वैभवकीचिन्ताउन्हेंहोतीहै,जोश्रद्धाकामहत्वनहीेंजानते।आत्मअभिसिंचनतथाआगेबढ़तेरहनेकाएकहीउपायहै,र्इश्वरपरश्रद्धाऔरपुस्षार्थपरविश्वास।
-परमपूज्यगुरूदेव
जापान में एक संत इसुनू हुई हैं । कभी भोजन करतीं, कभी पंद्रह-पंद्रह दिन भूखी रह जातीं । शरीर पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता था । वे भगवान से पूछतीं- भगवन आज खाना खा लें, और उत्तर ‘हॉं’ में मिलता, तो वे खा लेतीं थी । इसी प्रकार एक दिन उसने कहा कि आज मेरे प्रभु बुला रहे हैं एवं इतना कह कर अंतिम भोजन किया, शाम को शरीर स्वेच्छा से छोड़ गई । यह है प्रभु समर्पित जीवन । यह सिद्ध महिला- संत भगवान के लिए जीती थीं और उनसे सीधा वार्तालाप करती थीं । हम उपवास करते हैं, तो गिन-गिन कर सतत् उसका हिसाब लगाते रहते हैं । वह हिसाब से परे थीं, इसलिए उन्हें भगवत् प्राप्ति हो गई ।
इस संसार में हमें प्राय: दूसरों पर भरोसा रहता है। भरोसा
न हो तो जीवन चलना ही कठिन हो जाएं । भरोसा का अंतनिर्हित तत्व विश्वास है। जरा सोचिए
कि उस व्यक्ति का जीवन कैसा कष्टमय जो किसी पर भी विश्वास नही
करता । अब प्रश्न है कि हमें सचमुच किसका का भरोसा करना चाहिए? वास्तव में भरोसा उसी का करना चाहिए जो हर हालत में भरोसेमंद हो
। कौन है ऐसा...? बस केवल एक और वह है भगवान । इस विश्वास
का आधार प्रामाणिक ग्रंथ है जिनमें ऐसी अनेक घटनाओं का वर्णन है जहां भगवान ने अपने
पर भरोसा रखने वाले भक्तों को एक नही अनेक विषम परिस्थितियों से उबारा है, उनके कष्टों का निराकरण किया है । भगवान ने अपने अनेक अवतारों
में अपने श्रीमुख से प्रतिज्ञापूर्वक कहा है कि मैं
अपने भक्तों की रक्षा करता हूँ। यही नही अनेक लोगों ने समय-समय पर घटी अपनी आपबीती घटनाओं का वर्णन किया है कि जब वे भगवान
के भरोसे बडे़-बडे़ प्राणघातक संत्रासों से उबर गए ।
यह तो भगवान का स्वभाव है कि वे अपने भरोसे रहने वालों का त्राण करते रहते हैं ।
जो भगवान के भरोसे रहता है उसका यदि सारा संसार भी बैरी हो जाए तब भी उसका
कोई बाल बांका तक नही कर सकता । शर्त यही है कि उसका ईश्वर पर भरोसा पक्का होना
चाहिए । संसार को दु:खालय कहा गया है । वास्तव में यह दु:खालय तभी है जब व्यक्ति भगवान को भूल जाए, भगवान पर से भरोसा उठा ले,
किंतु जो व्यक्ति
सभी चर-अचर को भगवद्रूप या भगवद्व्यास देखते
हुए भगवान के भरोसे अपना जीवन आधारित कर देता है उसके लिए संसार सुखमय बन जाता है ।
उसे पग-पग पर समाधान मिलता है, उसके दुख को निवारण होता रहता है और उसे निश्चितता की अनुभूति
होती रहती है। जो भगवान पर पूरा भरोसा रखता है उसमें इसी भरोसे के ही बल पर अदम्य साहस
का संचार होता रहता है, निर्भयता आ जाती है, शकाएं समाप्त हो जाती हैं,
मुश्किल परिस्थितियों
में भी वह अविचलित रहता है । इसके विपरित जो व्यक्ति सांसारिक व्यक्तियों पर, परिस्थितियों पर, धन पर और अपनी बुद्धि पर भरोसा
रखता है उसे समय-समय पर लोगों के विश्वासघात का थपेड़ा
लगता है ।
डा. गोपालजी मिश्र
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