चिंतित
मुद्रा
में
बैठे
पिता
को
युवा
पुत्री
ने
टोका
- ßआप
कुछ
परेशान
से
लग
रहे
है?Þ
ßपरेशान तो नहीं, पर कुछ
सोच
जरूर
रहा
हूँ
।Þ
ßक्यों?Þ
ßयही कि अपनी कमई किसे
दूँ?Þ
ßकमाई और आपकी! आपने तो
अपने
पास
कुछ
रखा
ही
नहीं
जो
कुछ
था
सो
समाज
को
दे
दिया
।Þ
ßतो कमाई क्या
रुपयों-पैसों,
जमीन-जायदाद तक
ही
सीमित
है।
इसके
न
रहने
पर
भी
मेरे
पास
कुछ
है, जिसे मैं
अपनी
विरास
में
देना
चाहता
हूँ।Þ
वृद्ध
का
स्वर
शांत
था
।
ßतो दे दीजिए।Þ
ßकिसे?ß
ßमुझे! मैं
ही
अपनी
एकमात्र
बेटी
हूँ
।
आपकी
संपति
की
उतराधिकारिणी
।Þ
बेटी
भर
होने
से
कोई
उत्तराधिकारी
नहीं
बन
जाता
।
उसमें
संभालने
की
योग्यता
भी
चाहिए
।
योग्यता
जितनी
है, उससे अधिक
के
लिए
मन-प्राण से
प्रयास
करूँगी
।
तो
सुब
बेटी! सारे जीवन
मैंने
मानवीयता
के
लिए
दरद
कमाया
है।
उसके
लिए
सब
कुछ
होम
देने
की
कसक
कमाई
है
।
इस
सक्रियता
से
मुझे
लोगों
ने
अपना
हमदर्द
माना, प्रामाणिक समझा
है
।
यही
है
मेरी
कमाई, मेरा वैभव, मेरा सब
कुछ
ले
सकेगी
तू
।
पिता
का
स्वर
भीगा
था
।
हाँ
पिता
जी
ले
सकूँगी
।
पुत्री
ने
पिता
का
अंतर्मन
पढ़ते
हुए
कहा
।
फिर
तुझे
सब
ओर
से
मुंह
फेरकर
यहाँ
तक
कि
विवाह
की
झंझटों
से
उबरकर
‘मुक्ति सेना’ का काम
सँभालना
होगा
।
अपने
को
ऐसे
छायादार
वृक्ष
के
रूप
में
विकसित
करना
होगा, जिसकी शीतल
छाया
में
असंख्यों
जीवन
के
तापों
से
त्राण
पा
सकें
।
यही
मेरी
विरासत
है
।
आपकी
विरासत
पाकर
कृतार्थ
हुई
।
अपना
समूचा
जीवन
आपके
आदर्शों
के
लिए
खपा
दूँगी
।
ये
स्वर
थे
इवेजलीन
बूथ
के
जो
अपने
पिता
मुक्ति
सेना
के
संस्थापक
विलियम
बूथ
की
अनूठी
विरासत
की
अधिकारिणी
बनी
।
इसके
लिए
उन्होंने
पर्याप्त
ग्रहणशीलता
अर्जित
की
थी
।
उसका
अंतराल
सदाचार, सेवापरायण,
स्वाभिमान
व
लोकसेवा
रूपी
धातुओं
के
मिश्रण
से
ही
गढ़ा
गया
था
।
मानव
की
दीनता, पीड़ा,
कराह
को
देखकर
इससे
आँखें
फेर
लेना
उसके
बूते
की
बात
नहीं
थी।
अपनी
इसी
भावना
व
कर्मठता
के
संयुक्त
प्रभाव
से
वह
लोक-जीवन के
घावों
पर
मरहम
यथासमय
लगाने
वाले
संगठन
मुक्ति
सेना
की
प्रधान
बनी
।
साथ
ही
अपनी
समूची
शक्ति
प्रतिभा, लगन और
उत्साह
के
साथ
मानव
मुक्ति
के
इस
रचनात्मक
अभियान
में
जुट
गई
।
जिन दिनों वह मुक्ति सेना की कप्तान बनी थी । इस रचनात्मक अभियान के सक्रिय सहयोगी मुट्ठी भर लोग थे । उसने घूम-घूमकर देश की युवा पीढ़ि का ध्यान आकर्षित किया । जगह-जगह जाती और प्रत्येक से कहती, क्या तुम अपने को मनुष्य समझते हो? यदि हाँ तो मनुष्य को इस तरह बिलखते, दुराचार, दुर्गुणों, तरह-तरह के दोषों से घिरे अपने ही बंधुओं को तड़पते, छटपटाते देखकर व्याकुलता क्यों नहीं उत्पन्न होती? यह सब देखकर भी जिसमें पीड़ा और पतन से जूझने की हुँकार नहीं उठती, वह किसी भी कीमत पर मनुष्य नहीं । वह या तो हिंसक पशु है या मुर्दा । इवेजलीन का यह कथन सुनकर युवा पीढ़ी का रक्त गरम हो उठा । उसकी इस पुकार पर मुक्ति सैनिकों की संख्या कुछ ही वर्षो में तीस लाख तक पहुँची । इतने बड़े विशाल संगठन का नेतृत्व करना, उन्हें नियंत्रण में रखना, उन्हें दिशा देना कोई आसान बात न थी । इस जटिल समीकरण को युवा ने अपने व्यक्तित्व के माध्यम से आसानी से हल कर लिया । यद्यपि अनेकों कठिनाइयाँ आई । धनपतियों ने निरुत्साहित किया, सहयोग की जगह दुत्कार मिली । वे समझते थे कि यह दल उन्हें बरबाद करने के लिए गठित किया गया है । इस वर्ग द्वारा खड़ी की गई बाधाओं को इवा अपने विश्वस्त साथियों के साथ पार करती चली गई ।
धीरे-धीरे लोग
इसके
उद्देश्य
व
कार्यक्रमों
को
समझने
लगे।
मुक्ति
सेना
के
सदस्य
दुखी
व
पीड़ित
मानवता
को
अपना
आराध्य
तो
मानते
ही
थे, पतित और
गिरे
लोग
भी
उनके
अपने
सेवा-क्षेत्र में
थे।
उन
दिनों
कैदियों
की
बड़ी
बुरी
दुर्दशा
में
रहना
पड़ता
था
।
जानवरों
को
रहने
वाली
कोठरियों
से
भी
छोटे
तंग
और
गंदे
कमरों
में
अपराधी
रखे
जाते
।
इवा
ने
लागों
को
समझाना
शुरू
किया
कि
आखिर
वे
भी
मनुष्य
है
।
परिस्थितियों
तथा
मानवीय
कमजोरियों
के
वशीभूत
हो
आज
अपने
स्तर
से
गिर
गए
हैं
।
इसका
मतलब
यह
नहीं
है
कि
उनके
साथ
जानवरों
से
भी
बदतर
व्यवहार
किया
जाए
।
मनुष्य
के
भीतर
रहने
वाली
सद्गुणों
की
मौलिकता
अभी
भी
उनमें
है
।
यदि
उसे
सद्व्यवहार
व
प्रेमपूर्ण
बरताव
से
जगाया
जा
सका
तो
वे
एक
अच्छे
नागरिक
बन
सकते
हैं
।
यह
मान्यता
सभी
को
अच्छी
लगी
और
ब्राइटर
डे
लीग
नामक
संस्था
के
माध्यम
से
उन्होंने
कारगृहों
की
व्यवसथा
पलटने
में
सफलता
हासिल
कर
ली
।
इसी
प्रकार
अवांछित
मातृत्व
की
एक
जटिल
समस्या
थी, आधुनिक सभ्यता
की
देन
स्वरूप
इन
भटकी
युवतियों
को
न
तो
समाज
में
आदर
मिल
पाता
है
और
न
घर
में
।
यही
बात
उनकी
संतानों
पर
लागू
होती।
अपना
सम्मान
प्रतिष्ठा
व
भविष्य
खो
चुकने
वाली
इन
महिलाओं
को
इस
मार्ग
से
लौट
पड़ने
का कोई असवर
न
मिलता
और
वे
उसी
अंधी
सड़क
पर
दौड़
जाती
।
इससे
समाज
को
अनैतिकता
व
कामुकता
के
ज्वार
से
हानि
उठानी
पड़ती
।
उन्होंने
इस
समस्या
और
बच्चों
के
लिए
शरणगृह
स्थापित
करने
वाली
एक
संस्था
‘आउट ऑव
लव
लीग’ खोली ।
इसके
द्वारा
उन्हें
सम्मानपूर्ण
जिन्दगी
बिताने
के
लिए
मार्गदर्शन
व
सहयोग
दिया
जाता
।
विकसित
सभ्यता
के
साथ
इसके
अनेक
दुष्प्रभाव
भी
समाज
में
फैलते
जा
रहे
है
।
तनाव, अभाव,
पारिवारिक
विग्रह, गृहकलह आदि
अनेक
कारणों
से
जीवन
की
शतरंज
में
बाजी
हारे
लोगों
के
सम्मुख
अपनी
जिंदगी
समाप्त
कर
लेने
के
अलावा कोई चारा
नहीं
रहता
।
परिणामस्वरूप
आत्महत्या
करने
वालों
की
संख्या
को
बढ़ना
स्वाभाविक
ही
था
।
आत्महत्या
का
एकमात्र
कारण
मनोबल
का
अभाव
कहा
जा
सकता
है
।
इवा
बूथ
ने
ऐसे
लोगों
के
लिए
‘सुसाइड ब्यूरो’ की स्थापना
की
।
इसके
द्वारा
ऐसे
व्यक्तियों
को
भगवान
पर
विश्वास
करने
की
प्रेरणा
दी
जाती
।
सही
माने
में
सभी
परिस्थितियों
में
यही
मनुष्य
को
सबल
दे
सकता
है
।
इस
आस्था
के
अनेकों
को
आत्मा
हिंसा
से
बचाकर
जीवन
की
मधुरता
का
रसास्वादन
कराया
।
अपने
तीस
लाख
साथी-सहयोगियों को
साथ
रखकर
इवेजलीन
बूथ
ने
मानवता
के
स्वरूप
को
उज्ज्वल, प्रखर बनाने
वाली
ऐसी
अनेक
गतिविधियाँ चलाई ।
जिससे
समाज
में
सत्प्रवृत्तियाँ
मुस्करार्इ
और
दुष्प्रवृत्तियाँ मुरझाई ।
इन
सफलताओं
ने
मुक्ति
सेना
को
देशव्यापी
से
विश्वव्यापी
बना
दिया
।
इंगलैंड, अमेरिका,
नार्वे, फ्रांस,
डेनमार्क, स्वीडन आदि
देशों
में
इसकी
शाखाएँ
कार्यरत हुई ।
मुक्ति
सेना
अपने
सदस्यों
के
सहयोग
व
अनुदान
से
विश्व
के
किसी
भी
कोने
के
सहयोग
व
अनुदान
से
विश्व
के
किसी
भी
कोने
में
त्रस्त
मानवता
के
लिए
योगदान
ले
हाजिर
होती
।
महायुद्ध
में
जापान
और
जर्मनी
से
लेकर
भारत
के
अकाल
तक
मुक्ति
सेना
के
सदस्यों
द्वारा
उत्साह
व
सेवाभावना
का
परिचय
देना
इवेजलीन
बूथ
की
भावनाशीलता
कर्मठता
के
प्रभाव
का
परिचायक
था
।
वस्तुत: बूथ ने
सही
मायने
में
पिता
की
दी हुई विरासत
को
सार्थक
बनाया
।
पिछड़ों
को
उठाना, समस्त मानव
जाति
के
उत्थान
के
लिए
आत्मशील
होना
ही
तो
अध्यात्म
है
।
यदि
ऐसी
अनेक
बूथ
आज
सक्रिय
हो
जाएँ
तो
‘इक्कीसवीं सदी-नारी सदी’ का उद्देश्य
निश्चित
ही
सार्थक
होगा
।
स्वावलंबन
कर्मठता
के
द्वारा
इसमें
प्राण-प्रतिष्ठा की
जा
सके
तो
इसके
द्वारा
अनेकों
का
उद्धार
संभव
है
।
भारत
के
गाँवों-शहरों में
निवास
करने
वाली
महिलाओं
के
समक्ष
इवेजलीन
बूथ
का
रास्ता
खुला
है।
यदि
उनमें
अपने
को
समझदारों
की
श्रेणी
में
गिनने
वाली
खुद
विकसित
होकर
दूसरों
का
विकसित
करने
का
सूत्र
समझ
सकें
तो
नारी
की
महानता
स्थापित
हुए
बिना
न
रहे
।
इस
रहस्य
को
समझें
और
अपनाएँ
।
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