किसी ने कहा
है
जब
और
सहारे
छिन
जाते, न किनारा मिलता
है
।
तूफान
में
टूटी
किस्ती
का,
भगवान सहारा होता
है
।
सच्चे हृदय
की
पुकार
को
वह
हृदयस्थ
परमेश्वर
जरूर
सुनता
है, फिर पुकार
चाहे
किसी
मानव
ने
की
हो
या
किसी
प्राणी
ने
।
गज
की
पुकार
को
सुन
कर
स्वयं
प्रभु
ही
ग्राह
से
उसकी
रक्षा
करने
के
लिए
बैकुण्ठ
से
दौड़
पड़े
थे, यह तो
सभी
जानते
है
।
पुराणों
में
कथा
आती
है
-
एक
पपीहा
पेड
पर
बैठा
था
।
वहां
उसे
बैठा
देखकर
एक
शिकारी
ने
धनुष
पर
बाण
चढाया
।
आकाश
से
भी
एक
बाण
उस
पपीहे
को
ताक
रहा
था
।
इधर
शिकारी
ताक
में
था
और
उधर
बाज
।
पपीहा
क्या
करता? कोई और
चारा
न
देखकर
पपीहे
ने
प्रभु
से
प्रार्थना
की
हे
प्रभु! तू सर्व
समर्थ
है
।
इधर
शिकारी
है, उधर बाज
है
।
अब
तेरे
सिवा
मेरा कोई नहीं
।
हे
प्रभु! तू ही
रक्षा
कर.....
पपीहा
प्रार्थना
में
तल्लीन
हो
गया
।
वृक्ष
के
पास
बिल
मे
से
एक
साँप
निकला
।
उसने
शिकारी
को
दंक
मारा
।
शिकारी
का
निशाना
हिल
गया
।
हाथ
में
से
बाण
छूटा
और
आकाश
में
जो
बाज
मँडरा
रहा
था
उसे
जाकर
लगा
।
शिकारी
के
बाण
से
बाज
मर
गया
और
साँप
के
काटने
से
शिकारी
मर
गया
।
पपीहा
बच
गया
।
इस
सृष्टि
का कोई मालिक
नहीं
है
ऐसी
बात
नहीं
है
।
यह
सृष्टि
समर्थ
संचालक
की
सत्ता
से
चलती
है
।
सृष्टि
में
चाहे
किनी
भी
उथल-पुथल मच
जाये
लेकिन
जब
अदृश्य
सत्ता
किसी
की
रक्षा
करना
चाहती
है
तो
वातावरण
में
कैसी
भी
व्यवस्था
करके
उसकी
रक्षा
कर
देती
है
।
ऐसे
तो कई उदाहरण
हैं
।
कितना
बल
है
प्रार्थना
में! कितना बल
है
उस
अदृश्य
सत्ता
में
।
अदृश्य
सत्ता
कहो, अव्यक्त परमात्मा
कहो, एक ही
बात
है
लेकिन
वह
जरूर
उसी
अव्यक्त, अदृश्य सत्ता
को
साक्षात्कार
करना
यही
मानव
जीवन
का
अन्तिम
लक्ष्य
है
।
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