प्रभु-चरणों
में प्रीति की बात ही न्यारी है। व्यक्तित्व में कुछ भी अपने लिए नही रहता। सत्ता के
किसी अंग पर अपना अधिकार नहीं। हम प्रभु के ऐसे हो जाते हैं, मानों
उन्हें बिक गये। मानों किसी ने हमें उनकी भेंट चढा दिया। हम पूर्ण समर्पित हो जाते
हैं। सिवा प्रभु के और उनके प्रेम के, उनकी भक्ति और चिंतन के, उनके
स्मरण के और कोई शब्द, कोई
ध्वनि, कोई
हलचल, कुछ
भी, न
सुनाई देता, न
दिखाई। रोम-रोम
उन्हें ही रटता हैं उन्हीं की धुन में डूबा रहता है, प्रेम में विकल रहता है, उनके
दर्शन की अभिलाषा, उनके
आगमन की प्रतिक्षा, उनके
प्रति प्रेम प्रकट करने की कल्पना- बस यही जीवन रह जाता है।
उनके दर्शन और मिलन के चाव को छोड़ कर, इस आशा को तज कर, वहां
दूसरा ऐसा कुछ नही रहता जो प्राणों को देह के साथ अटकाये रखने में समर्थ हो। इसी एक
मिलन की आशा पर जीवन चलता है, प्राण टिके रहते हैं। धन्य है यह प्रेम, धन्य
हैं ये प्रेमी। दोनों का नाता, दोनों की स्थिति अद्भुत हैं । दोनों एक दूसरे
में निवास करते हैं। प्रभु प्रेम वर्णनातीत है। वहां देह और गेह का भान केवल उतना मात्र
रहता है, जितना
जीवन रखने के लिए अनिवार्य होता है। बाकी सब प्रेम, प्रेम।
प्रभु-शरणागति
हे
मानव! प्रभु
के स्वर्णिम
पुष्प! सच्चे
सुख को, आत्मा
के आनंद
को अपने
अंदर हृदय
की गहराई
में खोज! वहां
प्राप्त कर।
अनंतता में
प्रवेश का
द्वार तेरा
हृदय है।
तत्पश्चात् दूसरों
में, जगत
में अनुभव
करना संभव
होगा। बाह्य
सत्ता के
पीछे हट
कर भीतर
पैठ। मन
के उस
पार जा
। इंद्रियों
से ऊपर
उठ प्रकृति
से अपने
आपको पृथक
कर। शांत-चित्त, एकाग्र
मन होकर
बैठ। पूर्ण
निष्क्रिय, पूर्ण
नीरव हो
जा। कल्पना
और संकल्प
महान शक्तियां
हैं। इनका
प्रयोग कर।
तुझे पथ
मिलेगा, प्रकाश
दिखायी देगा।
धैयपूर्वक नियमित
रूप से
अभ्यास कर
। चित्त
की पूर्ण
नीरवता से
पहले प्रार्थना
कर। प्रभु
चरणों में
सिर झुका, उन्हें
प्रेम डोरी
से बांध, अनन्य
भक्त बन, विनयी
हो, शिशु
की भांति
हृदय खोल! सब
कुछ कह
दे ।
हृदय-पुस्तिका
का हर
पृष्ठ उनके
सम्मुख उघाड़।
अपनी असमर्थता, अपनी
अक्षमता उनसे
कह, कुछ
भी उनसे
मत छिपा।
तेरे गुण, तेरा
स्वभाव, तेरा
चरित्र वे
जानते हैं।
तेरे से
भी कहीं
अच्छी तरह
से जानते
हैं। प्रभु
तेरे जीवन
स्वामी हैं।
उनके सम्मुख
कभी झिझकना
नही, हिचकिचाना
नही। सीधे
सरल भाव
में शिशुवत
सब परम
पिता के
पावन चरणों
में अर्पित
कर दे।
अच्छा या
बुरा, जैसा
भी तु
है उन्हें
पूर्ण रूपेण
निवेदित हो।
तेरे ऊपर
कृपा बरसेगी।
सौभाग्य उदय
होगा, भविष्य उज्ज्वल होगा।
तू उनकी
कृपा का
पात्र बनेगा।
वे तेरा
संपूर्ण दायित्व
अपने ऊपर
ले लेंगे।
शरण प्रदान
करेंगे। तेरा
जन्म और
जीवन प्रभु
के लिए
होने से
तू अपने
आपको, प्रभु
के प्रियजनों
में पायेगा।
प्रभु तेरे
होंगे, तू
प्रभु का
होगा, उनके
यंत्र के
रूप में
जगत में
कार्य करेगा
। तेरी
आत्मा तुझे
आशीष प्रदान
करेगी। तेरे
जीवन में
उसका आशीर्वाद
फलेगां जीवन
नैया की
पतवार प्रभु
स्वयं संभालेंगे, दिशा
भी वे
ही चुनेंगे, गंतव्य
दिखाएंगे, मार्ग
प्रशस्त करेंगे।
तेरे जीवन
रथ का
सारथ्य प्रभु
स्वयं करेंगे
और यह
उनके लिए
अति प्रसन्नता
का विषय
हुआ करता
है। जिसे
तेरे जैसे
विरले, सरल-सीधे, समर्पित
शिशु ही
प्राप्त करते
हैं।
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