प्रारम्भिक भूमिका
आत्मीय
परिजनों, प्राचीन काल
से
ही
भारत
एक
महान्
देश
रहा
है।
यहां
जब-जब भी
अधर्म
बढ़ा, पाप,
पीड़ा, पतन बढा, इस संकट
को
दूर
करने
के
लिए
बड़े-बड़े महापुरुषो ने
इस
देश
की
धरती
पर
जन्म
लिया
है
।
स्वयं
भगवान
को
भी कई बार मनुष्य शरीर
धारणकर
इस
देश
की
धरती
पर
जन्म
लेना
पड़ा
है
।
आज
जब
पूरा
विश्व
विनाश
के
कगार पर
बैठा
हुआ
है, एक बहुत
ही
शक्ति
का
अवतार
इस
देश
की
पावन
भूमि
पर
हुआ, उनको हम
श्री
राम
शर्मा
आचार्य
जी
के
नाम
से
जानते
हैं
।
उन्हीं
का
सन्देश
देने
के
लिए
हम
आप
लोगों
के
बीच
आये
हैं
।
भगवान
राम
का
सन्देश
देने
के
लिए
रीछ
वानर
दशो
दिशाओं
में
गए
थे, क्रष्ण जी
का
सन्देश
ग्वाल
वालों
व
पाण्डवों
ने
सब
ओर
फैलाया
था, महात्मा बुद्ध
के
विचारों
को
सुनाने
के
लिए
बौद्ध
भिक्षु
धरती
के
कोने-कोने पर
गए
थे
।
इसी
प्रकार
आज
के
युग
के
महान ऋषि श्री राम
जी
का
सन्देश
सुनाने
के
लिए
लाखों
पीले
कपड़े
वाले
लोग
जगह-जगह घूम
रहे
है
।
आप
सभी
लोग
हमारी
बातों
को
ध्यान
से
सुनेगें
।
जीवन
में
काम
आने
वाली
बहुत
ही
महत्वपूर्ण
बातें
आप
लोगों
को
सुनायी
जाएगी
।
यदि
आप
लोग
उनमें
से
दो
चार
बातों
को
भी
समझ
पाए, जीवन में
उतार
पाए
तो
आपका
भी
यहां
बैठना
सफल
हो
जाएगा
और
हमारा
भी
यहां
आना
सार्थक
हो
जाएगा
।
इसी
आशा
के
साथ
हम
आपके
इस
कार्यक्रम
को
आगे
बढ़ाने
जा
रहे
हैं
।
आप
सभी
लोग
डेढ
दो
घण्टा
बिल्कुल
शान्ति
से
बैठे
रहेंगे
और
इतने
समय
के
लिए
अपने
मन
को
सब
ओर
से
हटाकर
इस
देव
कार्य
में
लगाने
का
प्रयास
करेंगे
।
मंगलाचरणम्
गायत्री
परिवार
एक
ऐसी
संस्था
है
जो
हर
मानव
के
अन्दर
भगवान
का
रूप
देखकर
सबका
सम्मान
करती
है
।
यहां
न
किसी
प्रकार
की
ऊंच
नीच
है, न किसी
प्रकार
का
छुआछूत
।
न कोई अमीर-गरीब है
और
न
ही
किसी
प्रकार
की
जाति-पाति का
कोई भेदभाव
है
।
हमारे
लिए
सभी
हमारे
प्यारे
प्रभु
की
सन्तान
हैं, अत:
सभी
बराबर
हैं
।
हम
आप
सबका
स्वागत
करते
हैं
हृदय
से
आपका
आभार
प्रकट
करते
हैं
।
हमारे
स्वयं
सेवक
सभी
के
ऊपर
चावल पुष्पों की वर्षा कर
आए
हुए
सभी
परिजनों
का, मेहमानों का
स्वागत
करें
।
पवित्रीकरणम्
सामान्य सा
नियम
है
जब
भी
हमें
अपने
घर
में
मेहमानों
को
बुलाना
होता
है, सबसे पहले
अपने
घर
की सफाई करते
हैं
।
इसी
प्रकार
यज्ञ
में
देवशक्तियों
की, भगवान को
बुलाते
हें
और
भगवान
का
अवतरण
व्यक्ति
के
मन, अन्त:करण
में
होता
है
।
अत: भगवान को
बुलाने
से
पहले
अपने
मन
के
आंगम
को
साफ
कर
लिया
जाए
क्योंकि
शुद्ध, सरल,
निर्मल
मन
में
ही
भगवान
का
वास
हो
सकता
है
और
ऐसा
व्यक्ति
ही
भगवान
को
प्रिय
होता
है
भगवान
राम
ने
राम
चरित
मानस
में
कहा
भी
है
-
ßनिर्मल
मन
जन
सो
मोहि
पावा, मोहि कपट
छल
छिद्र
न
भावा।Þ
आइए बाँए
हाथ
में
जल
ले
लें
और
दाहिने
हाथ
(सीघे हाथ) से उसको
ढक
ले
।
भावना
करें
कि
हम
आज
से
निर्मल, सरल,
पवित्र
मन
वाले
बनते
चहे
जा
रहे
हैं
।
¬ अपिवत्र:.....
आचमनम्
आध्यात्म
एक
जीवन
जीने
की
कला
है
।
हमें
जीवन
किस
प्रकार
जीना
चाहिए
यह
हमें
यज्ञ
सिखाता
है
।
आचमन
तीन
बार
किया
जाता
है, जीवन में
तीन
प्रकार
के
अनुशासन
को
अपनाना
चाहिए
।
1- हमें
सबसे
मीठा
बोलना
चाहिए, किसी का
मजाक, उपहास नहीं
करना
चाहिए
।
2- हमें
मन
से दोष दुर्गुणों
को
निकालने
का
सतत्
प्रयास
करना
चाहिए
।
3- हमें
अपने
से
सब
बड़ों
का
सम्मान
करना
चाहिए
एवं
सभी
छोटों
को
प्यार
देना
चाहिए
।
हमारी
महान
संस्कृति
ने
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का नारा
दिया
है
।
पूरे
विश्व
को
एक
परिवार
की
तरह
समझकर, मानकर सभी
के
दु:ख दर्द में
काम
आना
चाहिए
।
आइए इन्हीं
भावनाओं
के
साथ
तीन
बार
आचमन
करते
हैं
।
इसके
लिए
या
तो
चम्मच
से
जल
मन्त्र
के
साथ-साथ सीधा
मुँह
में
डाले
या
सीधे
हाथ
में
जल
लेकर
तब
पीएं
।
¬...............
यदि हाथ
से
जल
पिया
है
तो
हल्का
सा
हाथ
धो
लें
।
शिखा
बन्धनम्
भारत की
भूमि
देव
भूमि
मानी
है, कहते हैं
यहां
तैतीस
करोड़
देवी-देवताओं का
वास
था
।
ये
देवी-देवता कौन
थे? यहां के
नागरिक
थे
जिनका
चिन्तन, चरित्र,
आचरण
इतना
उच्च
कोटि
का
था
कि
पूरी
दुनिया
के
लोग
भारत
की
जनता
का
देवी-देवताओं की
तरह
से
मान
आदर
किया
करते
थे
।
हमारे ऋषि यों ने इसलिए
सबसे
सिर
पर
चोटी
रखायी
थी
ताकि
यह
याद
रहें
कि
हम
चोटि
के
आदमी
है, आदर्शों और
सिद्धान्तों
पर
चलने
वलो
आदमी
है
।
भारत
के
लोगों
को
यह
सब
याद
दिलाने
के
लिए
परम
पूज्य
गुरुदेव
श्री
राम
शर्मा
जी
का
अवतरण
हुआ
।
चोटी
और
जनेऊ
पहले
हर
हिन्दू
की
पहचान
हुआ
करते
थे
आज
फिर
से
गायत्री
परिवार
के
द्वारा
यह
परम्परा
चालू
की
गयी
है
।
बांए हाथ
में
जल
लें
।
दाहिने
हाथ
की
ऊगलियां
पीली
कर
शिखा
स्थान
को
स्पर्श
करें
।
जिनके
चोटी
हों
वो
उसमें
गाठ
लगा
लें
।
मन्त्र
यहां
से
बोला
जा
रहा
है, भगवान से
प्रार्थना
करें
सदा
अच्दे
विचार, ऊंचे विचार
हमारे
दिमाग
में
सदा
बने
रहें
।
¬ चिदरूपिण.....
प्राणायाम:
जिस
प्रकार
पंखे, बल्ब,
कूलर
इत्यादि
को
चलाने
के
लिए
बिजली
की
शक्ति
की
आवश्यकता
पड़ती
है, उसी प्रकार
जितने
भी
जीवधारी मनुष्य , पशु,
पक्षी, आदि इस
संसार
में
है
उन
सभी
के
शरीर
को
चलाने
के
लिए
एक
शक्ति
की
आवश्यकता
पड़ती
है
जिसे
प्राण
शक्ति
कहा
जाता
है
।
जब
यह
शक्ति
व्यक्ति
के
भीतर
कम
होने
लग
जाती
है
तो
व्यक्ति
बीमार, परेशान रहने
लग
जाता
है
।
यदि
व्यक्ति
स्वस्थ
प्रसन्न
रहना
चाहे
तो
उसे
प्राण
शक्ति, जीवनी शक्ति
बढ़ाने
के
तरीके
मालूम
होने
चाहिए
।
आम
तौर
पर
प्राण
शक्ति
बढ़ाने
के
पांच
तरीके
हैं
।
1- प्रात:काल सूर्योदय
से
पूर्व
उठना
एवं
गहरी
सांस
लेने
की
आदत
डालना
।
जो
जितनी
गहरी
सांस
लेता
है, उसकी उम्र
उतनी
लम्बी
होती
है
।
2- गायत्री
मन्त्र
का
जप
इसके
लिए
एक
रामबाण ओषधि है
।
3- यज्ञ
परम्परा
को
अपनाना
।
इसके
लिए
देशी
घी
का
दीपक
रोजाना
घर
में
जलाये
व
सप्ताह
में
एक
दिन
यज्ञ
में
अवश्य
शामिल
हों
।
4- हल्के
सुपाच्य
भोजन
की
आदत
डालना
।
तली, भूनी,
नमक, चाय,
बीड़ी, सिगरेट,
पान, तम्बाकू,
मिर्च
मसालेदार
चीजों
को
प्रयोग
कम
से
कम
करें
।
चीनी
से
बनी
मिठाइयों, चाट पकौड़ी
जैसी
नुकसानदायक
चीजों
से
बचने
की
कोशिश
करें
।
अंकुरित
अनाज, हरी सब्जियों
का
अधिक
प्रयोग
करें
।
हफ्ते
में
एक
दिन
पेट
को
आराम
देने
के
लिए
व्रत
रखें
।
उस
दिन
एक
समय
हल्का, उबला हुआ
सादा
भोजन
करें
व
दूसरे
समय
दूध
या
फल
पर
रहें
।
5- काम, क्रोध,
लोभ, मोह अहंकार
से
अपने
आपको
बचाने
का
प्रयास
करते
रहें
।
ये
मनोविकार
हमारी
प्राण
शक्ति
को
भारी
नुकसान
पहुंचाते
हैं
।
इसके
लिए
अच्छी
पुस्तकों
को
अवश्य
पढ़ने
की
आदत
डाले
।
आइए हम
गहरी
सांस
लेने
की
आदत
यही
से
डालना
शुरू
करते
हैं
।
कमर
सीधी
करके
बैठे, न शरीर
तना
हुआ
हो, न ढीला
।
दोनों
हाथ
गोदी
में
रखें
।
आंखें
धीमे
से
बन्द
करें
।
भावना
करें
हमारे चारो ओर
एक
दिव्य
प्रकाश
फैला
हुआ
है
।
धीमी
गहरी
सांस
खीचिए, प्रकाश को
भीतर
ले
जाइए
रोकिए
प्रकाश
को
रोम-रोम में
फैलाइए
एवं
सांस
छोड़
दीजिए
मन
की
बुराइयों
को
सांस
के
साथ
बाहर
निकाल
दीजिए
।
दोबारा
यही
क्रिया
दोहराइए, मन्त्र यहां
से
पढ़ा
जा
रहा
है।
¬ भू:
¬ भुव:.....
न्यास
ऋषियों का कहना
है
कि
संसार
में
जीवन
जीने
के
दो
तरीके
हें
एक
भोग
का
दूसरा
योग
का, एक बन्धन
का
दूसरा
मोक्ष
का, एक पतन
का
दूसरा
तपन
का
।
दूसरा
मार्ग
अर्थात्
योग
का
मार्ग
शुरू
में
कठिन
तो
दिखता
है
पर
आनन्द
का, शक्ति का, उन्नति का
द्वार
खोल
देता
है।
इस
मार्ग
पर
चलने
के
लिए
हमें
अपनी
इन्द्रियों
को
वश
में
रखना
होता
है
जैसे
मुख
से
सात्विक
भोजन
करें, नेत्रों से
अच्छे
दृश्य
देंखे, कानों ने
निन्दा
चुगली
न
सुनें
आदि
।
इन्द्रियों
में
देवत्व
को
धारण
करना
न्यास
कहलाता
है
।
आइए
बांए
हाथ
में
जल
लें, दाहिने हाथ
की
पांचों
ऊंगली
जोड़कर
जल
में
डुबाए
।
जिन-जिन अंगों
पर
कहा
जाएगा, मन्त्र के
साथ-साथ उन-उन अंगों
पर
बाएं
से
दाएं
की
ओर
लगाएं
।
पृथ्वी
पूजनम्
धरती
हमारी
माता
है
जब-जब भी
धरती
पर कोई संकट
आया, भारत मां
के
सपूतों
ने
एक
से
बढ़कर
एक
कुर्बानी
दी
है
आज
हमारी
संस्कृति
पर
विनाश
के
बादल
छाए
हुए
हैं
।
हम
उनको
दूर
करने
के
लिए
अपना
हर
सम्भव
प्रयास
करेंगे, इस भावना
के
साथ
एक
चम्मच
जल
धरती
माता
पर
छोड़कर
नमन
वन्दन
करें
।
¬ पृथिवी..........
चन्दन
धारणम्
चन्दन की
दो
विशेष ता
होती
है
वह
शीतल
होता
है
और
महकता
है
आध्यात्मिक
व्यक्ति
में
भी देव विसेषता होती
है
उसके
जीवन
में
शान्ति
होती
है
दूसरा
उसका
जीवन
सदगुणों
की
सुगन्धि
से
महकता
है।
आइए
इसी
भावना
के
साथ
एक-दूसरे को
तिलक
करते
हैं
।
सभी
अपनी
अनामिका
ऊंगली
(अंगूठी वाली
ऊंगली) में रोली
लगा
लें
एवं
एक
दूसरे
के
माथे
पर
लगाएं
मन्त्र
यहां
से
पढ़ा
जा
रहा
है
हमारे
स्वंयसेवक
सभी
तक
तिलक
पहुंचाने
में
सहायता
करें
।
¬ चन्दमस्य...........
सकंल्प
सूत्र
परम
पूज्य
गुरुदेव
ने
वेद
शास्त्रों
का
अध्ययन
करके
उनका
निचोड़
निकालकर
हमारे
सामने
रखा
है
।
आज
के मनुष्य की
कठिनाइयों, परेशानियों एवं
खमता
को
देखते
हुए
जो
बहुत
उपयोगी
बातें
गुरुजी
ने
हमें
बतायी
वही
आपके
सामने
कह
रहे
हैं
। निराकार स्वरूप
उन्होंने
चारों
बातों
पर
जोर
दिया
है
।
1- गायत्री
साधना
(गायत्री मन्त्र
का
जप)
2- स्वाध्याय
(अच्छी पुस्तकों
का
अध्ययन)
3- संयम
(समय सयम, विचार सयम, इन्द्रिय सयम, अर्थ सयम)
4- सेवा
(समयदान,
अंशदान)
जो भी
बातें
आपको
अच्छी
लगी
हों
उनमें
से
कम
से
कम
एक
बात
अवश्य
अपने
साथ
बांध
कर
ले
जाना
इसी
भावना
के
साथ
आइए
कलावा
एक
दूसरे
को
बांधते
हैं
विवाहित
महिलाएं
अपने
बाएं
हाथ
में
कलावा
बंधवाएंगी
व
अन्य
सभी
दाहिने
हाथ
में
।
हमारे
स्वयं
सेवक
कलाबा
सभी
तक
पहुंचाने
का
उचित
प्रबन्ध
करें
।
कलश
पूजन
कलश विश्व
ब्रह्माण्ड
का
प्रतीक
है, सभी देवशक्तियों
का
आह्वान
कलश
के
भीतर
किया
जा
रहा
है, सभी हाथ
जोड़कर
देवशकितयों
का
भाव
भरा
आह्वान
करें
।
स्वयं
सेवक
बन्धु
कलश
का
पूजन
कराएं
।
गुरु
वन्दना
देव शक्तियों
में
सबसे
अधिक
महत्व
गुरुसता
को
दिया
जाता
है।
कबीरदास
जी
ने
तो
गुरु
को
भगवान्
से
भी
बड़ा
बताया
है
।
राम
चरित-मानस कहती
है
:
ßगुरु
बिन
भवनिधि
तरंहि
न कोई ।
जो
बिरंचि
शंकर
सम होय ।।Þ
इसका अर्थ
है
कि
व्यक्ति
भले
ही
ब्रह्मा
जी, शिवजी के
समान
उच्च
क्यों
न
हो, परन्तु बिना
गुरु
के
तो कोई भी
पार
नहीं
जा
सकता।
जैसे
बच्चे
का
पालन-पोषण ठीक
प्रकार
से
करने
के
लिए
माता-पिता की
आवश्यकता
पड़ती
है
उसी
प्रकार
संसार
में
आनन्द
और
शान्ति
से
जीवन
यापन
के
लिए
किसी
न
किसी
महान्
गुरु
के
सहारे
की
जरूरत
पड़ती
है
।
सद्गुरु
क्या
कहते
हैं? शिष्य को
अपनी
तपस्या
का
एक
अंश
देकर
उसके
कुछ कष्टों , पापों को
दूर
कर
देते
हैं
।
परम-पूज्य गुरुदेव
ने
भी
24 साल
तक
गायत्री
की
प्रचण्ड
तपस्या
की
।
चार वर्ष में
हिमालय
में
रहकर
घोर
तप
साधना
की
और
उसका
अमृत
अपने शिष्यों को
पिलाया
।
पूज्य
गुरुदेव
ने
दो-चार नहीं
बल्कि
लाखों
करोड़ों
लोगों
की
बीमारियों, परेशानियों को
दूर
किया
है
एवम्
उनकी
मनोकामनाओं
को
पूरा
किया
है
।
यही
कारण
है
कि
आज
गायत्री
परिवार
ग्यारह
करोड़
लोगों
का
विश्व
का
सबसे
बड़ा
संगठन
है
जिसमें
हिन्दू, मुस्लिम,
सिक्ख, ईसाई सभी
वर्गों
के
लोग
शामिल
हैं
।
आइए
सभी
अपने-अपने गुरुओं
को
ध्यान
करें, जिनके कोई गुरु
न
हो, वो जगत् गुरु के
रूप
में
धरती
पर
अवतरित
श्री
राम
शर्मा
जी
ध्यान
करें
।
प्रार्थना
करें
कि
हमारे
जीवन
से
अज्ञान
का
अन्धकार
दूर
हो
एवम्
ज्ञान
की
ज्योति
हम
सभी
के
भीतर
प्रकाशित
होने
लगे
।
गायत्री
पूजनम्
पुराने समय
से
ही
गायत्री
और
यज्ञ
इस राष्ट्र की
संस्कृति
के
आधार
स्तम्भ
रहें
है, पहले हर
घर
में
सभी
लोग
गायत्री
जप
करते
थे
और
हवन
करते
थे
।
उस
समय
हमारा
भारत
जगतगुरु
कहा
जाता
था।
यहां
किसी
प्रकार
की कोई कमी
नहीं
थी
।
इस
देश
में
दूध
दही
की
नदियां
बहती
थी
।
आर्थिक द्रष्टि से यह
सोने
की
चिड़िया
माना
जाता
था
।
परन्तु
मध्य
काल
में
लोग
असली
वस्तु
को
भूलकर
दुनिया
भर
में
आडम्बरों
में
उलझ
गए
।
आज
यह
देश
हर
तरह
से
पिछड़ता
जा
रहा
है
।
भारत
देश
को
दोबारा
उस
स्थिति
में
लाने
के
लिए
पूज्य
गुरुदेव
ने
फिर
से
गायत्री
और
यज्ञ
की
परम्परा
शुरू
की
है
।
चारों वेद, अठारह पुराण
सभी
एक
स्वर
से
गायत्री
मन्त्र
की
महिमा
गाते
हैं, सभी ऋषि मुनियों सन्तों, महापुरुषो ने
गायत्री
महामन्त्र
को
सर्वोपरि
माना
है
।
भगवान
राम
ने
विश्वामित्र
जी
के
आश्रम
में
जाकर
गायत्री
विद्या
को
सीखा
था
।
भगवान
कृष्ण ने
बद्रीनाथ
नामक
जगह
पर
बारह वर्ष तक
गायत्री
की
साधना
की
।
लक्ष्मण
जी
ने
सात वर्ष तक
लक्ष्मण
झूला
(ऋषिकेश) नामक स्थान
पर
गायत्री
की
घोर
तपस्या
गंगा
जी
के
बीच
की
थी
।
भारत की
नारियां
भी
गायत्री
साधना
किया
करती
थी
।
सावित्री
ने
गायत्री
साधना
के
बल
पर
वह
तेज
पाया
था
कि
यमराज
को
भी
उनके
सामने
हार
माननी
पड़ी
।
गार्गी
इस
मन्त्र
की
साधना
से
अद्भुत
विद्वान
बनी
थी
।
गायत्री मन्त्र
का
जप
सभी
को
करना
चाहिए
।
यह
कभी
भी
नुकसान
नहीं
पहुंचाता
।
यदि
पूरे
विधि
विधान
से
किया
जाऐ
तो
लाभ
अधिक
मिलता
है, परन्तु इससे
किसी
भी
तरह
का
नुकसान
कभी
नहीं
होता
।
गायत्री
मन्त्र
में
24 देव-शक्तियों का
वास
होता
है
इसका
जप
करने
से
24 देवी
देवता
प्रसन्न
होते
हैं
।
साधक
में
24 विशेष शक्ति
केन्द्र
जागृत
होने
शुरू
हो
जाते
हैं, जिससे उसकी
बीमारियां
समाप्त
होने
लगती
है
।
उसे
भौतिक
और
आध्यात्मिक
सभी
प्रकार
की
सफलताएं
मिलनी
शुरू
हो
जाती
है
।
पुराने
जन्मों
से
लदा
हुआ
पापों
का
बोझ
कटना
चालू
हो
जाता
है, जिससे उसके कष्ट , कठिनाइयां,
डर
आदि
समाप्त
होते
चले
जाते
हैं
।
ऐसे
अमृततुल्य
मन्त्र
को
हम
भी
अपने
जीवन
में
अपनाएं
इस
भावना
के
साथ
आदि
शक्ति
मां
भगवती
का
पूज
करते
हैं
।
देवावाहनम्
नोट - देवावाहानम मे
जिस
मन्दिर
या ईष्ट के
उपासक
यज्ञ
में
बेठै
नजर
आते
हो
उसी
देवता
का
पूजन
व
साथ
में
नव
ग्रह
पूजन
करा
देना
चाहिए
।
सारे
मन्त्र
पढ़ना
अधिक
लम्बा
होता
है
।
नवग्रह
पूजन
के
लिए
ब्रह्मामुरारि
बाला
मन्त्र
पढ़ें
।
सर्वदेव
नमस्कार:
घर में
जब कोई मेहमान
आते
हैं
सबसे
पहले
नमस्कार
किया
जाता
है
।
इसी
प्रकार
देवी
शक्तियां
सूक्ष्म
रूप
में
वातावरण
में
उपस्थित
है
हाथ
जोड़कर
सिर
झुकाकर
भाव
पूर्वक
प्रणाम
करें
।
षोड शोपचार पूजनम्
सोलह चीजों
से
देव
शक्तियों
का
सम्मान
करें
।
यज्ञ
वेदी
पर
अथवा
एक
प्लेट
में
(जिस पर
पहले
से
सतिया
बना
हो) सोलह चीजें
चढ़वाएं
।
स्बस्तिवाचनम्
स्वास्तिवाचन का
अर्थ
है
विश्व
कल्याण
की
प्रार्थना
।
इस
धरती
पर
जब-जब भी
अधर्म
बढ़ा, राम,
कृष्ण जैसी
महाशक्तियां, इस धरती
की
रक्षा
के
लिए
आगे
आयी
थी
।
आज
भी
जबकि
पूरा
विश्व
विनाश
के
कगार
पर
बैठा
है, परम पूज्य
गुरुदेव
जैसी
महाशक्ति
का
आगमन
हुआ
।
जिन्होंने
हिमालय
के ऋषि मुनियों के
सरंक्षण
में
गायत्री की कठिन
तपस्या
की
।
24 वर्ष तक
गायत्री
के
24 महापुरश्चरण
सम्पन्न
किये
।
24 वर्ष तक
मात्र
पांच
छटांक
जो
की
रोटी
का
सेवन, सवा शेर
छाछ
के
साथ
एक
समय
किया
।
इस
दौरान
कभी
नमक, मिर्च,
मसाला, मीठा,
दूध, फल,
सब्जी
कुछ
नहीं
लिया
।
उग्र
तपस्या
के
पश्चात्
उन्होंने
युग
परिवर्तन
का
उदघोष किया
।
यह
दुनियां
को
बदलने
की
भवान
की
योजना
चल
रही
है
।
आज
भगवान
लोगों
से
यह
पुकार
कर
रहा
है
कि
वो
दुनिया
को
बदलने
में
उसका साथ दे
।
भगवान
की
पुकार
को
गिद्ध, गिलहरी ने
सुना
था
तो
भगवान
का
प्यार
पाया
था
उनका
नाम
इतिहास
में
अमर
हो
गया
था
।
आज
भी
यही
समय
चल
रहा
है
।
विश्व
निर्माण
के
लिए, विश्व कल्याण
के
हम
भी
अपना
कुछ
न
कुछ
योगदान
अवश्य
करें
इसी
भावना
के
साथ
स्वस्तिवाचन
करते
हैं
।
सभी
दाहिने
हाथ
में
चावल पुष्प ले
लें, बांया हाथ
नीचे
लगा
लें
।
मन्त्र
यहां
से
बोले
जा
रहे
हैं
।
रक्षा
विधान
देव शक्तियां
यज्ञ
की
सुरक्षा
करें
व
आसुरी
शक्तियां
दूर
रहे
इस
भावना
के
साथ
दशो
दिशाओं
में
चावल
छोड़े
जाएंगे
।
एक
व्यक्ति
बाएं
हाथ
में
चावल
लें
दाहिने
हाथ
में
जहां-जहां कहा
जाये
वहां
छोड़े
।
अग्नि
स्थापनम्
यज्ञ का
हमारी
संस्कृति
में
सबसे
अधिक
महत्व
है
।
हम
प्रत्येक
शुभ
अवसर
पर
हवन
करते
हैं
।
ऐसा
क्यों
है? क्या हमने
कभी
सोचा
है
बहुत
से
लोग
यह
कहते
हैं
कि
हवन
में
घी
जलाकर
बेकार
कर
दिया
जाता
है
।
परन्तु
आज
वैज्ञानिकों
ने
इस
बात
को
सिद्ध
कर
दिया
है
कि
घी
खाने
से
अधिक
लाभ
यज्ञ
में
घी
जलाने
का
है
।
घी
जलाने
से
वह
सांस
के
साथ
मिलकर
रक्त
में
मिल
जाता
है
।
यही
बात
बड़ी-बूटियों के
साथ
है, जो लोग
हवन
करते
रहते
हैं
वो
बहुत
सी
बीमारियों
से
बचे
रहते
हैं
।
हवन
करने
से
वातावरण
की
शुद्धि
होती
है
।
फसलें
बहुत
अच्छी
होती
है
।
उल्टे-सीधे टोने-टोटकों व
आसुरी
शक्तियों
से
बचाव
होता
है
।
यही
कारण
है
कि
भगवान
कृ”ण
ने
गीता
में
यज्ञ
का
महत्व
बताते
हुए
कहा
है
जो
लोग
बिना
यज्ञ
किए
अन्न
खाते
हैं
वो
पाप
की कमाई खाते
हैं
।
इस प्रकार
हमने
यज्ञ
के
लाभों
को
जाना
।
यह
बहुत
ही
पुण्य
कार्य
है
अधिक
से
अधिक
यज्ञ
करेगें
और
कराएगें
।
इसी
भावना
से
साथ
अग्नि
प्रज्जवलित
करते
हैं
।
भगवान
से
प्रार्थना
करते
हैं
कि
ज्ञान
की
एक
ज्योति
हमारे
भीतर
भी
प्रवेश
करे
जिससे
मानव
जीवन
में
आना
सफल
हो
जाए
।
देव
दक्षिणा
आज सभी देवशक्तियां फिर से भारत भूमि को उन्नत, समृद्ध देखना चाहती है । इसके लिए वो सभी भारतवासियों से एक ही दक्षिणा मांग रही हैं कि प्रत्येक व्यक्ति एक बुरार्इ अपनी छोडे । बुरार्इ कोई भी हो सकती है, उल्टा सीधा खाना पीना, बीड़ी, तम्बाकू, शराब आदि गुस्सा, आलस्य, ईर्ष्या द्वेष आदि कोई भी एक गलत आदत आज के इस पुण्य पर्व पर छोडे यही सच्ची देव दक्षिणा है ।
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