एक बार स्वामी रामतीर्थ जापान में गए । वहाँ पर उन्होंने
एक बगीचे में देखा कि कुछ वृक्ष पुराने तो हैं परन्तु लम्बे कम है । उन्होंने माली से पूछा कि वृक्षों की ऊँचाई कम क्यों है? माली बोला कि हम वृक्षों की जड़ों को काटते रहते हैं जमीन में गहराई तक नहीं जाने देते। इसी कारण ऊँचाई कम है ।
यह समस्या हमारे साथ है । सनातन धर्म की जड़ों को हमने अपने जीवन में गहराई तक नहीं जमने दिया गहराई तक जाकर हमनें सनातन धर्म को नहीं समझा । जितनी गहराई तक जाकर हम सनातन धर्म के सिद्धांतों को समझेंगे, जितना गहराई तक उसकी जड़ें अपने जीवन में जमाएंगे, उतनी व्यक्तित्व ऊँचा होता चला जाएगा ।
एक
सुन्दर
व
भव्य
मकान
को
निर्मित
करने
के
लिए
उसकी
नींव
को
मजबूत
व
गहरा
बनाना
होता
है
।
यद्यपि
नींव
किसी
को
विशाल
एवं
फलदार
वृक्ष
की
जड़ें
गहराई
तक
जानी
आवश्यक
है
।
जड़
जितनी
मजबूत
होगी, वृक्ष उतना
ही
उपयोगी
होगा
।
सनातन
धर्म
के
सम्बन्ध
में
भी
यह
सिद्धान्त
बहुत
महत्वपूर्ण
है
।
सनातन
धर्म
के
मूल
आधार
को
छोड़कर
यदि
बाह्य
कलेवरों
में
व्यक्ति
उलझा
रहे
तो
उसका
लाभ
नहीं
मिल
सकेगा
।
धर्म, अध्यात्म,
योग
साधना
के
आधार
को
समाज
स्वीकार
नहीं
करना
चाहता, केवल सनातन
वृक्ष
के
फल
और
छाया
का
लाभ
लेना
चाहता
है
।
वृक्ष
की
जड़
को
काटकर
क्या
उसके
फल
व
छाया
का
लाभ
लिया
जा
सकता
है?
उत्तर
होगा
नहीं
।
सनातन
धर्म
के
मूल
आधार
त्याग, तपस्या,
तितिक्षा
को
छोड़कर
यदि
हम
बाह्य
कलेवरों
जैसे
मूर्ति
पूजा, ज्योतिष कर्मकाण्ड, शारीरिक व्यायामों
में
ही
उलझे
रहे
और
आशातीत
उपलब्धि
न
पा
सके
तो
इसमें
दोष
किसका
है?
यदि
हम
वास्तव
में
शास्त्रों
में
वर्णित
बातों
का
लाभ
लेना
चाहते
हैं
तो
हमें
थोड़ा
सा गहराई में
उतरना
होगा
।
भेड़
चाल
से
कुछ
लाभ
मिलने
वाला
नहीं
।
रोज
नए-नए प्रचलन
मन्त्र, तन्त्र,
यन्त्र, योग,
दोषी
देवता
समाज
में
कुकुरमुत्तों
की
तरह
उंग
रहे
है
।
व्यक्ति
प्रलोभन
वश
एक
से
दूसरे
दूसरे
से
तीसरे
प्रचलन
की
ओर
दौड़
रहा
है
।
परिणाम
क्या
है? मात्र समाज
का
अधीपतन! उठो,
जागो
और
सनातन
धर्म
के
मूल
आधार
को
समझने, अपनाने का
प्रयास
करो
।
शार्ट
कट
एवं
व्यर्थ
की
भाग
दौड़
से
कुछ
उपलब्ध
होने
वाला
नहीं
है
।
सनातन
धर्म
के
तत्व
दर्शन
को
सरल
भाषा
में
समझाने
का
प्रयास
इस
पुस्तक
के
माध्यम
से
किया
गया
है
।
जो सनातन धर्म से प्रेम करते हैं, सनातन धर्म को समझना चाहते हैं, उसको जीवन में अपनाकर लाभान्वित होना चाहते हैं उसके लिए यह पुस्तक अवश्य उपयोगी सिद्ध होगी । जो एक वैज्ञानिक की दृष्टि से सनातन धर्म पर प्रयोग करके देखना चाहते हो अथवा तर्क की कसोटी पर कसना चाहते हो उसके लिए भी यह पुस्तक बहुत उपयोगी है ।
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