समस्या
- महत्वपूर्ण
सफलताओं
की
प्राप्ति
में
इच्छाशक्ति
किस
प्रकार
कार्य
करती
है?
समाधान
- इस
संसार
में
जिस
किसी
ने
जो
कुछ
प्राप्त
किया, वह प्रबल
इच्छाशक्ति
के
आधार
पर
प्राप्त
किया
है
।
मनुष्य
जिस
प्रकार
की
इच्छा
करता
है, वैसी ही
परिस्थितियाँ
उसके
निकट
एकत्रित
होने
लगती
हैं
।
इच्छा
एक
प्रकार
की
चुंबकीय
शक्ति
है, जिसके आकषर्ण
से
अनुकूल
परिस्थितियाँ
खिंची
चली
आती
है
।
जहाँ
इच्छा
नहीं, वहाँ कितने
ही
अनुकूल
साधन
मौजूद
हों, पर महत्वपूर्ण
सफलता
प्राप्त
नहीं
होती
।
मन
में
जो
इच्छा
प्रधान
रूप
में
काम
करती
है, उसे पूरा
करने
के
लिए
शरीर
की
समस्त
शक्तियाँ
काम
करने
लगती
हैं
।
निर्णय
शक्ति, निरीक्षण शक्ति, अन्वेषण शक्ति
आकषर्ण
शक्ति, चिंता शक्ति, कल्पना शक्ति
आदि
मस्तिष्क
की
अनेक
शक्तियाँ
उसी
दिशा
में
अपना
प्रयत्न
आरंभ
कर
देती
हैं
।
यह
शक्तियाँ
जब
सुप्त
अवस्था
में
पड़ी
होती
हैं
यहा
विभिन्न
दिशाओं
में
बिखरी
रहती
हैं, मनुष्य की
स्थिति
अस्त-व्यस्त एवं
नगण्य
होती
है, परन्तु जब
वे
सब
शक्तियाँ
एक
ही
दिशा
में
काम
करना
प्रारम्भ
कर
देती
हैं
तो
एक
जीवित
चुंबक
पत्थर
को
कूडे-कचरे में
भी
फिराया
जाए
तो
धातुओं
के
जो
टुकड़े
इधर-उधर बिखर
रहे
होंगे, वे सब
उससे
चिपक
जाएँगे
।
इसी
प्रकार
विशिष्ट
आकांक्षाएँ
मन
में
धारण
किए
हुए
व्यक्ति
अपनी
आकषर्ण
शक्ति
से
उन
सब
तत्त्वों
को
ढूँढ़ता
और
प्राप्त
करता
रहता
है
जो
लघुकणों
के
रूप
में
जहाँ
तहाँ
बिखरे
पड़े
होते
हैं
और
अपने
अभीष्ट
लक्ष्य
की
और
द्रुतगति
से
बढ़ता
जाता
है
।
यह
उसकी
इच्छाशक्ति
का
ही
चमत्कार
होता
है
।
समस्या
- जन्म
कुंडली
के
आधार
पर
यह
कहा
जाता
है
कि
लड़की
मंगली
होती
तो
उसे
विधवा
बनना
पड़ेगा, लड़का मंगली
होगा
तो
उसे
विधुर
होने
का
त्रास
सहना
पड़ेगा
और
उपाय
यह
बताया
जाता
है
कि
मंगली
लड़के, लड़की का
ही
आपस
में
विवाह
किया
जाए
।
यदि
ऐसा
मेल
न
मिल
पाए
तो
क्या
करना
चाहिए?
समाधान
- मंगल
का
अर्थ
होता
है
- कल्याण, वह जहाँ
भी
रहेगा, बैठेगा कल्याण
करेगा, पर यह
कैसा
मंगल
जो
अपने
निवास
स्थान
का
ही
सफाया
करे
।
लड़की
की
कुण्डली
में
पति
के
स्थान
का
ही
सफाया
पति
का
सफाया
करे
।
लड़के
की
कुंडली
में
पत्नी
भाग
पर
बिराजे
तो
वधू
का
सफाया
करे
।
इसका
क्या
कारण
हो
सकता
है? यह गहरा
विचार
करने
पर
भी
कोई
वजह
मालूम
नहीं
पड़ती
।
बिना
छोड़े
तो
सांप
भी
नहीं
काटता, फिर मंगल
का
कोई
अपमान, नुकसान न
करने
पर
भी
ऐसा
अनर्थ
करेगा, यह समझ
से
बाहर
की
बात
है
।
इस
कुचक्र
में
कई
सुयोग्य
लड़की-लड़के उपयुक्त
जोड़ा
मिलने
से
वंचित
हो
जाते
हैं
।
मंगली
लड़की
को
न
मंगली
लड़का
मिल
पाता
है
और
न
लड़के
को
मंगली
लड़की
।
इस
खोजबीन
में
मुद्दतें
बीत
जाती
है
और
बहुतों
की
विवाह
योग्य
आयु
निकल
जाने
पर
कुँआरे
ही
रहना
पड़ता
है, इसमें बेसिर-पैर का
श्रम
जंजाल
ही
एकमात्र
कारण
है
।
इतनी
दूरी
पर
विद्यमान
मंगल
किसी
की
विवाह-शादी में
बाधक
बनने
के
लिए
किस
प्रकार
दौड़कर
पृथ्वी
तक
आ
सकता
है? इसे कुकल्पना
और
भ्रांत
धारणा
के
अतिरिक्त
और
क्या
कहा
जाए?
संसार
भर
में
अनेक
धर्म
संप्रदाय
हैं, कहीं-
कोई
जन्मपत्री
न
तो
बनाता
है
और
न
विवाह-शादी के
अवसर
पर
उन्हें
मिलाने
की
आवश्कयता
समझी
जाती
है
।
उनका
न
कोई
अनर्थ
होता
है
और
न
असमंजय
आड़े
आता
है, बुद्धिमानों की
मूर्खता
ही
ऐसे
निरर्थक
ताने-बाने बुनती
और
हैरानी
मोल
लेती
रहती
है
।
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