Tuesday, July 17, 2012

जरा विचारों पर विचार करें ।


एक लाख 86 हजार मील प्रति सैकेण्ड-स्थूल जगत में सबसे तेज मानी जाने वाली प्रकाश किरणों की गति! अपने मन में विचार करके देखिए - आपकी गाड़ी अगर 80-120 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार पर दौड़कर, इस गति से दौड़ने लगे तो? तो आप एक सैकेण्ड में कहाँ से कहाँ पहुँच जाएँगे, इसका अनुमान लगा पाना भी मुश्किल है लेकिन जरा ठहरिए! जिस मन में आपने अभी विचार किया, जानते हैं उस मन में उठने वाले विचारों की गति कितनी है? इसका आँकडों में अनुमान लगाना तो मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव है मन के विचारों पर सवार होकर, आप पल भर में एक लोक से दूसरे लोक की सैर कर सकते हैं ये मन के विचार ही हैं, जो हमें एक क्षण में श्रेष्ठता की ऊँचाई तक पहुँचा देते हैं, तो दूसरे ही पल पतन की गहराई में लुढ़का देते हैं मिल्टन के शब्दों में कहें तो - मन के विचार मिनटों में स्वर्ग को नरक और नरक को स्वर्ग में बदल सकते हैं अंतर केवल दिशा का है
विचार यदि नकारात्मकता का संग कर लें, तो हमारे लिए घातक बन जाते हैं वहीं विचार अगर सकारात्मकता का हाथ थाम लें, तो हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होते हैं इस बात को मेडिकल साइंस भी प्रमाणित करती है विचारों के अनुरूप - दो तरह के प्रभाव होते हैं - प्लेसेबो और नोसेबो प्लेसेबो के अनुसार यदि एक व्यक्ति पूरी तरह से यह मान लें कि डॉक्टर ने जो औषधि उसे दी है, वह उससे स्वस्थ हो जाएगा तो ऐसे में देख गया है कि एक व्यक्ति सचमुच उस औषधि के स्थान पर उसे टॉफी की गोली क्यों दी हो! वही, नोसेबो में मरीज उतम से उतम दवाई से भी ठीक नहीं हो पाता  क्योंकि , वह अपने मन में यह विचार पक्का कर लेता है कि वह किसी भी दवाई से स्वस्थ नहीं हो सकता
कहने का अभिप्राय, सारा खेल मन के विचारों का है विचारों में छिपी अथाह शक्ति का है जो हमारे भीतर होने वाली शारीरिक एवं रासायनिक प्रक्रियाओं तक को बदलने का सामथर्य रखती है हार्वर्ड युनिवर्सिटी में एक अनुसंधान किया गया। अनुसंधान के लिए चुने गए व्यक्तियों के दो ग्रुप बनाए गए - ग्रुप और ग्रुप ग्रुप के लोगों से कहा गया कि उन्हें लाल रंग की दवाई दी जाएगी, जिससे उन्हें बेहोशी का सा अनुभव होगा ग्रुप को बताया गया कि उन्हें नीले रंग की दवाई मिलेगी, जिससे उनके मूड में उछाल आएगा लेकिन, अनुसंधानकर्ताओं ने लोगों को बिना बताए, रंग वही रखकर दवाइयाँ आपस में बदल दी जो परिणाम सामने आए, वो हैरान कर देने वाले थे क्योंकि दोनों ग्रुप के लोगों में जो रासायनिक प्रक्रियाएँ देखी गई , वो दवाइयों के अनुरूप होकर उनके विचारों के अनुरूप थी जो उनके मन में दवाई देने से पहले बिठाए गए थे
विचारों की शक्ति को दर्शाते हुए आज ऐसे कुछ उपकरण भी बना लिए गए हैं, जो मन द्वारा संचालित होते हैं स्पेन की जारागोआ युनिवर्सिटी ने ऐसी व्हीलचेर बनाई है, जिसका स्टीयरिंग व्हील विचार-शक्ति से घूमता है इसी प्रकार अपंग व्यकितयों के लिए कृत्रिम बाजुएँ बनाई गई है, जिनका संचालन विचारों से किया जा सकता है
ये सभी उदाहरण इस बात की पुष्टि करते हैं कि हमारे मन में उठने वाले विचार भले ही दिखते हो, किन्तु उनके प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता चलिए, इसी बात को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझते हैं - जब भी हमारे मन में कोई विचार जन्म लेता है, तो हमारे मस्तिष्क की नसों में एक स्पंदन पैदा होता है यह स्पंदन हमारे अंदर होने वाली भौतिक और रासायनिक प्रक्रियाओं को अंजाम देता है साथ ही साथ, इन विचारों से हमारे सम्पूर्ण शरीर की कोशिकाएँ भी प्रभावित होती हैं यदि विचार सकारात्मक हैं, तो ये कोशिकाएं पोषक तरंगों का अनुभव करती हैं सशक्त बनती हैं लेकिन विचार अगर नकारात्मक हैं, तो कोशिकाओं को बहुत हानि पहुँचती है और वे कमजोर होती हैं अत: सकारात्मक विचारों का चयन करना बहुत जरूरी है
पर विडम्बना है कि आज के समय में हममें से प्रत्येक व्यक्ति चाहते हुए भी अपने भीतर नकारात्मक विचारों को ही अधिक संख्या में पाता है स्थिति तो ऐसी है, मानो हमारे मन-मस्तिष्क के हर कोने में नकारात्मक विचारों ने अपना डेरा जमाया हो अच्छे शुभ विचार अंदर प्रवेश करना भी चाहें, तो उन्हें कोई खाली स्थान मिल ही नहीं पाता उधर, नकारात्मक विचार निकलने के बजाय, हमारे अंदर और अधिक गहराई तक पैठते चले जाते हैं ऐसा क्यों होता है? इसे हम एक उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं मान लीजिए आपने अपनी कलाई पर पानी की एक बूंद रखीं कलाई को हल्का- सा हिलाते ही, वह बूंद कलाई पर एक रास्ता बनाते हुए नीचे गिर जाएगी अब उसी स्थान पर एक और पानी की बूँद रखें ऐसा करने पर, इस बात की संभावना बहुत अधिक होगी कि वह बूँद भी पहली बूँद द्वारा लिए गए रास्ते का ही अनुसरण करे अगली प्रत्येक बूंद के लिए पहले वाला रास्ता अपनाने की संभावना बढ़ती चली जाएगी
ठीक यही स्थिति विचारों को लेकिर हमारे मस्तिष्क में भी होती है। यदि हम एक नकारात्मक विचार को अपने भीतर स्थान देते हैं, तो वह न्यूरॉन्स द्वारा अपना मार्ग बनाता है तथा हम पर अपना प्रभाव डालता है जैसे-जैसे और नकारात्मक विचार आते हैं, यह मार्ग पक्का होता चला जाता है इस कारण से हमारा मस्तिष्क ज्यादा आसानी और शीघ्रता से बाहर से आने वाले गलत/नकारात्मक विचारों को अपने भीतर समेटता चला जाता है। याने, स्थिति बनने की बजाय, धीरे-धीरे और बिगड़ती चली जाती है विचारों के साथ-साथ हमारा दृष्टिकोण नकारात्मक होता चला जाता है हमें हर चीज में हर व्यक्ति में नीरसता और नकारात्मकता ही दिखाई देती है
अत: यदि हम अपने जीवन को नीरसता के चंगुल से निकालकर उसमें खुशी के रंग भरना चाहते हैं.... उसे खिले-खिले फूलों की तरह सच्ची मुस्कान से सजाना चाहते हैं, तो सबसे पहले भीतर के विचारों को बदलना होगा  जिस तरह सी.डी. प्लेयर में हम जैसी सी.डी. डालते हैं स्क्रीन पर हमें वैसे ही दृश्य देखते हैं दृश्यों को बदलने के लिए आवश्कयता होती है खराब/गलत सी.डी. निकालने की और सही सी.डी. डालने की ठीक इसी तरह, अपने जीवन के दृश्यों को बदलने के लिए अर्थात् जिंदगी के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलने के लिए - मन के सी.डी. प्लेयर में से खराब विचारों को सी.डी. हटाकर शुभ विचारों की सी.डी. डालने की जरूरत हैं नेपोलियन का फलसफा था - मैं अपने मन की उन्हीं खिड़कियों को खुला रखता हूँ, जिनसे फायदेमंद विचार अंदर आएँ बाकी खिड़कियों को मैं बंद कर देता हूँ। और रात को जब मेरे सोने का समय होता है, तो मैं मन की सभी खिड़कियाँ बंद कर चैन से सो जाता हूँ
लेकिन यह भी सच्चाई है कि नकारात्मक विचारों को रोकना इतना भी सहज नहीं हैं ये विचार बार-बार हम पर प्रहार करते हैं जैसे किसी साँप को मारने के लिए, यदि उस पर लाठी से वार किया जाए तो कुछेक प्रहारों के बाद वह बिल्कुल स्थिर हो जाता है उसमें कोई  हलचल नहीं होती देखने पर आभास होता है, जैसे वह साँप मर गया लेकिन, अगले ही क्षण वह दोबारा अपना फन उठाता है और डंक मारने की कोशिश करता है
अत: बाहरी प्रयासों और प्रहारों से स्थायी परिणाम हाथ नहीं लगेंगे। जरूरत है मन से भी ज्यादा शक्तिशाली सत्ता का संग करने की, जो इन नकारात्मक विचारों कपे पूर्णत: समाप्त कर सके और मन से भी ज्यादा शक्ति अगर किसी में हैं तो वह है - जागृत आत्मा ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करने के बाद जब एक व्यक्ति आत्मा के दिव्य प्रकाश का ध्यान करता है, तो उसके मन में रहने वाले नकारात्मक विचार छंटते चले जाते हैं क्योंकि यह दिव्य प्रकाश एक मैन्टल डिटैक्टर (मानसिक चैक) का काम करता है आप शायद जानते होंगे कि समुद्र के किनारों पर मैटल डिटैक्टर (धातु से बना एक उपकरण) का प्रयोग होता है इसकी मदद से जितना भी कूड़ा-कर्कट वहाँ जहा होता है, उसे अलग करके वहाँ से हटा दिया जाता है ऐसे ही, आत्मा का दिव्य प्रकाश एक ऐसा मैन्टल डिटैक्टर है, जो दिमाग में भरे कूडे-कर्कट को छांटकर बाहर फेंक देता है इसलिए साधक नकारात्मक विचारों से मुक्त हो, सुन्दर सकारात्मक विचारों की शक्ति से उद्धार कल्याण के मार्ग पर बढ़ पाता है

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