Wednesday, July 18, 2012

मन एवं मनुष्याणां बन्धन योक्ष कारणयो


गीता में कहा गया है - ßमन ही मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण है Þ व्यक्ति का मन उगर भव बन्धनों अर्थात् काम क्रोध मद-लोभ, दभ-दुर्भाव, दोष आदि पर विजय प्राप्त कर लेता है तो वही मोक्ष की स्थिति होती है तभी बन्धनों से व्यक्ति छुटकारा पा जाता है हमारा मन ही बन्धन का कारण है क्योंकि हमारे मन में दूषित विचारों का बाहुल्य हो तो शरीर भी अवांछनीय कार्यों को करेगा और फलस्वरूप दु: भोगने पड़ेंगे शरीर मन की प्रेरणा से ही कार्य करता है
मनुष्य सशक्त मन के द्वारा शरीर से हर कठिनाई का सामना कर लेता है मन में जिस तरह के विचार उठते हैं शरीर पर उनका ही प्रभाव पड़त है मन रोगी है, तो शरीर भी रोगी हो जाता है भावी संकट की कल्पना मात्र से मनुष्य इतना भयभीत हो जाता है कि उसकी सारी शक्तिया शिथिल पड़ जाती है, यह सब उसके मन की दुर्बलता का द्योतक है मन की दुर्बलता ही व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य एवं सुख का नाश करती हैं विपत्ति जितनी ज्याद भयानक नहीं होती उससे अधिक मन की अस्तव्यस्तता हमें दु:खी एवं असन्तुष्ट बना देती है। मनुष्य जो कुछ भी अच्छा बुरा कार्य करता है, वह सब सूक्ष्म शरीर की अकथनीय एवं अज्ञात शक्ति से प्रेरित होकर ही करता है
मन में उत्पन्न शक्ति से ही शरीर कार्य करता है शरीर में कभी कोई कष्ट होता भी है, किन्तु मन उत्साह एवं प्रसन्नता से पूरित होता है, तब शारीरिक कष्ट भी थोड़ी देर के लिए विस्मृत हो जाते हैं हम उस अमोध शक्ति का नाश करते जा रहे हैं, जो दु:खों, रोगों एवं विपत्तियों में भी धैर्यपूर्वक सामना करने की हमें प्रेरणा देती है यह शक्ति जब मन से प्रस्फुटित होती है, तभी शरीर उसके सहारे कार्य कर दिखाता है व्यक्ति चिंतित रहता है और इसका असर उसके शरीर पर पड़ता है मन खिन्न है तो शरीर पर उसका शरीर पर असर अवश्य पड़ेगा आवश्यकता इस बात की है कि शरीर और मन के अविच्छिन्न संबंध के विषय में ध्यान रखते हुए मन को शुद्ध एवं सन्तुलित रखें तभी हम स्वस्थ रह सकेंगे और मन की दिव्य शक्ति के सहारे प्रगतिशील बन सकेंगे

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