Thursday, July 19, 2012

भारतीय सनातन धर्म


सुना जाता है कि इस धरती पर 84 लाख योनियाँ है अर्थात् इतने प्रकार के प्राणधारी जीवन धारी इस सृष्टि में निवास करते हैं इनमें मानव जीवन सर्वश्रेष्ठ हैं मानव के पास बुद्धि, भावना, कर्म की स्वतन्त्रता सब कुछ ही तो उपलब्ध है यह मानव जीवन पशुता एवं दिव्यता के बीच की एक कड़ी है यदि मानव दिव्यता की ओर बढ़ने लगे तो यह धरती स्वर्ग बन सकती है और यदि यही मानव पशुता की ओर चलने लगे तो यह धरती नरक बन जाती है जो प्रेरणाएँ, मर्यादाएँ, अनुशासन व्यक्ति को देवत्व की ओर ले जाते हैं उन्हें धर्म कहा जाता है
यह हमारा सोभाग्य है कि भारत की भूमि पर प्राचीनकाल से ही धर्म को सर्वोपरि महत्व दिया जा रहा है एवं दिया जाता रहेगा इसलिए इसको सनातन (अर्थात् सदा रहने वाला) धर्म की संज्ञा से विभूषित किया गया है कहते हैं भारत की धरती पर 33 करोड़ देवी देवता निवास करते थे ये 33 करोड़ भारत के नागरिक थे जिनका चिन्तन, चरित्र इतने उच्च कोटि का होता था कि पूरा विश्व यहाँ के नागरिकों को देवी देवताओं की तरह पूजता था धर्म की शिक्षा ग्रहण करने पूरे विश्व के लोग भारत की भूमि पर आना अपना सौभाग्य मानते थे चीनी यात्री हवेनसांग, ब्रिटिश पत्रकार पाल ब्रिन्टन (Writer of book – In Search of Secrit India) अति मानवीय शक्तियों से सम्पन्न कार्ल जुग (फ्रायड के समकालीन), महान दार्शनिक मैव-सकूलर, रशियन अध्यात्मवेत्ता मैडम ब्लावटस्की आदि अनेको ऐसी विदेशी विभूतियाँ हैं जिन्होंने भारतीय धर्म शास्त्रों में निहित अमृत का पान किया विश्व इतिहास में अमर हो गए इन सभी के मतानुसार यदि विश्व में कुछ अनमोल है तो वह है भारतीय धर्म दर्शन यही सनातन धर्म सम्पूर्ण विश्व के प्रकाश का, ज्ञान का, शान्ति का अनादि स्त्रोत है
कुछ शोधकर्ताओं के मतानुसार जीसस क्रार्इस्ट ने भारत ही सारी गुह्य विधाएँ सीखी भारत में ही शरीर छोड़ा
अभी कुछ वर्ष पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल ​क्लिंटन जब भारत आए तो उनसे पत्रकारों ने पूछा आपको भारत का सबसे अच्छा क्या लगा?
उन्होंने तपाक से उत्तर दिया ßभारत की परिवार व्यवस्थाÞ अका मानते हैं कि जब तक यहाँ की परिवार व्यवस्था जीवित रहेगी, यहाँ पर मानव रत्न उत्पन्न होते रहेंगे जो अपनी प्रतिभा के बल पर पूरी विश्व में भारत का नाम रोशन करते रहेंगे भारत की परिवार व्यवस्था पूर्णत: सनातन धर्म की ही एक महान देन है
इतना सब कुछ होते हुए भी कभी-कभी यहाँ सनातन धर्म सूर्य, अज्ञान के काले बादलों से कुछ समय के लिए टकरा जाने पर अपनी चमक खो बैठता है साधु सन्तों, तपस्वियों, सन्यासियों, योगियों के सम्मिलित प्रयासों से ज्ञान का यह मन्दिर पुन: भारतवासियों के अपनी शरण में लेकर पूरे विश्व में एक कीर्तिमान स्थापित कर देता है किसी कवि ने उचित ही कहा है -
ßउठो सुनो प्राची से उगते सूरज की आवाज
अपना देश बनेगा सारी दुनिया का सरताज ।।Þ
यह सनातन धर्म रूपी अमृत हमारे ऋषि मुनियों के आजीवन तपस्या साधना की देन है चेतना की सर्वोच्च अवस्था पर पहुँचकर जो सत्य उनको प्रकट हुआ वह उन्होंने निस्वार्थ भाव से जनता के सम्मुख उजागर कर दिया सनातन धर्म को हम Universal Laws भी कह सकते हैं धर्म शास्त्रों के अनुसार धर्मो रक्षति रक्षित:’ ( Laws protect those who protect laws) अर्थात् जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उनकी रक्षा करता है इस संसार में दो ही मार्ग हैं एक धर्म का दूसरा अधर्म का, एक श्रेय का दूसरा प्रेम का, एक योग का दूसरा भोग का व्यक्ति किसे चयन करना चाहता है यह उसके अपने हाथ में है धर्म के मार्ग पर चलना अपने प्रियजनों को चलाना ही धर्म की रक्षा करना है जिस मार्ग पर चलना हो उसका ज्ञान ठीक से होना आवश्यक है सनातन धर्म जिन बिन्दुओं के इर्द गिर्द घूमता है उनकी जानकारी होना आवश्यक है
वह महत्वपूर्ण बिन्दू है - कर्मफल, र्इश्वरीय सत्ता, त्याग, तितिक्षा एवं तपस्या इन पाँचों बिन्दुओं का संक्षिप्त उल्लेख किया जा रहा है।
1-  कर्मफल - इस जन्म में अथवा पुराने जन्म में जिसने जो कुछ किया है उसका भुगतान उसे अवश्य करना पडेगा - ßअवश्यमेव भोक्तव्यं कर्मफल शुभाशुभमÞ
इहाँ कोऊ सुख दुख कर दाता जो जस कई सो तस फलु चारथ ।।
युधिष्टिठर वैसे तो धर्म राज थे धर्म-कर्म में उनकी गहरी रूचि थी परन्तु उन्हें एक गलत शौक था - द्युतक्रीड़ा का उसी गलती का उन्हें बहुत भयंकर परिणम भुगतना पड़ा श्री कृष्ण जैसे सर्वशक्तिमान सखा के होते हुए भी उन्हें उनके कर्मफल से राहत नहीं मिल पायी
इसलिए जब भगवान ने मानव को कर्म का अधिकार दिया है तो कर्म बहुत सोच समझ कर करना चाहिए
ßकर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्
फल पर तेरा अधिकार नहीं मात्र कर्म पर अधिकार है अत: विवेक सम्मत कर्म का चयन नित्यन्त आवश्यक है मानव इस समय जिस भी परिस्थिति में है वह उसके पुराने कर्मों का प्रतिफल है
2-  ईश्वरीय सत्ता - इस विषम भवसागर में मानव को राह दिखाने वाली, मानव का कल्याण करने वाली, कठिनाई में उसकी सहायता करने वाली, विपत्तियों से उसकी रक्षा करने वाली एक ऐसी सत्ता मौजूद है जिसको इश्वर कहा जाता है  ईश्वरीय संरक्षण में काँटों भरा रास्ता भी आसानी से पार हो जाता है किसी व्यक्ति के मन में प्रश्न उठ सकता है कि जब कर्मफल भुगतान ही है तो इश्वर की क्या आवश्यकता? इसका समाधान यह है - मान लीजिए किसी व्यक्ति के ऊपर दो किलो का वजन गिरना है उसके सिर पर दो किलो का पत्थर में गिर सकता है अथवा दो किलो का रुई का गठ्ठर भी  ईश्वरीय कृपा से प्रारब्धों का भुगतान कम कष्टकारी हो जाता है
इश्वर उन्हीं को मार्गदर्शन देते हैं जो ईश्वरीय प्रकाश का भावना करते हैं, ईश्वरीय  प्रेरणाओं को ग्रहण कर उन पर चलना चाहते हैं। गायत्री महामन्त्र का भावार्थ भी यही है इसीलिए गायत्री महामन्त्र को स्नातन धर्म में इतना अधिक महत्व दिया गया है
यदि व्यक्ति यह चाहे कि वह सत्य, प्रेम, न्याय के पथ पर चलकर स्वार्थ, लोभ, अहंकार का रास्ता अपनाए कुछ पूजा पाठ करके ईश्वरीय सहायता प्राप्त कर ले तो यह उसका कोरा भ्रम होगा।
प्रसिद्ध पुस्तक योगी कथामृत के लेखक स्वामी पोगानन्द परमहंस यह कहा करते थे कि इश्वर से भीख क्यों माँगते हो? उसके पुत्र बनो, उसके उत्तराधिकारी बनो। इश्वर का पुत्र बनने के लिए जिस रास्ते पर चलना पड़ता है उसका विवरण आगे दिया गया है
3-  त्याग - सनातन धर्म में त्याग को सर्वोपरि स्थान दिया गया है भारत में उन्हीं को महापुरुष माना जाता रहा है जो मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए अपना सबकुछ त्याग देते थे भगवद्गीता भी निष्काम कर्म योग, यज्ञार्थ कर्म करने की प्रेरणा देती है उपनिषद् भी त्याग के साथ भोग (तेन व्यक्तेन भुंजी था) की प्रेरणा देते हैं
लोग यह तो बहुत कहते हैं कि सब कुछ भगवान का है परन्तु जब कुछ त्यागने की बारी आती है तो बगले झाँकने लगते हैं
धरती पर उज्ज्वल भविष्य लाने का संकल्प लेने वाले युग ऋषि श्री राम आचार्य का मानना है कि जो युग की माँग को पूरा करने के लिए समयदान-अंशदान (धन का एक अंश) नहीं कर सकते वो धर्म के पथ पर ना चलकर केवल पाखण्डों में उलझे है
चरित्र निर्माण, विचार क्रान्ति आज युग की माँग है धरती पर अपार भौतिक सम्पदा होने पर भी मानव पीड़ा-पतन के गर्त में फँसता चला जा रहा है इसका एक मात्र समाधान है - चरित्रवान नागरिकों का निर्माण
जिनके भीतर धर्म के प्रति आस्था है वो समयदान अंशदान करते हुए त्याग के पथ पर अवश्य चले
4-  तितिक्षा - तितिक्षा का अर्थ है सहनशीलता, क्षमा, धैर्यपूर्वक सृजनात्मक विचारधारा विनिर्मित करना तितिक्षा के अभाव में व्यक्ति का जीवन विकास की तरफ जाकर अपने दूसरों के विनाश की ओर मुड पड़ता है
धार्मिक समाजसेवी संस्थाएँ बहुत पवित्र उद्देश्य लेकर चलती है परन्तु आपसी खींचतान गुटबाजी में उलझकर रह जाती है तपस्वियों की शक्ति यों ही व्यर्थ के श्रापों में बेकार हो जाती है
समाज, परिवार में आपसी मनमुटाव दुर्भावनाएं उत्पन्न होने लगती है। तितिक्षा का अभाव मानव को लक्ष्य से भटकाकर नकारात्मक ऊर्जा की ओर बढ़ाता चला जाता है
5-  तपस्या - जब ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना करनी थी तो पहले उन्होंने सैंकड़ों वर्षो तक गायत्री की तपस्या की पाण्डवों ने वनवास के दौरान कठिन तप किया। सृष्टि में कुछ भी महत्वपूर्ण करने अथवा जाने के लिए तप करना होता है देवी-देवता, मानव दानव धर्म तप करके शक्तियां उपलब्धियाँ हासिल करते हैं तप का अर्थ है मन की शक्ति के इधर-उधर के बिखराव से रोककर एक दिशा में नियोजित रखने का प्रयत्न करना मन की जो कमजोरियां बाधक हैं उनसे संघर्ष करना। तप व्यक्ति निजी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी कर सकता है , आत्मकल्याण-लोककल्याण हेतु भी कर सकता है आमतौर पर भोग-वासना की धारापर संयम का बांध लगा देना तप कहलाता है समय संयम, इन्द्रि संयम, विचार संयम, अर्थ संयम तप साधना के व्यवहारिक स्वरूप हैं

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