सच्चे आनन्द का
आधार
अन्त:करण में
ही
है
।
अंतकरण इश्वर की
वाणी
है
।
जैसे
चेहरा
तभी
दिखायी
देता
है
जब
दर्पण
साफ
और
स्थित
हो
उसी
तरह
शुद्ध
अन्त:करण में भगवान के
दर्शन
होते
हैं
।
अगर
मन
और
बुद्धि
में
आध्यात्मिक
संस्कार
ठीक
से
आ
जाते
हैं
तो इश्वर से
साक्षात्कार
दूर
नहीं
।
दु:खों की
निवृत्ति
ज्ञान
से
होती
है
और
ज्ञान
से
अज्ञान
का
निवारण
होता
है
।
ज्ञान
से
ही
परम
सिद्धि
होती
है
और
किसी
उपाय
से
नहीं
।
भगवान
राम
ने
वशिष्ट जी से
पूछा
कि
सांसारिक
क्लेशों
से
मुक्ति
का
क्या
उपाय
है? महर्षि ने
उत्तर
दिया
कि
यह
बिना
ज्ञान
प्राप्ति
के
सम्भव
नहीं
है
।
इसी
क्रम
में
उन्होंने
यह
भी
कहा
कि
जिसने
जानने
योग्य
को
जान
लिया
है
और
विवेक द्रष्टि प्राप्त
कर
ली
है
उसके
लिए
दु:ख उसी प्रकार
बाधक
नहीं
होते
जिस
प्रकार वर्षा से
भीगे
जंगल
अग्नि
शिखा
जला
नहीं
पाती
।
केवल कतिपय जानकारियां
ही
ज्ञान
नहीं
है
।
सच्चा
ज्ञान
वह
है
जिसे
पाकर मनुष्य आत्मा परमात्मा
का
साक्षात्कार
कर
सकें, अपने साथ
इस
संसार
को
पहचान
सके
और
यह
तभी
संभव
हो
सकेगा
जब
जीवात्मा
को
, शरीर को
रथ, बुद्धि को
सारथी
मान
लिया
जाएगा
और
मन
पर
लगाम
लगा
दिया
जाएगा
।
इस
संदर्भ
में
मानस
का
‘विजय-रथ’ रूपक भी
उल्लेखनीय
है
।
विभीष्ण को
श्रीराम
की
विजय
पर
सन्देह
इस
प्रकार
होता
है
।
भगवान राम उत्तर
देते
हैं
कि
ऐसा
धर्ममय
रथ
जिसके
पास
होगा
वह
सर्वथा
अजेय
है
।
संसार
उसका
कुछ
नहीं
बिगाड
सकता
।
इस
तथ्य
को
जिसने
अपने
आचरण
का
विष्य बना
लिया
है, सच्चे अर्थों
में
वही
ज्ञानी
है
।
1- रावनु
रथी
विरथ
रघुवीरा
।
देखी
विभीष्न भयऊ
अधीरा
।।
अधिक प्रीति
मन
भा
संदेहा
।
बंदि
चरन
कह
सतिह
सनेहा
।।
2- नाथ
न
रथ
नहि
तन
पद
त्राना
।
केहि
विधि
जितब
वीर
बलवाना।।
सुनहु सखा
कह
कृपानिधाना
।
जेहिं
जय
होइ
सो
स्यंदन
आना।।
3- सौरज
धीरज
तेहि
रथ
चाका
।
सत्य, शील,
दृढ़, ध्वजा पताका
।।
बल विवेक
दम
परहित
धोरे
।
धमा
कृपा
समता
रजु
जोरे
।।
4- इस
भजनु
सारथी
सुजाना
।
बिरति
चर्म
संतोष कृपाना ।।
दान परसु
बुधि
सक्ति
प्रचण्डा
।
बर
बिग्यान
कठिन
कोदंडा
।।
5- अमल
अचल
मन
त्रोन
समाना
।
सम
जम
नियम
सिलीमुख
नाना
।।
कवच अभेद
विप्र
गुरु
पूजा
।
एहि
सम
विजय
उपाय
न
दूजां
।।
6- सखा
धर्ममय
अरू
रथ
जाके
।
जीतन
कहँ
न
कतँहु
रिपु
ताके
।।
महाअजय संसार
रिपु
जीति
सकड़
सो
बीर
।
जाके अस
रथ
होइ
दृढ़
सुनहु
सखा
मतिधोर
।।
सुनि प्रभु
वचन
विभीष्न हरष् गहे
पद
कंज
।
एहि मिस
मोहि
उपदेसेहु
राम
कृपा
सुख
पुंज
।।
वही मुक्ति का
अधिकारी
है
इसी
के
बल
पर
संसार
सागर
के
पार
किया
जा
सकता
है
।
जीवन
में
ज्ञान
में
उपयोगिता
शरीर
को
भोजन
के
समान
है
।
तिन्हहि ग्यान उपदेसा
रावन
।
आपुन
मंद
कथा
सुभ
पावन
।
ßपर उपदेस
कुसल
बहुतेरे
।
जे
आचरहिं
ते
नर
न
घनेरे
।।Þ
ßसखा धर्म मय
अस
रथ
जाके
।
जीतन
कहँ
न
कतहुँ
रिपु
ताके।।Þ
हे मित्र जो
धर्म
के
इस
रथ
पर
सवार
है
उसे
कोइ
शत्रु
नहीं
जीत
सकता
।
महाअजय संसार रिपु, जीति सकइ
सो
वीर
।
जाके अरू रथ
होइ
दृढ, सुबहु सखा
मतिधीर
।।
हे मित्र सुनों
जो
भी
धीर
पुरुष् (धैर्यवान) धर्म के
इस
रथ
पर
दृढ़तापूर्वक
सवार
हो
जाता
है
वह
इस
संसार
रूपी
दुर्गम
शत्रु
पर
भी
विजय
प्राप्त
कर
लेता
है
जो
कि
अजेय
समझा
जाता
है
।
अर्थात् इस संसार
से
सभी
परास्त
हो
जाते
हैं
रोग, शोक,
कष्ट,
कलह, निराशा,
भय, उन्माद रूपी
भाँति-भाँति के
शत्रु
मानव
के
त्रास
देते
हैं
।
यदि
व्यक्ति
धैर्य
धारण
करते
हुए
धर्म
के
रथ
पर
दृढ़
पूर्वक
सवार
रहे
तो
वह
सभी
शत्रुओं
पर
विजय
पा
लेता
है
।
ßरावण
धन
के
रथ
पर
सवार
है
।
श्री राम धर्म के रथ पर सवार है ।Þ
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