Monday, July 16, 2012

विश्वामित्र का सावित्री महाप्रयोग


वैज्ञानिक अध्यात्म के वैदिक द्रष्टा ऋषि विश्वामित्र इन दिनों अपने विशिष्ट महा प्रयोग में लीन थे पिछले कुछ वर्षो से वे पूरी तरह से एकांत में थे वाणी का प्रयोग भी उन्होंने प्राय: बंद कर रखा था उनकी वाणी अब केवल विशेष मुहूर्तों में किए जाने वाले अति आवश्यक मन्त्रोच्चार के लिए ही सक्रिय होती थी, अन्य कार्यों के लिए तो वे बस, संकेतों से काम चला लेते थे उनके इस महाप्रयोग की ऊष्मा-ऊर्जा से उनकी महान तपस्थली सिद्धाश्रम का कण-कण ऊर्ज स्वित आपूदित हो रहा था यों तो महर्षि विश्वामित्र ने अपना समूचा जीवन तप के अनगिनत आध्यात्मिक प्रयोगों में बिताया था ऋग्वेद के तृतीय मण्डल के सभी 62 सूक्त इसकी स्पक्षी देते हैं ऋग्वेद के इस तृतीय मण्डल के बासठवें सूक्त का दसवाँ मंत्र गायत्री महामन्त्र के रूप में लोक विख्यात हो रहा था इसी के साथ गायत्री महामन्त्र के द्रष्टा, अलौकिक अनुभवी सिद्ध एवं इस महामन्त्र से जुड़ी सहसाधिक साधनाओं के सूक्ष्म एवं पारगामी तत्त्वदश्री महर्षि विश्वामित्र भी सुविख्यात हो रहे थे
परन्तु उन्हें लोक ख्याति नहीं, लोक सेवा प्रिय थी विश्वहित के प्रयोजनों में स्वयं को निरन्तर खपाते रहने के कारण ही विश्व आज उन्हें विश्वामित्र के रूप में जान रहा था पहले कभी वे वैभव शाली नरेश विश्वरथ हुआ करते थे परन्तु जब से उन्होंने ब्रह्मर्षि वशिष्ट के संग -सा​न्धिय में अध्यात्मक विद्या, ब्रह्म तेज एवं ब्रह्मबल की महिमा जानी, तब से वे क्षात्रबल क्षात्र तेज से वैराग्य लेकर आध्यात्मिक प्रयोगों में लीन हो गये अब तो ब्रह्मर्षि वशिष्ट भी उनके महान तप एवं लोक सेवा की प्रशंसा करते थकते नहीं थे इसलिए तो उन्होंने आग्रहपूर्वक महाराज दशरथ से अनुरोध करके श्रीराम एवं उनके अनुज लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र की सेवा में भेजा था उस समय भी महर्षि आवश्यक प्रयोग कर रहे थे, लेकिन ये तो बहतु साल पहले की बात थी जब तो महाराज दशरथ स्वर्ग वासी हो चुके थे श्रीराम अपनी भार्या सीता एवं अनुज लक्ष्मण सहित चित्रकूट वन में थे ब्रह्मर्षि वशिष्ट अयोध्या में कुमार भरत को अपना संरक्षण प्रदान कर रहे थे
इधर ऋषि विश्वामित्र ने सिद्धाश्रम में नया विशिष्ट महा प्रयोग प्रारम्भ किया था इस प्रयोग को शुरू करने से पहले उन्होंने अपने शिष्य जावालि, पुव मधुच्छंदा पौल जेत एवं अधमर्ण को बुलाकर कहा था कि इस बार की चुनौतियां पहले की सभी चुनौतियों से कहीं अधिक गंभीर हैं इस बार सवाल किन्हीं मारीच सुबाहु या ताड़का द्वारा फैलाये जा रहे आतंक का नहीं है, सवाल किसी क्षेत्र विशेष की सुरक्षा का भी नहीं है, इस बार तो संकट सष्टि के अस्तित्व पर है असुरता अपने व्यूह रच रही है मायावी एवं पैशाचिक शक्तियाँ नए-नए संहारक भारक प्रयोग कर रही है उन सबको एक साथ निरस्त करना है इतना ही नहीं, भविष्य की सतयुगी परिस्थितियों के लिए अपरा एवं परा प्रकृति में, जड़ एवं चेतन प्रकृति में एक साथ महापरिवर्तन करने होंगे और यह तभी सम्भव हो पायेगा, जबकि समूचे विश्व की कुण्डलिनि का जागरण हो
 विश्व कुण्डलिनी जागरण इस शब्द ने युवा जेत एवं अधर्म को ही नहीं प्रौढ़ हो चुके मधुच्छंदा एवं जाबालि को भी चकित एवं रोमांचित कर दिया ये दोनों तो अति दीर्घ काल से महर्षि के सभी प्रयोगों में घनिष्ठ सहयोगी थे परन्तु आज इनके चौंकने एवं रोमांचित होने को उन्होंने अनदेखा कर दिया वे इसे समझा रहे थे - इसके लिए धरती की कुंडलिनी शक्ति, जो उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव के बीच प्रवाहित चुम्बकीय प्रवाह के रूप में हैं, इसे सौर ऊर्जा से आन्दोलित, उद्वेलित एवं परिवर्तित करना पड़ेगा इसके लिए अनिवार्य है, और ऊर्जा का व्यापक संदोहन एवं आवश्यक संप्रेषण-संयोजन यह कार्य अति कठिन है, परन्तु असंभव नहीं इसके लिए मैं गायत्री महाविद्या का सावित्री प्रयोग करूँगा
यानि कि विनोय गायत्री के ब्रह्मस्त्र, ब्रह्मशिरस एवं पाशु पात का एक सा समन्वय, बल्कि उससे भी कहीं कुछ अधिक महर्षि के कथन के स्वयं ही ऋर्षि जावाति एवं ऋर्षि मधुच्छंदा के मन में लगभग एक साथ ही यह बात आई उनमें इस मानसिक संवेदनों ने महर्षि की भाव चेतना को कहीं छुआ वे बोले - तुम ठीक सोचते हो, परन्तु मैं सृष्टि की रक्षार्थ अध्यात्मक विद्या के इस महानतम वैज्ञानिक प्रयोग को अवश्य करूँगा आत्मिक चेतना एवं सविता चेतना के तारतम्य को बचाने वाले आधार इसी से विनिर्मित होंगे सावित्री विश्वव्यापी हैं इसके प्रभाव से भूमण्डल का सम्पूर्ण क्षेत्र एवं प्राणी समुदाय का समूचा वर्ग प्रभावित होगा इस प्रभाव से तमस् क्षीण होगा और सत्व की अभिवृद्धि होगी इससे अन्त:करण एवं पर्यावरण में एक साथ सुखद परिवर्तन होंगे विनाश्क शक्तियों विनष्ट होगी एवं सृजन शकितयों का नवोत्थान होगा
हमें क्या करना होगा भगवन् ! महर्षि को सुन रहे सभी जनों ने अपने कर्तव्य को निर्धारित करना चाहा उनके प्रश्न के उतर में महर्षि बोले - इस कठिन घड़ी में तुम सभी को अपने दायित्व दृढ़ता से निभाने चाहिए वत्स जाबालि इस कठिन कार्य में मेरे निजी सहयेागी की भूमिका निभायेंगे पुत्र मधुच्छंदा अयोध्या में तप कर रहे ब्रह्मर्षि वशिठ, चित्रकूट में तपस्यारत ब्रह्मर्षि अति एवं सुदूर दक्षिण में वेदपुरी में कठोर तप में संलग्न महर्षि अगस्त से सूक्ष्म सम्पर्क बनाये रखेंगे और उकने संकेतों से समय-समय पर हमें अवगर करायेंगे क्योंकि ब्रह्मर्षि वशिष्ठ इस कार्य के लिए सौ पुरुषो का ऐसा महान साधक वर्ग तैयार कर रहे हैं, जो लोक मैं सतयुगी वातावरण, सावित्री शक्ति के अवतरण को सहज बनाएं महर्षि अत्रि चित्रकूट में हैं, उनका दायित्व यह है कि वे इस महा प्रयोग की ऊर्जा को धारण करने में वत्स राम, लक्ष्मण एवं पुत्री सीता को समर्थ बनाएँ
इसी क्रम में अगली कड़ी में महर्षि अगस्त्य है वे इस सावित्री महा प्रयोग से उत्पन्न होने वाली शक्ति महान दिव्यास्त्रों की संरचना करेंगे और समय आने पर श्रीराम को प्रदान करेंगे ये सभी कार्य एक साथ, एक ही स्तर पर सम्पन्न होंगे यद्यपि हम सभी का चेतना स्तर पर जुड़ाव तो होगा ही परन्तु अपनी-अपनी प्रायोणिक निभग्न्ता के कारण यदा-कदा यह सम्पर्क-संस्पर्श न्यून पडेगा इसलिए पुत्र मधुच्छंदा इस कार्य के लिए तत्पर रहेंगे वत्स जेत एवं अधर्मषण इस कार्य में अपने पिता का सहयोग करेंगे हमारी दिव्य दृष्टि कहती हैं कि यह महान सावित्री साधना अवश्य सफल होगी और धरती पर सतयुगी परिस्थितियाँ अवश्य विनिर्मित-विस्तारित होगी इतिहास साक्षी है कि महर्षि विश्वामित्र के सावित्री महा प्रयोग से धरती पर राम राज्य संभव हो सका - सतयुगी विधान क्रियान्वित हो सका जिसकी रचना में अत्रिवंश की कन्या विश्ववारा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

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