भारत के स्वाधीनता
संग्राम के एक सुदृढ़ऋ स्तम्भ श्री जमनालाल जी बजाज की पत्नी का नाम जानकी देवी था । जन्म से वे मारवाड़ी
घराने की एक अनपढ, गहनों से लदी, परदे में रहने वाली, छुआछूत की भावना से ग्रस्त वालिका थी, पर दैव ने उन्हें जमनालाल बजाज की वधू बना दिया । जमना लाल जी आदेश पर उसने गहने त्यागे, घूँघट हटाया और उनके हर कार्य की साथी बन गई । इसके बाद जानकी देवी ने मारवाड़ी समाज से पर्दा-प्रथा हटाने का पूरा आन्दोलन ही आरम्भ कर दिया । उसने स्थान-स्थान पर महिला मण्डल बनाए और उन्हें नारी जागरण के साथ जोड़ा । यह सारा शिक्षण उन्हें साबर मती आश्रम में रहकर मिला था । उनके द्वारा किया गया एक महत्वपूर्ण कार्य है प्यासे ग्रामीणों के लिए कूप-निर्माण । वे बहनों से कहती- सौ ताले की जगह हम दस तोले के आभूषण पहन लेंगी, लेकिन कुँआ बनायेंगी। इससे बड़ा पुण्य का कार्य कोई नहीं ।
विनोवा के साथ मिलकर उनने कूपदान से संकल्प कराए, हजारों तोला सोना एकव कर कुएँ खुदवाएँ, जिससे सबको पानी मिल सका । एक नारी के द्वारा क्या किया जा सकता है, इसका प्रमाण है - जानकी देवी बजाज ।
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