Tuesday, July 17, 2012

तनाव रहित जीवन


कभी-कभी हम दूसरे व्यक्ति की जर, जोरू और जमीन को देखकर तनाव पालने लगते हैं यह तनाव निराधार है क्योंकि जगत की सम्पत्ति जितनी अधिक बढ़ेगी, अभाव और तनाव भी उसी अनुपात में बढ़ेगा अधिक पाने से सुख नहीं बढ़ता वरन् झंझट, कष्ट और दु: ही बढ़ते हैं हम अभिमान में भले ही सोचें कि हमारे पास इतनी जमीन और मकान है परन्तु बैठने के लिए स्थान उतना ही काम आएगा जितने में हमारा स्थूल शरीर रह सकता है, खाएंगे भी उतना ही जितना सदा खाते है, पहनेंगे भी उतना ही जितना शरीर को ढकने के लिए चाहिए इसलिए हमारे पास जो कुछ है उसी में संतुष्ट रहने से सुख मिलेगा
दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास हमारे से भी कम है फिर भी वे आनन्द के साथ रह रहे हैं एक व्यक्ति भगवान को कोसता हुआ अति दुखी मन से चला जा रहा था क्योंकि उसके पास पांव में पहनने के लिए जूते नहीं थे कुछ दूरी चलने के बाद उसकी नजर एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जिसके पाव नहीं थे यह देखकर उसका दु: हल्का हो गया और वह ईश्वर को धन्यवाद देने लगा कि प्रभु ने उसे लंगड़ा-लूला तो नहीं बनाया
महापुरुषो का कथन है कि मानसिक शांति के लिए हम कभी किसी की आलोचना अथवा निन्दा नहीं करें और केवल अपने काम से काम रखें भगवान ने हमें दुनिया का थानेदार या जज नियुक्त नहीं किया है संसार को हमारी निगरानी की आवश्यकता नहीं है जगत में जो कुछ भी हो रहा है वह ईश्वर की इच्छा से ही हो रहा है - होई है वही जो राम रचि राखा भगवान संसार की हर घटना को तीनों कालों के संदर्भ में देखते हैं परनिन्दा परमपिता परमेश्वर की निन्दा के समान है क्योंकि ऐसा करके हम भगवान की इच्छा, बुद्धि, न्याय एवं विधान का ही विरोध करते हैं जिसका हमें कोई अधिकार नहीं है दूसरों को अपनी बात पर अड़ा रहने दीजिए संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो किसी की बात को सुनने तक को तैयार नहीं उनसे बहस करके अपनी ऊर्जा एवं समय को बर्बाद करना है कम बोलने से तनाव नहीं होता है बिना सोचे बोलने से अनर्थ हो सकता है महाभारत का महायुद्ध इसका ज्वलंत प्रमाण है द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा क्या कह दिया, पाण्डवों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पडा और कुरुवंश तो समूल नष्ट ही हो गया
तनाव रहित जीवन का एक सूत्र यह भी है कि हम किसी से कोई आशा या अपेक्षा नहीं रखें यहां तक की अपनी संतान से भी नहीं अपेक्षा विषाद की जननी है भगवान पर भरोसा रखें और अपनी मदद स्वयं करें - आशा एक राम की दूजी आस निराश दुर्दिनों से लड़ने का सबसे शक्तिशाली हथियार धैर्य है जिसने भी हमारा अपमान किया है, हम उसके प्रति मन में दुर्भावना नहीं रखें मान-अपमान भी प्रभु की इच्छा से होता है दु: पालने से हमारा ही नुकसान होता है, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप आदि मानसिक रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है बीती बातों को याद करना अपने सूखे हुए घावों को कुरेदने के समान है जहां तक हो सके अनावश्यक विवाद से बचने का प्रयास करना चाहिए चाहे बात का बेटे से, भाई  का भाई से अथवा व्यवसाय में साझीदार ने अनबन हो तो अपना हिस्सा कम लेकर भी शांति बनाये रखने में ही समझदारी है।
जहां तक हो सके, कर्ज लेने एवं कर्ज देने दोनों ही स्थितियों से बचना चाहिए क्योंकि इन दोनों से ही तनाव पैदा होता है लिया गया कर्ज चुकाना ही पड़ता है, चाहे इस जन्म में या अलगे जन्म में ऐसा विधि का विधान है कर्ज सुख की नींद नहीं सोने देता, अत: जहां देना भी मुसीबत मोल लेने के समान है कर्ज देने की अपेक्षा यदि हम उचित समझें तो सम्बन्धित व्यक्ति को आर्थिक सहायकता प्रदान कर सकते हैं शांति के लिए नि:स्वार्थ सेवा को अपनाएं वैराग्य का सहारा लें और व्यर्थ की कामनाओं पर नियंत्रण रखें भक्ति भावना के साथ दान की भी आदत डालनी चाहिए इससे केवल धन शुद्धि होती है अपितु लोभ-लालच की प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगता है यदि किसी ने अपनी कोई अमूल्य वस्तु धरोहर के रूप में हमें दी हैं तो उसे लौटाते हुए हमें किसी प्रकार का दु: विषाद या पछतावा नहीं होना चाहिए इसी प्रकार अपने किसी प्रियजन अथवा संतति की मृत्यु पर भी व्यथित होकर संतोष कर लेना चाहिए कि ईश्वर ने कुछ दिने के लिए उसे हमारे पास रखने के लिए दी थी और प्रभु ने अपनी वस्तु वापस ले ली है ऐसा सोचकर मन को शांत रखना चाहिए
एक संत के दो पुत्र थे दोनों एक दिन सड़क पर खेल रहे थे कि अचानक किसी वाहन की टक्कर से दोनों कि मृत्यु हो गई माता को जानकारी मिलने पर वह दोनों बच्चों के मृत शरीर अपने घर ले आई तत्पश्चात् उन्हें नहला-धुलाकर नये कपड़े पहनाकर पलंग पर सुला दिया और उनके ऊपर चादर डाल दी संत घर पर आते ही बच्चों के बारे में पूछले लगे पत्नी ने कहा - पहले खाना खा लें खाना खिलाते समय पत्नी ने संत से प्रश्न किया कि किसी ने उसे दो अमूल्य हीरे रखने को दिये थे, अब वह उन्हें वापस लेना चाहता है, मेरी लौटाने की इच्छा नहीं है, क्या करू? संत क्रोधित होकर बोले - हीरे फौरन लौटा दो, हमें लालच नहीं करना चाहिए इस पर पत्नी ने मृत बच्चों की ओर संकेत करते हुए संत को बताया कि भगवान ने ये दो हीरे हमें पुत्र रूप में 5 6 वर्ष के लिए दिए थे और आज उन्होंने उन हीरों को वापस ले लिया है संत शांत होकर पत्नी की सहनशीलता और ईश्वर परायणता पर बलिहारी हो गए

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