प्राचीन भारत की
यह
सांस्कृतिक
विरासत
रही
है
कि
गाय
एवं
गौ
आधारित
जैविक
खेती
की
महत्ता
रही
है
।
उस
समय
में
जिसके
पास
जितनी
अधिक
गाय
होती
थी, वह उतना
ही
ऐश्वर्यवान
माना
जाता
था।
ऋषियों
ने
रिसर्च
कर
इसकी
महत्ता
का
प्रतिपादन
ऐसे
व्यवहासिक
स्वरूप
में
किया
था
जिससे
सामान्य
जन
सज्जता
से
समझते
व
अपनाते
थे
।
गो
उत्पाद
के
प्रयोग
से
सद्बुद्धि
का
विकास
होता
था, जिससे उनका
आध्यात्मिक
स्तर
इतना
ऊँचा
होता
था
कि
संपूर्ण
देश
को
जगद्गुरु
की
संज्ञा
मिली, व्यवसायिक/भौतिक
उन्नति
इतनी
थी
कि
सोने
की
चिड़िया
कहा
जाता
था। आज
गो
दुग्ध/उत्पाद के
अभाव
में
शारीरिक/मानसिक स्थिति
में
भारी
गिरावट आई है। चारित्रिक
पतन
हुआ
है
।
जैविक
खाद
के
बजाय
रासायनिक
खादों/कीटनाशकों के
प्रयोग
से
बंजर
भूमि
होने
की
ओर
बढ़
रही
है।
रासायनिक
खाद
के
प्रयोग
से
जो
उत्पाद
हमें
मिलते
हैं, उनमें प्राण
का
अभाव
ही
नहीं
बल्कि
रोगी
बनाने
का
भी
अवगुण
होता
है
।
इसी
कारण
जिस
देश
में
रोगियों
की
संख्या
नगण्य
होती
थी, वहां रोगियों
से
अस्पताल
भरे
नजर
आते
हैं
।
जिस समय गाय
घर
में
रहती
है, परिवार में
बीमारी
नगण्य
ही
रहती
है।
जैविक
खेती
से
उत्पाद
घर
में
प्रयोग
होते
है, उनमें स्वाद
व
प्राण
शक्ति
अधिक
होती
है
। कई बार
तो
घर
में
आने
वाले
मेहमान
यह
पूंछते
है
कि
आपने
रोटी
कहां
के
आटे
की बनवाई है, जिसमें अलग
ही
स्वाद
है
।
गो पालन में
कुछ
व्यवहारिक
कठिनाइयां
तो
होती
है, परन्तु उसकी
तुलना
में
लाभ
बहुत
अधिक
होता
है
।
देशी
गाय
के
दूध
में
स्वाभाविक
रूप
से
स्वर्ण
होता
है
क्योंकि
इसमें
सूर्य
नाड़ी
होती
है, इसलिए गाय
का
दूध/घी पीलापन
लिये
होता
है
।
इसी
कारण
गो
दुग्ध
में
रोग
प्रतिरोधक
क्षमता
बढ़ाने
की
शक्ति
होती
है
।
गाय
के
घर
के
आस-पास रहने
से
वातावरण
में
दिव्यता
स्वाभाविक
रूप
से
रहती
है
।
हमारी सांस्कृतिक विरासत
के
साथ
बहुत
बड़ी
साजिश हुई , जिसने हमारे
देश
में
प्राकृतिक
संसाधनों
के
सदुपयोग
की
विकसित
पद्यति
के
स्थान
पर
एलोपैथ
व
रासायनिक
खाद
आदि
के
दल-दल में
फसाया
गया
।
परिणाम
स्वरूप
मनुष्य एवं क्रषि भूमि
की
शक्ति
का
ह्रास
होता
जा
रहा
है
।
यदि
इसी
प्रकार
अंधाधुंध
प्रयोग
होता
रहा
तो
वह
दिन
दूर
नहीं
जब कृषि भूमि
बंजर
हो
जायेगी
।
प्रारम्भ
में
रासायनिक
खादों
के
प्रयोग
से
ऐसा
लगा
कि
उत्पादन
बढ़ा
परन्तु
धीरे-धीरे उत्पादन
घटता
गया
उत्पादन
लागत
बढ़ती
रही
।
क्योंकि
रासायनिक
खाद
की
मात्रा
दिनोदिन
बढ़ानी
पड़ी
।
वास्तव
में
रासायनिक
खाद
में
अपनी
शक्ति
नहीं
होती
बल्कि
वह
जमीन
की
ताकत
को
उभार
देती
है
।
बिल्कुल
वैसी
ही
स्थिति
होती
है
कि
घोड़े
को
दाना
न
देकर
शराब
पिलाकर
चलाया
जाये, प्रारम्भ में
तो
बहुत
तेज
दौड़ता
है
परन्तु
बाद
में
पस्त
होकर
गिर
जाता
है
।
लगभग
वैसी
की
स्थिति
हमारे
देश
की कृषि भूमि
की
हो
रही
है
।
यदि
हमारी
चेतना
जागृत
न हुई तो
खराब
स्थितियां
हमारे
यहां
भी
पांव
पसारेंगी
।
अत: जागृत आत्माओं
का
आवाह्न
है
कि
वह
जैविक
खेती
करें
।
हमारे देश की
जैसी
परिस्थितियां
है
व
जैसे
प्राकृतिक
संसाधन
उपलब्ध
हैं, उनका सदुपयोग
करके
जैविक
खाद
को
बनाया
एवं
प्रयोग
किया
जा
सकता
है
।
लेखक
ने
स्वयं
अपने
खेतों
में
प्रयोग
किया
और
पाया
कि
इससे
उत्तरोत्तर
उत्पादन
लागत
में
कमी
आती
है
और
उत्पाद
की
गुणवत्ता
व
पौष्टिकता
अच्छी
होती
है
।
रासायनिक
खाद
के
प्रयोग
से
भूमि
को
अवशोषण
क्षमता
प्राय: समाप्त हो
जाती
है, ऊपरी परत
कड़ी
हो
जाती
है, कैचुआ जो
प्राकृतिक जुताई करते
हैं
व
अंधाधुंध
रासायनिक
खाद
के
प्रयोग
से
मर
जाते
हैं
।
यद्यपि
रासायनिक
खाद
के
प्रयोग हुई भूमि
में
जैविक
खेती
से
3 साल
में
अच्छे
परिणाम
आते
हैं।
अत: किसान भाईयो को
उनके
पास
जितनी
भूमि
है
।
उसके
तीन
भाग
करके
एक-एक भाग
में
क्रमश: जैविक खेती
का
प्रयोग
करना
चाहिए।
फिर
जब
भूमि
का
अभ्यास
बदल
जायेगा
ताक
सदपरिणाम
आने
शुरू
हो
जायेंगे
।
सर्वप्रथम जिस भूमि
में
जैविक
खेती
का
शुभारम्भ
करें, उसमें अमृत
पेय
का
छिड़काव
करें
।
अमृत
पेय
बनाने
का
तरीका
(एक एकड हेतु)
देशी गाय का
गोबर
- 15
किŒ
बरगद (वट) वृक्ष के
नीचे
की
मिट्टी -
10 किŒ
शहद - 500
ग्राम
देशी गाय का
घी - 250
ग्राम
बड़े पात्र में
उपरोक्त
सामग्री
को
अच्छी
तरह
से
मिला
कर
रख
लें।
इस
मिक्स
की हुई मात्रा
का
1/4 भाग
एक
ड्रम
में, जिसमें 50 लीटर
पानी
भकर
मिला
लें
।
फिर
डडे
से
क्लाक
वाइज
व
एन्टी
क्लाक
वाइज
घुमाकर
अच्छी
तरह
से
मिक्स
करें
।
यह
क्रिया
लगभग
आधा
घंटे
तक
करें
।
सायंकाल
इसको
वाल्टियों
में
भरकर
आम
के पत्ते अथवा पुताई वाली
कूंची
के
सहयोग
से
छिड़काव
करें
।
इसी
प्रकार शेष बची मात्रा
को
चौथाइ-चौथाइ लेकर
एक
एकड़
खेत
में
छिड़काव
करें
।
अगले
प्रात: इस खेत
की जुताई कर
दें
।
अमृत
पेय
का
प्रयोग वर्ष में 2 बार करें
।
कम्पोस्ट खाद की
मात्रा
कम
होती
है
व
उसके
बनने
में
समय
लगता
है
।
एव
केंचुआ
खाद
को
बनाने
व
प्रयोग
करने
का
प्रचलन
अपरिहार्य
है, इससे कूडे-करकट व
गौबर
आदि
से
जल्दी
जैवकि
खाद बनाई जा
सकती
है
।
कैचुआ
(वर्मो) खाद बनाने की विधि
10’x3’ फर्श
पक्का
बना
हो
तो
अच्छा
है, नहीं तो
समतल
भूमि
में
इस
साइज
की
पालिथीन
बिछाकर
उसकी
बाउंड्री
इंटों
से
बना
दें।
इसके
तीन
भाग
इंटों
से
ही
कर
दें
।
ध्यान
रहे
कि
यह
व्यवस्था
छापाद्वार
स्थान
में
हो, यह पेडों
के
नीचे
भी
हो
सकती
है
अथवा
छापर
आदि
से
छापा बनाई जा
सकती
है
।
देशी गाय/बैल
अथवा
भैंस
आदि
का
गोबर
व
गलने
योग्य
कूड़ा
करकट, जो ठंडा
हो
व
उसको
मलकर
मुलायम
व
नम
रखते
हुए
खाद
बनाने
के
एक
स्थान
में
रख
दें
।
सायंकाल
इसमें
कैचुआ
छोडे़
।
इसको
नम
रखने
के
लिए
आवश्कतानुसार
पानी
का
छिडकाव
करते
रहें।
10-15 दिन
में
इसे
पलटेंगे
।
45 दिन
में
कैचुआ
खाद
तैयार
हो
जायेगी
।
दूसरे
पार्ट
में
बीच
में
थोड़ा
सा
छेद
रखेंगे, जिससे कैचुआ
स्वाभाविक
रूप
से
उसमें
स्थानान्तरित
हो
जाऐंगे
।
इसी
प्रकार
तीनों
भागों
में
कैचुआ
सर्कुलेट
होते
रहेंगे
व
इनकी
वृद्धि
होती
रहेगी
।
इसी
प्रकार
के
अन्य
फर्श/पोलिथन से
बढ़ाये
जा
सकते
हैं
।
कैचुआ
खाद
बनने
के
बाद
उसको
छलने
से
छान
कर
एक/दो/पांच
किलो
के
प्लास्टिक
पैकिट
बनाने
जा
सकते
हैं
।
इसको
अपने
प्रयोग
में
लाया
जा
सकता
है
व
बिक्री
भी
किया
जा
सकता
है
।
एक
एकड़
में
लगभग
10 कुंङ
खाद
की
आवश्यकता
होती
है
।
कैचुआ
खाद
बनाने
का प्रयोग शहरों
में
भी
किया
जा
सकता
है
।
छोटे-छोटे कैड
बनाकर
।
प्राय: सभी घरों
में
सब्जी
के
छिलके
आदि
गलने
वाले
पदार्थ
सड़ने
के
लिए
फैंक
दिये
जाते
हैं, जिनसे गन्दगी
होती
है
व
बीमारियां
फैलने
का
खतरा
रहता
है
।
अत: इन पदार्थों
व
किचिन
गार्डन
से
गलने
पत्तों
आदि
के
कुड़े
करकट
से
उत्तम
कैचुआ
खाद बनाई जा
सकती
है
।
जैविक
कीटनाशक
बनाने
की
विधि
देशी गाय/बैल
का
मूत्र - 40
ली.
नीम की पत्ती - 10 कि.
धतूरा/आक के पत्ते - 2
कि.
लहसून कूटकर - 250 ग्राम
मिर्च के डंठल - 1 कि.
उपरोक्त सामग्री को
बड़े
पात्र
अथवा
पक्की
कुंडी
में
एक
साथ
मिलाकर
रख
दें
।
40 दिन
बाद
छानकर
बोतलों
में
रख
लें
।
यह
कीटनाशक
एक
लीटर
में
15 ली. पानी में
मिलाकर
फसल
में
प्रयोग
करायें
।
इसकी
पावर
बढ़ाने
हेतु
2 कि. तम्बाकू 4 ली.
पानी
में
उबालकर
आवश्यकतानुसार
उपरोक्त
कीटनाशक
में
मिलाकर
प्रयोग
कर
सकते
हैं
।
शास्त्रों
में
लिखा
है
कि
पृथ्वी
गाय
के
सींग
पर
टिकी हुई है
।
उसका
आशय
यही
है
कि
हमारी कृषि भूमि
की
उर्वता
गाय
पर
आधारित
है
।
“पश्चिम की ऐसी हवा चली, हम घर का आंगन भूल गए। घर-घर है कुत्ते बंधे हुए, गौ पालन करना भूल गए।।”
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