Friday, July 20, 2012

धर्म के नाम पर मजाक एवं खानापूर्ति-Part-2


यदि वास्तव में हम भगवान से प्रेम करते हैं उनकी कृपा चाहते हैं तो हमें श्रेष्ठ, दिव्य, महान, पवित्र, सरल, शुद्ध जीवन की ओर अपने चरण बढ़ाने का प्रयास करना होगा प्रयास में सफलता मिलती है या असफलता यह अलग बात हैं अथवा सफलता मिलने में कितना समय लगता है यह विचारणीय विषय नहीं है विचारणीय बिन्दु तो यह है कि इस दिशा में प्रयास कितनी ईमानदारी के साथ किया गया हम अपनी आत्मा के साथ, अपने परमात्मा के साथ न्याय करते है अथवा अपनी आत्मा परमात्मा दोनों को धोखा देना चाहते हैं यदि हम भगवान से प्यार करते हैं, भगवान को मानते हैं तो हमें श्रेष्ठता से महानता से, दिव्यता से, आदर्शों सिद्धान्तों से प्रेम करना होगा अपना रूझान उस दिशा में मोड़ना होगा अन्यथा कह दीजिए स्वीकार कर लीजिए कि हम नास्तिक हैं धोखेबाजी से अधिक अच्छा नास्तिक बन जाता है बाहर जल का लोटा, माला और भीतर नीचता के प्रति रूझान यह क्या मजाक है? इस ड्रामेबाजी, पाखण्ड ने भारत की कुण्डलिनी शक्ति का मार्ग अवरूद्ध कर रखा था परन्तु अब से अधिक समय नहीं चलने वाला हमें या तो पाण्डवों की ओर आना होगा या दुर्योंधन की ओर बीच में रहने की अब कोई गुंजाइश नहीं रह जाएगी भारत में आज दोगुला जीवन जीने वालों की बाढ़ आयी हुयी है बाते ऊपर से बढ़िया-बढ़िया करते है परन्तु साथ दुष्टों का देते हैं जो इस राष्ट्र को सत्य, न्याय, प्रेम, मानवता, र्इमान की राह पर चलाना चाहते हैं वो समस्त मत भेद वर्ग भेद भुलाकर, समस्त सकींर्णताएँ विसर्जित कर युग परिवर्तन की मशाल थामने के लिए आगे आए पूजा तो मन्दिर मस्जिद, गुरुद्वारे जाकर राम, रहीम, गुरु गोविन्द सिंह जी करते हैं जीवन अय्याशी का जीते हैं ऐसी नाटक बाजी क्यों? जनता के सामने अपने आपको सफेद पोश सिद्ध करने के लिए यह पाखण्ड अधिक दिन नहीं चलने वाला है दूध का दूध पानी का पानी करने के लिए हिमालय पर बैठी महाअवतार की सत्ता अपना शक्ति प्रयोग कर रही है
सारी परिभाषाएँ आज के परिपेक्ष में नवीन परिधान पहनने जा रही हैं लोग कहते हैं कि श्वर साकार है, श्वर निराकर है हम कहते हैं यह धारणा बेकार है वरण श्वर का स्वरूप है श्वर श्रेष्ठ आदर्शों श्रेष्ठ सिद्धान्तों का एक समुच्चय हैं जो श्वर को मानते है, पूजते हैं उन्हें आदर्शों सिद्धान्तों से प्रेम करना ही होगा।
श्वर भक्ति तीन चरणों में सम्पन्न होती है अथवा श्वर का भजन पूजन तीन चरणों में पूरा होता है  
1-  श्वर के स्वरूप का बखान, गुणों का बखान
2-  श्वर के उस स्वरूप को, उन गुणों को अपने अन्दर धारण करना।
3-  श्वर से सन्मार्ग दिखाने की अंकाक्षा, श्वरीय इच्छा को अपनाने का प्रयास, श्वर के प्रति अपने जीवन का समर्पण
गायत्री महामन्त्र के तीन चरण है -
1-  ओम भूर्भुव: स्व: यह श्वर के स्वरूप् का बखान है - भगवान शक्ति स्वरूप, प्राण स्वरूप है वह दुखानाराक है समस्त सुखों को देने वाला है
2-  तत्सवितुवरेण्यम्, भर्गो देवस्य धीमहि
उसके सूर्य के समान तेजस्वी, वरणीय, पाप नाशक, देवतुल्य स्वरूप को हम अपने अन्दर धारण करते हैं
3-  धियो योन: प्रचोदयात् वह हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ बनाएँ हमारे अन्दर, अन्त:करण में उच्च भावनाओं का विकास करें हमें सन्मार्ग दिखाए अर्थात् हमारे जीवन को दिशा प्रदान करें
ये तीनों चरण एक दूसरे के पूरक है यदि खाना पूर्ति करनी हैं तो कैसे भी करते रहित मन गढन्त उल्आ सीधा कुछ भी अपनाइए लेकिन यदि सच्चे मन से र्इश्वर भक्ति करनी है तो इन तीन चरणों पर चिन्तन मनन करिए उसी प्रकार के भाव अपने अन्दर विकसित करिए
समाज में तीन तरह के लोग हैं
1. नास्तिक 2. पाखण्डी 3. आसस्तिक
1-  नास्तिक वह है जो बाहर भीतर के उपरोक्त विज्ञान पर चलने से स्पष्ट इन्कार करता है उसको नहीं मानता
2-  पाखण्डी वह है जो बाहर से उपरोक्त विज्ञान पर चलने का दिखावा करता है पर भीतर से उसको नहीं मानता
3-  आस्तिक वह है जो उपरोक्त विज्ञान के प्रति गम्भीर है उसके सच्चे हृदय से स्वीकार करता है

यदि को व्यक्ति आग के पास बैठता है कहता है कि मुझे गर्मी नहीं लगी तो वह पागल कहा जाएगा इसी प्रकार जो व्यक्ति आस्तिक है अपने समय धन को एक अंश राष्ट्र की आवश्कता, समाज की आवश्यकता को पूरा करने में नहीं लगाता वह पाखण्डी कहा जाएगा नरेन्द्र जब मां काली की चेतना से अनुप्राप्ति होता है तो वह अपनी माँ बहनों की भूख भूल जाता है उसे युग की आवश्यकता के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने की प्रेरणा प्राप्त होती है यदि भगवान ने आपको बुद्धि दी है भगवान के प्रति श्रद्धा विश्वास दिया है तो आपके बड़ी शीघ्र युग की आवश्कता समझ में जानी चाहिए यह आवश्यकता है श्रेष्ठ व्यक्तियों का एक सशक्त विशाल संगठन तैयार हो बाकी अन्य मंचों (platforms) पर आप अपने अहम के पुष्ट करिए अपनी इच्छाओं की पूर्ति कीजिए

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