करने चले युग निर्माण
तप
की
अग्नि
में
खुद
को
तपाकर
ज्ञान
के
पुष्पों
से
खुद
को
महकाकर
भक्ति
के
रस
में
खुद
को
डुबाकर
त्याग
तितिक्षा
की
भट्टी
में
खुद
को
गलाकर
करने
चलें
हम
युग
निर्माण
धर्म
के
रथ
पर
खुद
को
बिठाकर
मृत्यु
की
शैय्या
पर
खुद
को
लेटाकर
ध्यान
की ऊँचाई पर
खुद
को
चढ़ाकर
करने
चले
हम
युग
निर्माण
ऋषियों
(गुरु)
के
अनुशासन
में
खुद
को
कसाकर,
सिद्धान्तों
की
जंजीरों
में
खुद
को
फसाकर,
साधना
(काटों)
के
पथ
पर
खुद
को
चलाकर,
लोक
कल्याण
की
भावना
में
खुद
को
विकसाकर,
करने
चलें
हम
युग
निर्माण
।
वैर
भाव
की
गंदगी
को
हटाकर,
अपने
पराए
का
भेद
मिटाकर,
अपने
भीतर
के
विश्वामित्र
को
जगाकर,
करने चले हम युग निर्माण ।
शान्तिकुंज में परम पूज्य गुरुदेव की स्वरचित कविता
कर्मफल
देना
जिसका
काम
नया
भगवान
बनायेंगे
।
ज्ञान
के
दीप
जलायेंगे, अंधेरा मार
भगायेंगे
।
निकम्मे
प्रचलन
बदलेगे, नया संसार
बसायेंगे
।
चलेगे
नहीं
छद्म
पाखंड, प्रीति की
रीति
निभायेंगे
।
भ्रान्तियों
की
न
गलेगी
दाल, तथ्य और
सत्य
सुहायेंगे
।
न
पनपेगी
गुड़ागर्दी, लडेंगे घूलि
चटायेंगे
।
सहेगे
न
किसी
की
घौंस, न खोटे
कदम
उठायेंगे
।
अंधविश्वास
न
बरतेंगे, सचाई ही
अपनायेंगे
।
देवता
दिखे
सभी
इन्सान, स्वर्ग धरती
पर
लायेगे
।
न
नारी
का
होगा
अपमान, उसे सरताज
बनायेंगे
।
क्षीर
सागर
में
सोया
जो, उसे झकझोर
जगायेंगे
।
सिर्फ
इन्सान
जिसे
प्रिय
हो, नया भगवान
बनायेंगे
।
लाज
मानवता
की
जो
रखे, नया इन्सान
बनायेंगे
।
विषमता
नहीं
टिकेगी
कहीं, एकता समता
लायेगे
।
रहेंगे
हिल
मिल
कर
सब
लोग, हँसेंगे और
हँसायेगे
।
पसीने
की
रोटी
पर्याप्त, मुफ्त का
माल
न
खायेंगे
।
न
आलस
बरतेगा कोई उठेंगे और
उठायेंगे
।
उनीदें नहीं रहेंगे हम जगेगे और जगायेंगे ।
अब तो अलख जग जाने दो
गुरुदेव
कृपा
कर
दो
मुझ
पर
।
मुझे
अपनी
शरी
में
आने
दो
।।
नश्वरता
से
मुँह
मोड़
सकूँ
।
शाश्वत
की
शरण
में
आने
दो
।।
राग
द्वेष
भय
हट
जाए
।
मम
चित्त
अचिन्त्य
हो
जाए
।।
वह
जान
सके
पहिचान
सके
।
वह
आत्मतत्त्व
पा
जाने
दो
।।
मैं
बूँद
प्रभु
तुम
हो
सागर
।
मैं
रश्मि
प्रभु
तुम
प्रभाकर
।।
पूरण
ब्रह्म
प्रकाशी
गुरु
।
स्पर्श
चरणरज
पाने
दो
।।
न
हो
माया
से
विचलित
मन
।
यह
देह
अमित
और
मिथ्या
तन
।।
क्षण
भंगुर
से
नाता
काटो
।
और परम तत्त्व
मिल
जाने
दो
।।
निर्द्वन्द
नि:संग असंग
बनूँ
।
सम
सुख
दु:ख मान प्रसन्न
बनूँ
।।
चौरासी
में
आना
न
पड़े
।
वह
आत्मा
तत्त्व
महकाने
दो
।।
गुरु
क्षण-क्षण बीता
जाए
है
।
मनुआ
कुछ
ना
कर
पाए
है
।
भक्ति
भाव
की
मानुष्य
तन
में
।
अब
तो
अलख
जग
जाने
दो
।।
पातकी
मूर्ख
अल्पज्ञ
रहा
।
यह
जीवन
व्यर्थ
गँवाय
रहा
।।
जीवन
के
बाकी
साँसों
को
।
प्रभु की लय में वह जाने दो ।।
सनातन धर्म के
रथ
पर
श्री
राम
आए
हैं
श्रीराम आए है, हमारे गुरुदेव
आए
हैं
।
गुरुदेव आए है, साक्षात महाकाल
आए
है
।
महाकाल आए है, युग निर्माण
योजना
लाए
है
।
सनातन धर्म के
रथ
पर, भोले नाथ
आए
हैं
।
भोले नाथ आए
हैं, ओघड़दानी बाबा
आए
है
।
बाबा आए है
कि
हमारे
पालनहार
आए
है
।
पालनहार आए है
कि
तारनहार
आए
हैं
।
सनातन धर्म के
रथ
पर, महावतार आए
हैं
।
नूर लाए है
कि
ब्रह्यवर्चस
उपजाए
हैं
।
वर्चस जगाए है
कि
धरती
माँ
को
मुकित
दिलाए
है।
असुरों का कर
दमन, कल्कि अवतार
कहाए
हैं
।
यदि चाहते हो
उनकी
कृपा, तो धम्र
का
पालन
करना
होगा
।
धर्म पालन करना
होगा
कि
सिद्धान्तों
पर
चलना
होगा
।
सिद्धान्तों को
मानना
होगा
कि
मानवीय
मूल्यों
को
महत्व
देना
होग।
मूल्यों का संरक्षण करना होगा, कि त्याग तपोमय जीवन जीना होगा ।
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