एक
बाद
सुम्मन
और
जुम्मन
दो
मजदूर
बाप
बेटे
थे
।
एक
ही सदगुरु से
दीक्षा
लिए
हुए
थे
। सदगुरु अपनी
मण्डली
के
साथ
अपने
शिष्यों
के
घर
भोजन-सत्संग के
घर
बारी-बारी से
जाया
करते
थे
।
एक
बाद
सद्गुरु
सुम्मन
से
बोले
कि
कल
हम
आपके
घर
अपनी
मण्डली
समेत
आएंगे
।
मण्डली
के
भोजन
का
प्रबन्ध
करके
रखना
।
दोनों
बाप
बेटे
एक
तरफ
तो
बहुत
खुश
थे
कि सदगुरु उनके
यहाँ
आएंगे
परन्तु
अपनी
गरीबी
को
देख
निराश
थे
कि
हम
मण्डली
के
लोगों
के
भोजन
का
प्रबन्ध
कैसे
करेंगे
।
इधर-उधर से
उधार
मांगने
का
प्रयास
किया
परन्तु ईर्ष्यावश किसी
ने
उधार
भी
नहीं
दिया
।
रात्रि
होने
को
आयी।
दोनों
की
बैचेनी
बढ़ने
लगी
कि
कैसं
कल
भोजन
का
प्रबन्ध
होगा
।
दोनों
की
नींद
गायब
थी।
तभी
उनके
दिमाग
में
विचार
आया
कि
पास
के
बनियों
के
घर
चोरी
कर
ली
जाए
।
दोनों
ने
दीवार
में
सेंध
लगायी
व
अंधेरे
में
समान
बटोरने
लगे
।
इसी
भाग
दौड़ी
में
एक
बोरी
ऊपर
से
गिरी
व
तेज
आवाज
से
सो
रहे
बनिए
की
आँख
खुल
गयी
।
दोनों
समान
लेकर
जल्दी-जल्दी घर
से
निकलने
लगे
सुम्मन
तो
समान
लेकर
भाग
गया
लेकिन
बेटा
जुम्मन
पकड़ा
गया
।
अंधेरे
में
जुम्मन
को
लोहे
की
जंगीर
से
ताला
लगाकर
बाँध
दिया
गया
।
सुम्मन
समान
घर
छोड़कर
जुम्मन
के
पास
आया
तो
दोनों
के
बहुत
चिन्ता हुई कि
अभी
तो
अंधेरे
में
किसी
को
कुछ
पता
नहीं
चला
प्रात: काल जब
आस-पास के
लोगों
से
पुलिस
के
द्वारा
उसकी
पहचान
होगी
तो
उसके
गुरु
की
बड़ी
बदनामी
होगी
कि सदगुरु के
शिष्यों
ने
चोरी
की
।
बेटा-बाप से
कहता
है
कि
मुझे
छुड़ाना
तो
सम्भव
नहीं
है
प्रात:काल होने
को
है
ऐसा
करो
मेरी
गर्दन
काट
दो
जिससे
यह
पता
ही
नहीं
चलेगा
कि
चोर
कौन
है सदगुरु की
बदनामी
होने
से
बच
जाएगी
।
आखिर कोई और
उपाय
न
देख
बाप, बेटे की
गर्दन
काटकर
चुपचाप
अपने
घर
में
छिपाकर
रख
देता
है
।
प्रात:काल बनिया
धड़
देखकर
बहुत
घबराता
है
व
धड़
उठाकर
पास
के
जंगल
में
फैंक
देता
है।
सुबह
सुम्मन
जब
शौच
के
लिए
गया
तो
उसे
जुम्मन
का
धड़
पड़ा
मिलता
है
वह
अन्तिम
संस्कार
हेतु
धड़
उठाकर
घर
ले
आता
है
।
व
गर्दन
व
धड़
साथ
लगाकर
कपड़ा
उठा
देता
है
तत्पश्चात् सदगुरु आते
हैं
व
जुम्मन
के
बारे
में
पूछते
हैं
।
सुम्मन
कहता
है
कि
वह
बहुत
बीमार
है
उठ
नहीं
सकता, सोया हुआ
है
। सदगुरु बोलते
हैं
कि
उसे
जगाकर
ला
तो
जुम्मन
कहता
है
कि
रात्रि
को
दस्त
बुखार
ने
उसे
मरने
हाल
कर
दिया
वो
गहरी
नींद
सोया
है
।
तब सदगुरु कहते
हैं
कि
तू
नहीं
बुला
कर
ला
सकता
तो
मैं
बुलाता
हूँ
मेरी
आवाज
सुनकर
वह
अवश्य
आएगा
।
तब सदगुरु जुम्मन
को
आवाज
लगाते
हैं
तो
जुम्मन
उठकर
उनके
पैरों
में
गिर
पड़ता
है
।
जुम्मन
को
जीवित
देखकर
सुम्मन
को
बड़ा
आश्चर्य
होता
है
और
वो सदगुरु के
चरणों
में
लोटपोट
हो
जाते
हैं
।
धन्य
है
वो
समर्थ
गुरु
व
धन्य
है
वे
महान
शिष्य
जो सदगुरु के
सम्मान
में
अपने
शीश
भेंट
चढ़ा
देते
हैं
।
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