अगर
हम
किसी
को
उसकी
गलती
के
लिए
डांटते
हैं
या
दंडित
करते
हैं
तो
उसके
अच्छे
कार्यों
की
समय-समय पर
प्रशंसा
भी
करें
।
हम
अपने
बच्चों
में
गलत
धारणाओं
को
रोक
सकते
हैं, अगर हम
काम
के
पुरस्कार
के
अलावा
भी
उन्हें
हमेशा
कुछ
प्रेम
और
प्रशंसा
दें
।
उनके
व्यक्तिव
का
भी
कुछ
मूल्य
है
।
वे
सिर्फ
उसी
हद
तक
मूल्यवान
नहीं
है
जिस
हद
तक
वे
हमारी
अपेक्षाओं
को
पूरा
करते
हैं
या
हमारे
बनाए
नियमों
का
पालन
करते
हैं
।
एडब्ल्यू
बीवन
ने
मुझे
एक
मर्मस्पश्री
घटना
बताई
।
एक
छोटी
लड़की
बहुत
शैतानी
करती
थी
और
उसकी
मां
को
उसे
बहुत
डांटना
पड़ता
था
।
परन्तु
एक
दिन
छोटी
लड़की
ने
बहुत
ज्यादा
ध्यान
रखा
और
एक
भी
ऐसी
गलत
हरकत
नहीं
की
जिसकी
वजह
से
उसे
डांट
पड़े
।
उस
रात
जब
मां
ने
उसे
बिस्तर
पर
लिटाया
और
वह
सीढ़िया
उतरने
लगी
।
तभी
उसे
लड़की
के
सुबकने
की
आवाज
सुनाई
दी।
उसे
सुन
वह
ठिठक
गई
।
पीछे
मुडकर
उसने
अपनी
बेटी
को
तकिए
के
नीचे
सिर
छुपाकर
रोते
पाया
।
वह
उसके
पास
गई, तो सुबकते-सुबकते लड़की
ने
पूछा, क्या आज
मैं
बहुत
अच्छी
लड़की
नहीं
थी।
यह
सवाल
मां
के
सीने
में
चाकू
की
तरह
उतर
गया, क्योंकि जब
बच्ची
गलती
करती
थी
तो
उसे
सुधारने
में
तो
वह
बिलकुल
देर
नहीं
करती
थी
लेकिन
जब
उसने
अपना
व्यवहार
सुधारने
की
कोशिश
की
तो
उसने
इस
तरफ
कोई
ध्यान
ही
नहीं
दिया
और
बिना
तारीफ
का
एक
शब्द
कहे
उसे
बिस्तरे
पर
सुला
दिया
।
दरअसल
व्यावहारिक
जीवन
में
होना
यह
चाहिए
कि
अगर
हम
किसी
को
भी
उसकी
गलती
के
लिए
डांटते
हैं
या
दंडित
करते
हैं
तो
उसके
द्वारा
किए
गए
अच्छे
कार्यों
की
समय-समय पर
प्रशंसा
भी
करें
।
प्रशंसा
और
दंड
के
तालमेल
से
खासतौर
पर
बच्चों
पर
विपरीत
प्रभाव
नहीं
पड़ता
और
वह
इन्हें
गंभीरतापूर्वक
लेकर
सही
प्रतिक्रिया
व्यक्त
करता
है
अर्थात्
ऐसा
कोई
कार्य
नहीं
करता, जिससे उसे
दंडित
होना
पड़े
।
बच्चों के व्यवहार को नियंत्रित करने, उनसे मनचाहा कार्य करवाने के लिए बच्चों की छोटी-छोटी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर कह देना, उन्हें दोषी कहकर सारी घटना के लिए जिम्मेदार ठहराना बच्चों के विकास के लिए बहुत घातक होता है। जो लोग बच्चों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए इस तरह का व्यवहार करते हैं, वे वास्तव में इसके हानिकारक परिणामों के बारे में नही जानते। ऐसा करने से बच्चों में कर्इ तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे सामाजिक अलगाव, डरे व सहमे से रहना, आत्मकेंद्रित हो जाना, अनिद्रा, पहल न करना, चुपचाप बैठे रहना, अवसाद, आत्मसम्मान व आत्मविश्वास का अभाव होना। जब हम बच्चों की छोटी-छोटी गलतियों पर उन्हें दो ठहराते और भला-बुरा कह देते हैं तो धीरे-धीरे उनमें आत्मग्लानी की भावना पनपने लगती है। जो भविष्य में किसी जटिल समस्या का कारण बन सकती है।
बच्चों के व्यवहार को नियंत्रित करने, उनसे मनचाहा कार्य करवाने के लिए बच्चों की छोटी-छोटी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर कह देना, उन्हें दोषी कहकर सारी घटना के लिए जिम्मेदार ठहराना बच्चों के विकास के लिए बहुत घातक होता है। जो लोग बच्चों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए इस तरह का व्यवहार करते हैं, वे वास्तव में इसके हानिकारक परिणामों के बारे में नही जानते। ऐसा करने से बच्चों में कर्इ तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे सामाजिक अलगाव, डरे व सहमे से रहना, आत्मकेंद्रित हो जाना, अनिद्रा, पहल न करना, चुपचाप बैठे रहना, अवसाद, आत्मसम्मान व आत्मविश्वास का अभाव होना। जब हम बच्चों की छोटी-छोटी गलतियों पर उन्हें दो ठहराते और भला-बुरा कह देते हैं तो धीरे-धीरे उनमें आत्मग्लानी की भावना पनपने लगती है। जो भविष्य में किसी जटिल समस्या का कारण बन सकती है।
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