Thursday, July 19, 2012

युवावर्ग व उज्ज्वल भविष्य की ओर

आज का युगधर्म हैं कि हम युवाओ के मन में आत्मश्रद्धा, के अदम्य बीज बो दें। स्वयं के प्रति श्रद्धा, अपनी क्षमताओं पर विश्वास, अपनी विशिष्टता का विश्लेषण, अपने पूर्वजो का स्मरण, अपनी संस्कृति से अगाध प्रेम ओर मानवीय मूल्यो के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता, हर युवामन के लिये यह न्यूनतम अभीष्ट है। इससे हर जीवन में सहज सक्रान्ति स्थापित हो जायेगी। 

  अपना देश भारत इस समय बड़ी ही दयनीय स्थिति से गुजर रहा है  कोई  समय था जब यह जगत-गुरु, विश्व-गुरु के रूप में जाना जाता था यहाँ के नागरिकों का चिन्तन, चरित्र इतना पवित्र होता था कि सम्पूर्ण विश्व यहाँ के 33 करोड़ नागरिकों को देवी देवताओं की तरह सम्मान करते थे परन्तु वही सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान देने वाला भारत आज ऊपर से नीचे तक स्वार्थ भ्रष्टाचार में लिप्त हो गया है। ईर्ष्या -द्वेष एक दूसरे की टाँग खिचाई , अकर्मण्यता ने इस राष्ट को खोखला कर दिया है सर्वे भवन्तु सुखिन:.... वसुधैव कुटुम्बकम का उद्घोष करने वाला भारत आज सर्वत्र धोखाधड़ी संकीण मानसिकता पाखण्ड के दलदल में फंस गया है यही कारण है कि जहाँ दूध-दही की नदियां बहती थी वहाँ आज बहुत से बच्चे दूध के अभाव में कुपोषण के शिकार हो रहे हैं विदेशी बैंकों का कर्ज बढ़ता जा रहा है हमारा स्वाभिमान इतना गिर चुका है कि हम कर्म को सहायता समझकर प्रसन्न होते हैं
क्या यह राष्ट्र इस विषम स्थिति से उबर सकेगा? यदि इस प्रश्न पर विचार करें इस राष्ट्र का प्राचीन इतिहास उठाकर देखें तो इस घोर अन्धकार को चीरती हुई प्रकाश की किरणें नजर आती है मन में आशा शक्ति का संचार होने लगता है यदि हम आज (सन् 2005) से 100-150 वर्ष पूर्व पर दृष्टि डालें तो उस समय यह राष्ट्र अंग्रेजों-मुगलों के अत्याचार सहते-सहते मृत प्राय: हो चुका था इसकी अपनी संस्कृति नष्ट हो चुकी थी जाति पाति, अन्धविश्वास, सामाजिक कुरीतियाँ, साहूकारों द्वारा लगान वसूली जैसी घोर समस्याओं से यह राष्ट्र अत्यन्त दुर्बल हो चुका था ऊपर के अंग्रेज इसका खून पीने के लिए इसकी छाती पर चढ़े बैठे थे 1857 की क्रान्ति फेल हो चुकी थी अंग्रेजों के चुंगल से छूट पाना उस समय असंभव जान पड़ता था
परन्तु देखते-देखते इस राष्ट्र को ऊपर उठाने के लिए हजारो महापुरुषो का अवतरण हो गया स्वामी विवेकानन्द का सिंहनाद गर्जा। महर्षि अरविन्द महर्षि रमण ने मौन साधना घोर तप कर 24 वर्षो (1918-1942) तक इस राष्ट्र में प्राण शक्ति का संचार किया उस प्राण शक्ति से मृत भारत पुनर्जीवित हो उठा सामान्य दुर्बल से दिखने वाले मोहन दास कर्मचन्द गाँधी सशक्त रूप में उभरकर महात्मा गाँधी बन गए विदेशी रंगो रंगशालाओं में रस लेने वाले भगत सिंह जैसे युवक भारत माँ के प्रेम में इतने दीवाने हो गए कि साहस, त्याग, बलिदान की पराकष्ठा के शिखर पर चढ़ गए महिलाओं ने सुभाष चन्द्र बोस के चरणों में आजाद हिन्द फौज के गठन के लिए अपने जेवर समर्पित कर दिए इतने क्रांतिकारी, सत्याग्रही, समाज सुधारक, लेखक, लौहपुरुष उत्पन्न हुए कि भारत सर्वत्र देशभक्ति, त्याग, बलिदान के भावों से ओतप्रोत हो गया जब हम इतिहास के इन पन्नों पर चिन्तन करते हैं तो हृदय में रोमांच हो उठता है इतनी भूखमरी, अकाल, महामारियाँ, गरीबी होने पर भी भारतवासियों ने अपने त्याग बलिदान के द्वारा भारत को उस क्मंकसवबा से बाहर निकाल दिया भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया    
संभवत: उस समय की परिस्थितियाँ अधिक जटिल थी आज उससे अच्छी स्थिति है वह खून भी भारत के युवाओं की नसों में दौड़ रहा है परन्तु आज हम अपने उस स्वाभिमान, अपनी उस क्षमता को भूल बैठे हैं जिसके बल पर हम विश्वामित्र बन सकते हैं भारत को सोने की चिड़िया नहीं सोने का शेर बना सकते हैं ऐसी स्थिति में रामायणकालीन वह परिदृश्य अनायास ही याद जाता है जबकि भगवती सीता की खोज में गया सम्पूर्ण वान सम्पूर्ण समूह निराश होकर समुद्र तट पर बैठा विलाप कर रहा है इस विशाल समुद्र को कौन लाँघ पाएगा, इस चिंता में डूबा हुआ है तभी जामवंत हनुमान जी को उनका बल याद दिलाते हैं अपनी शक्ति क्षमता पहचान कर पूर्ण आत्म विश्वास के साथ हनुमान जी एक विशाल शरीर धारण करते हैं उनके शरीर से स्वर्णिम आभा निकलने लगती है, वो हुँकार भरकर समुद्र लाँघने के लिए तैयार हो जाते हैं हनुमान जी का यह भव्य रूप देखकर विषाद से भरा वह वानर समूह प्रसन्न हो उठता है एवम् अपने को सशक्त समर्थ अनुभव करने लगता है
काश आज भी कोई जाम्बवन्त आकर भारत के इन युवाओं (रीछ वानरों) को उनकी युग निर्माण की विश्व कल्याण की क्षमता से परिचित करा दें युवाओं में से कोई हनुमान बनकर भारत माँ की विषाद् की स्थिति को दूर करने का साहस कर सकें
क्या यह केवल एक लख या कोरी कल्पना भर बनकर रह जाएगा अथवा इस विचारधारा का क्रियान्वन भी हो पाएगा? अक्सर हृदय में उच्च भाव-अच्छे भाव हर युवा के मन में किसी किसी समय अवश्य उठते हैं परन्तु उनको मूर्त रूप नहीं मिल पाता जीवन यों ही गुजरता चला जाता है यदि युवाओं में से कुछ युवा आत्मबल साहस के धनी निकल पाएँ तो सारा कारवाँ उनके पीछे चल पड़ता है क्या एन.आई .टी. कुरुक्षेत्र से इस प्रकार की एक शुरूवाद की जा सकती है? यह प्रसन्नता की बात है कि एन.आई.टी. कुरुक्षेत्र के कुछ छात्रों ने इस विषय में सोचने महत्वपूर्ण कार्य करने का अपना मन बनाया है राष्ट्र निमार्ण-विश्व कल्याण के लिए अपनी प्रतिभा को समर्पित करने के लिए अपने प्रयास करने प्रारम्भ किए हैं इस दिशा में एन.आई.टी. के सिविल विभाग के एक छात्र सिद्धार्थ ने एक बहुत सुन्दर पुस्तक Global Citizens, One Nation लिखी हैं जिसकी राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सराहना की गयी है आज समाज का माहौल इस प्रकार का है कि चारों धन भोगवाद का बोलबाला है छात्र युवक इसी को अपना लक्ष्य बनाकर चलते हैं इसी में अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा झोकते हैं। यदि छात्र भौतिकवाद के साथ-साथ अध्यात्मवाद की महता को भी समझ सकें, अपनी प्रतिभा का एक अंश मानव कल्याण के लिए अर्पित करने का मन बना सकें, स्वार्थ के दलदल से उबरकर कुछ परमार्थ की सीढ़ीयाँ चढ़ने के लिए स्वयं को तैयार कर सकें तो एक बहुत बड़ा कार्य किया जाना संभव हो सकता है जो राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ सकता है एन.आई.टी. के छात्रों की प्रतिभा में एक बहुत विशाल संगठन विनिर्मित किया जा सकता है जो समाज के निम्नतम वर्ग (गरीब वर्ग) को भी सेवा कर सकता है उच्चतम वर्ग (प्रशासन, राजनेता, उद्योगपतियों) को भी मार्गदर्शन दे सकता है
भारतीय संस्कृति के अनुसार मानव की दो प्रकार की आवश्कताएँ हैं एक शरीर से सम्बन्धित दूसरी आत्मा से समबन्धित शरीर के लिए भोजन, इन्द्रिय भोगों, मकान, वस्त्र की आवश्यकता होती है आत्मा के लिए शुद्ध विचार, प्रेम, मानव-कल्याण, परमार्थ दिव्य भावनाओं की आवश्यकता होती हैं यदि मात्र शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती रहे आत्मा को नजरन्दाज किया जाए तो आत्मा दुर्बल होती चली जाती है जिसकी आत्मा दुर्बल हो उसका जीवन रसहीन हो जाता है, इसलिए हमारे ऋषियों ने आत्मबल बढ़ाने पर बहुत जोर दिया है जिस व्यक्ति में जितना आत्मबल अधिक होता है वह उतना ही अधिक प्रसन्न, उत्साहित, समर्थ, निरोग अशक्त बनना चला जाता है अत: प्रत्येक व्यक्ति को आत्मा की आवश्यकता की पूर्ति अवश्य करनी चाहिए ऋषियों ने कहा था जीवेम शरद:शतम् सौ वर्ष व्यक्ति बड़े आनन्द से जी सकता है आज के सन्दर्भ में हम सौ तो नहीं परन्तु 80 वर्ष का निरोग आनन्दमय जीवन जी सकत हैं यह तभी संभव है जब हम शरीर आत्मा दोनों का ध्यान रखें यदि हमारा दृष्टिकोण शरीर पर ही केन्द्रित रहे केवल भौतिक प्रगति तक ही हम सीमित रहें तो हमारा आधा जीवन अर्थात् प्रारम्भ के 40 वर्ष तो अच्छे व्यतीत होते हैं परन्तु बाद के 40 वर्ष शारीरिक मानसिक रोगों से उलझते डरते व्यतीत होते हैं इसलिए दूरदश्री दृष्टिकोण अपनाया जाए सन्तुलित जीवन जिया जाए यदि हम अपनी महान् संस्कृति के अध्यात्मवाद के ब्वदबमचज को समझ सकें तभी हम अपना भविष्य उज्ज्वल कर सकते हैं सम्पूर्ण विश्व के उज्ज्वल भविष्य के लिए सोच सकते हैं
अनेक भविष्यवक्ताओं ने इस प्रकार की भविष्यवाणी की है कि भारत जागेगा और मात्र अपने ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के नव निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा इन भविष्यवक्ताओं में स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, जीन डिवन्सन, नेस्त्रोडेमस, महर्षि श्री राम जी के नाम प्रमुख हैं युगऋषि श्री राम एक स्थान पर लिखते हैं- जिस दिन यह महादैत्य (भारतवर्ष) जागेगा, उस दिन दसों दिशाएँ काँप जायेंगी उसके पास अध्यातम-तत्त्वज्ञान, शौर्य-साहस, विज्ञान एवं सम्पन्नता की इतनी अधिक परम्परागत पूँजी विद्यमान है, जिसके बल पर यह विश्व की एक अद्भुत अनुपम शक्ति बनकर रहेगा सर्वश्रेष्ठता से परिपूर्ण हमारा इतिहास है अब उज्ज्वल भविष्य भी ऐसा होने जा रहा है, जिसमें कि हम प्रत्येक क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व, मार्गदर्शन एवं सहयोग करने में समर्थ हो सकें जो इस पुकार को सुन रहे हैं, उनको विशिष्ट आमन्त्रण है

इसके अतिरिक्त IIT, IIM & BITS  के छात्रों ने मिलकर भारतउदय के नाम से एक मंच तैयार किया है जो भारत की राजनैतिक, सामाजिक अन्य विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए संकल्पबद्ध है देशभक्ति की भावना से भरा युवाओं का यह ग्रुप अपने जीवन काल में ही भारत माता के सभी प्रकार के बन्धनों से मुक्त कराने के लिए संकल्पबद्ध है।
Website http.// www. bharatdaymission.org

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