Thursday, July 12, 2012

आत्मबल


अमेरिका में एक छोटा-सा परिवार रहता था, माता-पिता और दो बच्चे चारों प्रेम से रहते थे सर्दियों के मौसम की बात है दोनों बच्चे घर में अकेले थे ठंड की अधिकता ने दोनों को अंगीठी सुलगाकर तापने के लिए प्रेरित किया दोनों छोटे थे इसलिए एक गलती कर बैठे अंगीठी सुलगाने के प्रयास में मिट्टी के तेल के स्थान पर पेट्रोल डाल दिया पेट्रोल की आग एकदम भड़क उठी जिसमें एक बच्चा तो तत्काल मर गया और दूसरा बहुत अधिक जल गया उसे अस्पताल पहुंचाया गया वह लंबे समय तक अस्पताल में रहा और ठीक भी हो गया, लेकिन अब वह पूर्व की तरह सामान्य दिखाई देने वाला बच्चा नहीं रह गया था वह बेहद कुरूप और अपंग हो गया था उसके दोनों पैर लकड़ी की तरह सूख चुके थे पहिएदार कुर्सी पर बैठकर जब वह घर लौटा तो मां फफक-फफूककर रो पड़ी पिता भी निराश के गहन अंधकार में डूबे थे किसी को आशा थी कि वह फिर कभी चल सकेगा किन्तु उस बच्चें ने हिम्मत नहीं छोड़ी वह अपने वर्तमान से अधिक बेहतर स्थिति पाने के लिए निरंतर प्रयास करता रहा खिन्न होने के स्थान पर उसने प्रतिकूलताओं को चुनौती के रूप में लिया और उसे अनुकूलता में बदलने के लिए अपनी बुद्धि पौरूष और कौशल को दांव पर लगाता रहा उसने बैसाखी के सहारे केवल चलने में बल्कि दौडने में भी सफलता पाई और अनेक पुरस्कार जीते अपना अध्ययन जारी रखते हुए एमए और पीएचडी उर्तीर्ण की और विश्वविद्यालय के निदेशक जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन हुआ साहस की अद्भुत बानगी पेश करते हुए द्वितीय विश्व युद्ध में मोर्चे पर भी गया
जब वह निदेशक के पद से निवृत हुआ तो अपनी जमापूंजी से उसने अपंगों को स्वावलंबन देने वाली एक संस्था खोली, जिसमें हजारों अपंगों के रहने, पढ़ने और कमाने का सुव्यवस्थित प्रबंध था ऐसे दृढ़ संकल्पवान वीर पुरुष का नाम था ग्रेट कर्निघम जिन्हें अमेरिका में देवता की भांति पूजा जाता है

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