की युक्तियों की भी कोई कमी नही हैं।’’
भिक्षा नही पात्रता
        अध्यात्म विज्ञान के द्वारा व्यक्ति अपने आपको सुपात्र बनाता है ताकि दैव शक्तियों के अनुदान वरदान प्राप्त कर सकें। परंतु आज व्यक्ति स्वयं को मनोकामनाओं का दास बनाता है इनकी पूर्ति के लिये दर-दर जाकर भीख मांगता है। माता-पिता सुपात्र बच्चों को अपनी दौलत प्रसन्नता पूर्वक सौंप देते हैं। परंतु कुपात्र को नही देते क्योंकि वो मेहनत की कमाई को व्यसनों में उडा देगा। इसी प्रकार देव शक्तियां भी अनुदान वरदान देने के लिए सुपात्र खोजती हैं।

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